उत्तर प्रदेश में आंतरिक सुरक्षा की चुनौतियाँ क्या हैं? इन चुनौतियों के समाधान में उत्तर प्रदेश संगति अपराध नियंत्रण अधिनियम (यूपीकोका), 2018 की भूमिका का विश्लेषण करें।
उत्तर की संरचनाः
भूमिका:
- संक्षेप में आंतरिक सुरक्षा को स्पष्ट करें और उत्तर प्रदेश की कुछ घटनाओं को बताएँ।
मुख्य भाग:
- उत्तर प्रदेश में आंतरिक सुरक्षा से संबंधित चुनौतियों को बताएँ।
- उत्तर प्रदेश संगठित अपराध नियंत्रण (यूपीकोका), 2018 के प्रमुख प्रावधान बताएँ।
- कुछ चुनौतियों को बताएँ और अन्य प्रयासों की चर्चा करें।
निष्कर्ष:
- यूपीकोका के संदर्भ में सकारात्मक निष्कर्ष दें।
उत्तर
भूमिकाः
आतंरिक सुरक्षा, किसी राष्ट्र अथवा राज्य की निर्धारित सीमा के अंतर्गत स्थित भौतिक तथा मानवीय संसाधनों का सुरक्षा है। वर्ष 2006 और 2010 में वाराणसी में हुए श्रृंखलाबद्ध बम विस्फोट तथा सहारनपुर और पश्चिमी उत्त के अन्य जिलों में लगातार हो रहे जातीय और साम्प्रदायिक हिंसा की घटनाओं ने उत्तर पदेश में आंतरिक सरक्षा का चुनौती उत्पन्न की है।
मुख्य भागः
वर्तमान में उत्तर प्रदेश में आंतरिक सुरक्षा से संबंधित विभिन्न चुनौतियाँ निम्नलिखित हैं-
- नेपाल से लगी अन्तर्राष्ट्रीय सीमा से आतंकी घुसपैठ, ड्रग्स व्यापार, जाली करेंसी का व्यापार, मानव तस्करी आदि की चुनौतियाँ प्रस्तुत होती हैं।
- जातीय एवं धार्मिक वैमनस्य।
- कट्टरपंथी एवं अतिवादी विचारों का प्रचार-प्रसार।
- राज्य के पिछड़े क्षेत्रों में वामपंथी उग्रवाद। पूर्वी उत्तर प्रदेश में बढ़ता संगठित अपराध नेटवर्क।
- आंतरिक आतंकवाद (स्लीपर सेल) की समस्या आदि।
उपर्युक्त चुनौतियाँ इन्टरनेट एवं सोशल मीडिया (फेसबुक, ट्वीटर एवं इंस्टाग्राम आदि) के सम्पर्क से और भी गंभीर रूप धारण कर लेती है।
इसी आलोक में उत्तर प्रदेश सरकार ने वर्ष 2018 में उत्तर प्रदेश संगठित अपराध नियंत्रण कानून (यूपीकोका) को पारित कर पुलिस व्यवस्था को मजबूत बनाने का प्रयास किया है। इस कानून के कुछ प्रमुख प्रावधान निम्नलिखित हैं-
- इस कानून के तहत गिरफ्तारी तभी होगी जब अपराधी इससे पहले कम से कम दो संगठित अपराध किये हों।
- गिरफ्तारी के पश्चात् छः महीने तक जमानत नहीं।
- चार्जशीट दाखिल करने के लिए 180 दिन का समय मिलेगा जबकि मौजूदा कानून के तहत 60 से 90 दिनों का समय मिलता था।
- अपराधी को 30 दिन तक रिमांड पर लिया जा सकता है जबकि मौजूदा कानून में सिर्फ 15 दिन का प्रावधान था।
- न्यूनतम सजा 5 साल तथा अधिकतम सजा मृत्युदण्ड। गैर-कानूनी ढंग से कमायी गयी संपत्ति को जब्त कर लेने का प्रावधान है।इसके अतिरिक्त इस कानून के दुरूपयोग को रोकने के लिए भी कुछ प्रावधान किये गये हैं। जैसे- इस कानून से संबंधित मामलों की निगरानी राज्य के गृह सचिव करेंगे।
- मंडल स्तर के आईजी रैंक के अधिकारी की संस्तुति के बाद ही आरोपी पर इस कानून के तहत मुकदमा दर्ज होगा। साथ ही इस कानून के तहत दर्ज मुकदमों के न्याय निर्णयन हेतु विशेष अदालतों के गठन का भी प्रावधान किय गया है।
इस प्रकार स्पष्ट है कि यूपीकोका कानून अपराधियों को नियंत्रित करने में काफी महत्वपूर्ण भूमिका अदा करेगा किंतु यह कानून अपराध के घटित होने के बाद क्रियाशील होता है। अतः अपराध को घटित होने से रोकने के लिए कुछ ‘प्रो एक्टिव’ रणनीतियाँ आवश्यक होंगी। जैसे-
- गुप्तचर संस्थाओं को मजबूत करना, जिससे समय रहते जरूरी सूचनाएँ प्राप्त हो सकें।
- पर्याप्त संस्था में सुरक्षा बलों के जवानों को उपलब्ध कराना तथा बेहतर प्रशिक्षण प्रदान करना।
- ‘ग्रामीण स्वयंसेवी बल’ (Village Volunter Forces) की सीमा प्रबंधन में महत्वपूर्ण भूमिका हो सकती है।
- नेपाल के साथ खली सीमा का प्रबंधन करने के लिए कुछ तकनीकी उपकरणों जैसे-सीसीटीवी कैमरा, थर्मल इमेज डिवाइस, नाइट विजन डिवाइस, सर्विलांस राडार, भूमिगत मॉनिटरिंग सेंसर, लेजर दीवार आदि का प्रयोग किया जा सकता है।
- सीमा के आस-पास के लोगों से बेहतर संवाद स्थापित कर उन्हें देश-विरोधी गतिविधियों से बचाया जा सकता है।
निष्कर्षः
उपर्युक्त विश्लेषण से स्पष्ट है कि यूपीकोका कानून आंतरिक सुरक्षा चुनौतियों के समाधान में एक कारगर कदम है। किन्तु इसके साथ कुछ सहायक तरीकों को अपनाकर उत्तर प्रदेश में न केवल अपराध को नियंत्रित किया जा सकता है बाल्क शांति एवं व्यवस्था की स्थापना भी की जा सकती है।