बुन्देलखण्ड क्षेत्र में सूखे की समस्या के प्रमुख कारण क्या है? इसके निदान हेतु सरकार क्या प्रयास कर रही है?
उत्तर की संरचनाः
रूपरेखाः
- बुन्देलखण्ड उत्तर प्रदेश एवं मध्य प्रदेश के सीमावर्ती क्षेत्रों से मिल कर बना है, जिसमें उत्तर प्रदेश के सात जनपद समाहित हैं। बुन्देलखण्ड क्षेत्र हमेशा से जल की कमी और सूखे की समस्या के कारण चर्चा में बना रहता है। 19वीं व 20वीं सदी के दौरान कुल 12 सूखा वर्ष देखने को मिले हैं अर्थात हम कह सकते हैं कि 16-17 वर्ष में एक बार सूखा पड़ा है। सूखा वर्ष की आवृत्ति पहली बार वर्ष 1968 से 1992 के बीच बढ़ी, जब इन वर्षों में तीन बार सूखा पड़ा और वर्तामन में देखें तो विगत 6 वर्षों में (2004-05 के बाद) लगभग लगातार सूखे की स्थिति बनी हुई है।
सूखे की समस्या के प्रमुख कारण:
- भौगोलिक संरचनाः भौगोलिक रूप से नदियों के कटान, बंजर, पठार के इलाके और अनुपजाऊ पथरीली भमि यहाँ की कृषि को काफी दुष्कर बनाती है। सिंचाई के लिए पानी का अभाव और भीषण गर्मी होने के कारण पूरा क्षेत्र कृषि में अत्यंत पिछड़ा हुआ है। मुख्य रूप से दो नदियों केन बेतवा इस क्षेत्र से होकर गुजरती हैं, जो आगे चलकर यमुना में मिल जाती है।
- भूमि क्षरण: भूमि क्षरण इस क्षेत्र की गंभीर समस्या है, जिसके कारण लाखों हेक्टेयर भूमि कृषि के लिए उपयुक्त नहीं है। भूमि क्षरण का प्रमुख कारण तेज हवा, वर्षा और ढलुआ जमीन का होना है। इस क्षेत्र में 60 प्रतिशत से अधिक लोग गरीबी रेखा के नीचे जीवनयापन करते हैं। किसानों का एक बड़ा हिस्सा सीमांत कृषकों का है। लगभग 25 प्रतिशत कृषक ऐसे हैं, जिनके पास 1 से 2 हेक्टेयर के बीच भूमि है। जमीन से ही किसान का पहचान है और उसी से ही उसकी जीविका तथा उसका अस्तित्व है परंतु यह जमीन निरंतर छोटी होती जा रही है अथवा इसका क्षरण होता जा रहा है या फिर वह परती के रूप में अनुत्पादित हाता की इस क्षेत्र में भूमि सुधार के कई कार्यक्रम चलाये गये, परंतु कोई भी कारगर सिद्ध नहीं हुआ।
- जलवायु परिवर्तनः जलवायु परिवर्तन ने विगत 15 वर्षों में जो मौसम में असामान्य बदलाव किये हैं, उसने के लोगों की नाजुकता (Vulnerability) और जोखिम (Risk) को काफी बढ़ाया है। यहाँ विगत वर्षों में मानसून का का देर से आना, जल्दी वापस हो जाना, दोनों बीच लंबा सूखा अंतराल, जल संग्रह क्षेत्रों में पानी सोपाना कआँ का सूख जाना इत्यादि ने यहाँ कि कृषि को पूरी तरफ नष्ट कर दिया। यहाँ तक कि कुछ बर्षो में तो किसान फसल की बुवाई तक नहीं कर पाये। विगत 3 दशकों में तो यहाँ की स्थिति काफी बीय हो गई है। प्राकृतिक आपदाओं ने इस पूरे क्षेत्र की रूरेखा ही बदल दी है, जिसकी वजह से यहाँ की सामाजिक व आर्थिक स्थिति काफी हद तक बिगड़ चुकी है। इस क्षेत्र के अधिकांश जनपद सूखा से प्रभावित है, जिसका सीधा असर यहाँ की कृषि पर पड़ा है। वैसे तो यह क्षेत्र सूखा और सूखा जैसी स्थिति का सामना विगत कई वर्षों से करता आ रहा है परन्तु इस वर्ष यह अपनी भयावह स्थिति में है।
