नीतिशास्त्र के आयाम

नीतिशास्त्र के आयाम

  1. वर्णनात्मक नीतिशास्त्र
  2. मानदंडपरक नीतिशास्त्र
  3. परानीतिशास्त्र
  4. अनुप्रयुक्त नीतिशास्त्र
वर्णनात्मक नीतिशास्त्र
  • यह समाज में प्रचलित रीति-रिवाजों, लोगों की मान्यताओं का अध्ययन करता है और पता लगाता है कि वो नैतिक है या नहीं|
  • उदाहरण: सती प्रथा या तलाक़ ए बिद्दत (ट्रिपल तलाक़) नैतिक है या नहीं?
मानदंडपरक नीतिशास्त्र
  • यह निर्धारित करता है कि “क्या किया जाना चाहिए या क्या किया जाना चाहिए।”
  • उदाहरण: क्या हमें जानवरों को मारना चाहिए?
परानीतिशास्त्र (मेटा एथिक्स)
  • यह बताता है, क्या अच्छा है?
  • मानक नैतिकता से एक कदम आगे। यदि आप नैतिकता का मूल्यांकन करना शुरू करते हैं, तो यह मेटा-नैतिकता है।
  • उदाहरण: अगर हम जानवर को मार देते हैं, तो क्या यह “अच्छी” चीज है?
अनुप्रयुक्त नीतिशास्त्र (एप्लाइड एथिक्स)
  • यदि हम किसी विशिष्ट क्षेत्र में मानक नैतिकता के सिद्धांतों को लागू करते हैं, तो यह “एप्लाइड एथिक्स” उदाहरण बन जाएगा,
  • उदाहरण: चरण सेल थेरेपी अच्छा या बुरा है?

वर्णनात्मक नीतिशास्त्र

  • यह प्रचलित विश्वासों, रीति-रिवाजों का अध्ययन करता है| यह शास्त्र  मानवीय कृत्यों को मान्य अथवा अमान्य सिद्ध करता है|
  • इसकी पद्द्ति अनुभाविक होती है, अर्थात यह आगमनात्मक (परीक्षात्मक) पद्द्ति पर आधारित है|
  • वर्णनात्मक नीतिशास्त्र को तुलनात्मक नीतिशास्त्र भी कहा जाता है क्योंकि यह भूतकाल तथा वर्तमान एवं साथ ही एक समाज और दूसरे समाज के नीतिशास्त्रों की तुलना करता है|
  • परिस्थितियाँ एवं विधान जिनके आधार पर यह शास्त्र  मानवीय कृत्यों को मान्य अथवा अमान्य सिद्ध करता है, समय और समाज के अनुसार बदलते रहते हैं| समाजों ने अपने नैतिक सिद्धांत समय में परिवर्तन के साथ ढाले हैं तथा लोगों से यह अपेक्षा की है कि वे उसी अनुरूप व्यवहार करें|
  • नैतिकता की दृष्टि से क्या उचित अथवा क्या अनुचित है इसकी व्याख्या करने के लिए यह नीतिशास्त्र अन्य शास्त्रों, यथा- मानवशास्त्र, मनोविज्ञान, समाजशास्त्र और इतिहास से भी विषयवस्तु ग्रहण करता है|

मानदंड-परक नीतिशास्त्र (Normative ethics)

  • इसका संबंध मापदंड या आदर्श से है जिसके आधार पर उचित-अनुचित का निर्णय लिया जाता है, जो, कोई चीज़ करने का सामान्य या उचित तरीका माना जाता हो|
  • असल में यह उस कसौटी की खोज है जो किसी व्यवहार के औचित्य का परीक्षण करता है| उदाहरण के लिये – गोल्डन रूल| इसके अनुसार “हमें वही व्यवहार करना चाहिये जो हम दूसरों से उम्मीद करते है”|क्योंकि हमलोग नहीं चाहते कि हमारे पडोसी हमारी शीशे की खिड़की पर पत्थर मारें इसलिए यह बुद्धिमानी नहीं होगी कि हम किसी पडोसी की खिड़की पर पहले पत्थर मारें
  • यह निर्देशात्मक नीतिशास्त्र है क्योंकि यह बताता है कि आचरण या कर्म कैसा होना चाहिये| मानदंड-परक नीतिशास्त्र उन मानदंडों अथवा मान्यताओं के समुच्चय से सम्बन्ध रखता है जो बतलाते हैं कि मानव को किस प्रकार कार्य करना चाहिए| जैसे – गीता का निष्काम कर्म का नियम|
  •  मानदण्डक नीतिशास्त्र, अधिनीतिशास्त्र (मेटा-ऍथिक्स, meta-ethics) से अलग हैं, क्योंकि वह कार्यों के सही या गलत होने के मानकों का परीक्षण करता हैं, जबकि मेटा-नीतिशास्त्र नैतिक भाषा और नैतिक तथ्यों के तत्वमीमांसा के अर्थ का अध्ययन करता हैं।
  • मानदण्डक नीतिशास्त्र वर्णात्मक नीतिशास्त्र से भी भिन्न हैं, क्योंकि पश्चात्काथित लोगों की नैतिक आस्थाओं की अनुभवसिद्ध जाँच हैं। अन्य शब्दों में, वर्णात्मक नीतिशास्त्र का सम्बन्ध यह निर्धारित करने से हैं कि किस अनुपात के लोग मानते हैं कि हत्या सदैव गलत हैं, जबकि मानदण्डक नीतिशास्त्र का सम्बन्ध इस बात से हैं कि क्या यह मान्यता रखनी गलत हैं। अतः, कभी-कभी मानदण्डक नीतिशास्त्र को वर्णात्मक के बजाय निर्देशात्मक कहा जाता हैं|

