ध्रुवीय शोध में भारत के योगदान का उल्लेख

प्रश्न: धुव्रीय शोध के महत्व और इस संबंध में भारत के योगदान की चर्चा कीजिए।

दृष्टिकोण

  • ध्रुवीय शोध के महत्व का उल्लेख कीजिए।
  • ध्रुवीय शोध में भारत के योगदान का उल्लेख कीजिये।

उत्तर

ध्रुवीय विज्ञान एवं शोध पृथ्वी की कार्य प्रणाली को समझने में हमारी सहायता करने के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण हैं। वैज्ञानिक ध्रुवों पर हिम की परिवर्तनशील गतिकी, महासागरों और जीवन को समझने के लिए वहाँ शोध कर रहे हैं। ध्रुवीय शोध का महत्व निम्नलिखित बिंदुओं के माध्यम से समझा जा सकता है:

  • वायुमंडलीय विज्ञान: ध्रुवों पर वायुमंडलीय प्रक्रियाएं जैसे मेघों का निर्माण और दृढ़ता, सौर विकिरण की प्रकृति एवं उसका संचरण तथा वायुमंडलीय दाब क्षेत्रों में परिवर्तनीयता का वृहद प्रतिरूप आदि वैश्विक जलवायु में एक केंद्रीय भूमिका निभाती हैं।
  • समुद्री जलस्तर में परिवर्तन: पृथ्वी की हिम चादर में परिवर्तनों को समझने से वैश्विक समुद्री जलस्तर में परिवर्तनों के पूर्वानुमान में सहायता मिलती है।
  • मौसम में परिवर्तन: प्रमुख तूफानों, सूखे और चरम मौसम घटनाओं की बढ़ती घटनाओं को समझने हेतु।
  • महासागरीय धाराएं: महासागरीय धाराओं के बदलते प्रतिरूप को समझने के लिए जोकि वैश्विक परिसंचरण में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं।
  • अंतरिक्ष विज्ञान: अत्यधिक शीत की स्थितियों में जैविक संदूषण की संभावना कम हो जाती है। यह ध्रुवीय हिम को उल्कापिंडों के संग्रह के लिए उत्कृष्ट स्थल बना देती है। इसके साथ ही ध्रुवीय पर्यावरण उन प्रौद्योगिकियों का विकास करने हेतु बेहतर स्थान भी सिद्ध हुआ है जिन्हें भविष्य में मंगल ग्रह के अन्वेषण हेतु प्रयुक्त किया जा सकता है।
  • ओजोन छिद्र: अंटार्कटिक ओजोन परत के गंभीर क्षरण और परत को पुनःस्थापित करने के तरीकों को समझने हेतु।
  • आइस कोर: आइस कोर विज्ञान (Ice core science) अतीत की जलवायु को समझने में हमारी सहायता करता है और इस प्रकार, यह भविष्य की जलवायु को समझने के लिए महत्वपूर्ण है।
  • जैव विविधता: ध्रुवीय भालू, पेंगुइन, सील जैसे जीव जंतुओं पर समुद्री हिम की घटती मात्रा के प्रभावों को समझने हेतु।
  • जनसंख्या पर प्रभाव: आर्कटिक पर्यावरण के परिवर्तन के कारण 4 मिलियन एस्किमो लोगों पर पड़ने वाले संभावित प्रभाव।
  • संसाधन: समुद्री नितलीय क्षेत्र का नवीन सर्वेक्षण और तेल एवं गैस या अन्य प्राकृतिक संसाधनों की खोज संबंधी अध्ययन जैसी उपयोगी परियोजनाओं हेतु।

भारत का योगदान:

  • भारत ने अंटार्कटिका क्षेत्र में दो अनुसंधान केंद्र ‘मैत्री’ और ‘भारती’ तथा आर्कटिक में नार्वे के स्वालबार्ड में ‘हिमाद्री’ की स्थापना के साथ ध्रुवीय विज्ञान में अत्यधिक प्रगति की है।
  • एक नोडल एजेंसी के रूप राष्ट्रीय अंटार्कटिक एवं समुद्री अनुसंधान केंद्र (NCAOR) की स्थापना की गयी है। इसे भारत के ध्रुवीय शोध कार्यक्रम की योजना, प्रचार, समन्वय और निष्पादने का अधिशेष प्राप्त है।
  • इसके अतिरिक्त, भारतीय भूवैज्ञानिक सर्वेक्षण, भारत मौसम विज्ञान विभाग, भारतीय सर्वेक्षण विभाग, भारतीय प्राणी सर्वेक्षण, भारतीय वनस्पति सर्वेक्षण, रक्षा अनुसंधान एवं विकास संगठन (DRDO) तथा वैज्ञानिक एवं औद्योगिक अनुसंधान परिषद (CSIR) जैसे कई वैज्ञानिक संस्थान अंटार्कटिका में वार्षिक भारतीय वैज्ञानिक अभियान में नियमित भागीदारी करते हैं।

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