- औसत वर्षा में कमी: सामान्यतः बुंदेलखंड में औसत वर्षा 800-1000 मि.मी. होती रही है, परंतु विगत पाँच वर्षों का औसत देखा जाये तो इसमें 40-50 प्रतिशत की कमी आई है अर्थात 450-550 मि.मी. वर्षा ही प्राप्त हुई है। मानसून का देर से आना, कम समय में ज्यादा वर्षा का होना और दो वर्षों के बीच में वर्षा का लंबा अंतराल इस क्षेत्र में सूखा की स्थितियाँ उत्पन्न करने में सहायक है।
बुन्देलखण्ड में सूखे के निदान के लिए सरकारी प्रयास-
उत्तर प्रदेश सरकार ने बुन्देलखण्ड सहित प्रवेश के अन्य जिलों में पेयजल समस्या के समाधान के लिए महाराष्ट्र की ‘सुजलाम-सुफलाम’ योजना को लागू करने की घोषणा की। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने सुजलाम-सुफलाम योजना को पायलट प्रोजेक्ट के रूप में महोबा और हमीरपुर में शुरू करने का निर्देश दिया है। गंगा और यमुना की अविरलता बनाये रखकर इनमें पर्याप्त मात्रा में जल की उपलब्धता के लिए इनके तटों पर जल संचयन के लिए विशाल तालाबों का निर्माण होगा। यहाँ भूगर्भ जल की रिचार्जिंग पर विशेष ध्यान दिया जायेगा। गंगा व यमुना पर जल आपूर्ति की निर्भरता कम करने के लिए सरकार आवश्यक कदम उठा रही है।
केद्र सरकार ने मानसून पर खेती की निर्भरता कम करने और हर खेत तक पानी पहुंचाने के लिए प्रधानमंत्री कृषि सिंचाई योजना को लागू किया है। प्रधानमंत्री कृषि सिंचाई योजना केंद्र और राज्य सरकार के समन्वय वाली योजना ह। इसकी शुरुआत एक जुलाई, 2015 को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने की थी। इस योजना के तहत अगले पाँच वर्षों के लिए 50 हजार करोड रुपये का बजट आवंटित किया गया है। इस योजना के अंतर्गत भारत सरकार ने राज्य सरकारा के साथ मिलकर कुछ कृषि अनुदानों और सहायता की भी व्यवस्था की है।
सरकार सामुदायिक तालाब निर्माण के लिए 25 लाख रुपये का अनुदान किसानों को उपलब्ध करा रही है। फव्वारा आइ के लिए सरकार कुल खर्च का 50 प्रतिशत हिस्सा सहायता के रूप में प्रदान कर रही है। छोटे, लघु और किसानों, महिला किसानों और अनुसूचित जनजाति के किसानों को सरकार आर्थिक और प्रशिक्षण की सहायता दे रही है। बागवानी और सब्जियों की खेती के लिए ड्रिप विधि का इस्तेमाल किया जाये, इसके लिए .. प्रातशत से लेकर 80 प्रतिशत तक की सहायता कर रही है। इस तरीके से उत्पादन और उत्पादकता दोनों में बढोरती देखी जा रही है।
निष्कर्षः
इन सभी प्रयासों से बुन्देलखण्ड में सूखे को तीव्रता और बारम्बारता में कमी आने की संभावना है। इन सभी सरकारी प्रयासों को समन्वित और भागीदारी पूर्ण रूप से लागू किया जाये तो समस्या में तेजी से सुधार की संभावना है।