मानदंड-परक नीतिशास्त्र किसी उस व्यक्ति को दण्डित करने को उचित ठहराता है जो सामाजिक और नैतिक व्यवस्था को भंग करता है|

  • अरस्तू का सद्‌गुण नीतिशास्त्र
  • कान्ट का कर्तव्य-परक नीतिशास्त्र
  • मिल का परिणामवाद (उपयोगितावाद)
  • भगवद्गीता का निष्काम कर्मयोग

सद्‌गुण नीतिशास्त्र (Virtue Ethics)

  • सद्‌गुण नीतिशास्त्र नैतिक व्यवहार को निर्धारित करने अथवा उसको मूल्यांकित करने के लिए किसी के चरित्र एवं सद्‌गुणों पर बल देता है|
  • प्लेटो, अरस्तू और गांधी सद्‌गुण नीतिशास्त्र के प्रमुख समर्थक हैं|
  • ये मानते हैं कि यदि मनुष्य सद्‌गुण का धनी है तो वो जो भी कार्य करेगा वह नैतिक होगा|मतलब बिना सद्गुणों को धारण किये नैतिक नहीं बना जा सकता|
  • प्लेटो ने चार सर्वप्रमुख सद्‌गुणों, यथा – विवेक, न्याय, संयम एवं सहनशक्ति का विचार दिया| उनके शिष्य अरस्तू ने सद्‌गुणों को नैतिक तथा बौद्धिक दो श्रेणियों में बाँटा|

कर्तव्य-परक नीतिशास्त्र (Deontology)

  • कर्तव्य-परक नीतिशास्त्र मानवीय कृत्यों के परिणामों पर बल न देकर उनके औचित्य और अनौचित्य पर बल देता है|
  • कर्तव्य-परक नीतिशास्त्र के भी अलग-अलग सिद्धांत हैं, जैसे- श्रेणीगत अनिवार्यता, नैतिक निरंकुशता, दैवीय आदेश आदि के सिद्धांत|

श्रेणीगत अनिवार्यता सिद्धांत

  • कर्तव्य-परक नीतिशास्त्र का पहला प्रसिद्ध सिद्धांत इमैन्युअल कांट का श्रेणीगत अनिवार्यता सिद्धांत अथवा कांटवाद है| कांट का कहना था कि सृष्टि में मानवों का विशेष स्थान है तथा सभी कर्तव्यों एवं दायित्वों का मूल एक सर्वोच्च आदेश में है|
  • कांट की मानें तो नैतिक नियम सार्वभौमिकता एवं परस्पर व्यवहार इन दो सिद्धांतों पर आधारित होने चाहिएँ|
  • यहाँ सार्वभौमिकता से कांट का अभिप्राय यह था कि कोई भी नैतिक कृत्य ऐसा हो जिसे सभी लोगों पर लागू किया जा सके|
  • उनके अनुसार “पारस्परिकता” का अर्थ है “जैसा अपने प्रति चाहते हो वैसा ही कृत्य करो”| (Golden Rule)
  • नैतिकता का इस प्रकार का सिद्धांत सभी धार्मिक पद्धतियों, जैसे – हिंदुत्व, इस्लाम, ईसाइयत, यहूदी धर्म, बौद्धधर्म आदि में पाया जाता है|

नैतिक निरंकुशता

  • दूसरी विख्यात कर्मपरक नैतिकता का सिद्धांत है – नैतिक निरंकुशता| इसमें यह विश्वास किया जाता है कि कुछ ऐसी अविवाद्य कसौटियाँ होती हैं जिनको दृष्टि में रखते हुए नैतिक प्रश्नों का निर्णय हो सकता है| इन कसौटियों पर तौलने पर कुछ कृत्य उचित तो कुछ अनुचित ठहरते हैं चाहे उन कृत्यों का प्रसंग कुछ भी हो|
  • उदाहरण के लिए, चोरी, अनुचित है चाहे वह किसी भी प्रसंग में की गई हो| यह सिद्धांत इस तथ्य की उपेक्षा करता है कि कभी-कभी अनुचित कृत्य किसी उचित फल पाने के लिए किया जाता है|

दैवीय आदेश सिद्धांत

  • कर्तव्य-परक नीतिशास्त्र का तीसरा सिद्धांत दैवीय आदेश सिद्धांत है| इसके अनुसार कोई कृत्य तभी उचित हो सकता है जब उसे भगवान् ने उचित बतलाया हो|
  • इस सिद्धांत के अनुसार किसी भी कृत्य का औचित्य इस बात पर निर्भर करता है कि वह कृत्य यह सोचकर किया गया हो कि वह एक कर्तव्य है न कि इसलिए कि इस कृत्य से कोई अच्छा फल प्राप्त होगा|

परिणामवाद

  • परिणामवादी नीतिशास्त्र के अनुसार किस भी कृत्य की नैतिकता उनके परिणाम से जुड़ी हुई होती है| अतः नैतिक रूप से उचित कृत्य अच्छा परिणाम देगा जबकि नैतिक रूप से अनुचित कृत्य बुरा परिणाम देगा|
  • परिणामवाद का मूल विचार यह है कि “साध्य से ही साधन का औचित्य है”| एक ऐसा कृत्य जो नैतिक विवेक की दृष्टि से उचित नहीं हो वह कर्तव्य-परक नीतिशास्त्र के अन्दर उचित कृत्य हो सकता है|

परिणाम के आधार पर कई सिद्धांत निकाले गए हैं, जैसे –

  1. उपयोगितावाद – उचित कृत्य अधिक से अधिक लोगों के लिए कल्याणकारी होगा|
  2. आनंदवाद – जिस कृत्य से अधिक से अधिक आनंद मिले वह उचित है|
  3. अहंवाद – जो कृत्य स्वयं अधिकतम कल्याण करे वही उचित है|
  4. आत्मनिग्रहवाद – आध्यात्मिक लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए आत्मपरक आनंदों से दूर रहना एक उचित कृत्य है|
  5. परोपकारवाद – दूसरों के लिए जीना और अपने आप की चिंता नहीं करना उचित कृत्य है|

परानीतिशास्त्र

  • परानीतिशास्त्र अथवा “विश्लेषनात्मक नीतिशास्त्र” नैतिक अवधारणाओं की उत्पत्ति से सम्बंधित शास्त्र है|
  • यह इस पर विचार नहीं करता कि कोई कृत्य अच्छा या बुरा है अथवा सही या गलत है| अपितु यह प्रश्न उठाता है कि सही होना अथवा नैतिकता स्वयं में क्या है?
  • यह वस्तुतः नीतिशास्त्र के विषय में सोचने की एक अत्यंत अमूर्त पद्धति है|

परानीतिशास्त्र के मुख्य सिद्धांत हैं – प्राकृतिकता, अ-प्राकृतिकता, भावनात्मकता एवं निर्देशात्मकता|

  1. प्राकृतिकतावादी और अ-प्राकृतिकतावादी – ये सिद्धांत विश्वास करते हैं कि नैतिक भाषा संज्ञेय है और सत्य अथवा असत्य की पहचान की जा सकती है|
  2. भावनात्मकतावादी – ये इस बात का खंडन करते हैं कि नैतिक कथन स्वीकृति अथवा अस्वीकृति की भावनात्मक अभिव्यक्ति होते हैं तथा नैतिक तर्क की प्रकृति एवं औचित्य को नैतिक कथनों की इसी मूलभूत विशेषताओं के सन्दर्भ में ही समझा जा सकता है|
  3. निर्देशात्मकतावादी – इनक़ी सोच भी कुछ ऐसी ही है क्योंकि वह मानता है कि नैतिक निर्णय किसी कृत्य की स्वीकृति अथवा निषेध होते हैं न कि विश्व के किसी विषय में तथ्य की उक्ति मात्र|

अनुप्रयुक्त नीतिशास्त्र

  • अनुप्रयुक्त नीतिशास्त्र का सम्बन्ध नैतिक निर्णय के मामलों से सम्बंधित निजी और सार्वजनिक जीवन के किसी विषय की नैतिक दृष्टिकोण से दार्शनिक समीक्षा करने से है|
  • नीतिशास्त्र की यह शाखा चिकित्सकों, शिक्षकों, प्रशासकों, शासकों आदि जैसे जीवन के अलग-अलग क्षेत्रों के व्यवसायियों के लिए सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण है|

अनुप्रयुक्त नीतिशास्त्र के छः प्रमुख क्षेत्र हैं –

  1. निर्णयगत नीतिशास्त्र – नैतिक निर्णय की प्रक्रिया|
  2. व्यावसायिक नीतिशास्त्र – अच्छी व्यावसायिकता के लिए|
  3. चिकित्साविषयक नीतिशास्त्र – चिकित्सा के उत्तम व्यवहार के लिए|
  4. व्यवसायविषयक नीतिशास्त्र – व्यवसाय की उत्तम रीतियों के लिए|
  5. संगठनात्मक नीतिशास्त्र – संगठन के अन्दर एवं विभिन्न संगठनों के बीच का नीतिशास्त्र|
  6. सामाजिक नीतिशास्त्र|

यह सामाजिक, आर्थिक, सांस्कृतिक, धार्मिक विषयों के औचित्य-अनौचित्य पर भी विचार करता है, जैसे – इच्छामृत्यु, बालश्रम, गर्भपात आदि|

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