दावानल वन : भारत की फॉरेस्ट फायर नीति के दोष

प्रश्न: क्षतिकारक होने के बावजूद, दावानल वन पारिस्थितिकी तंत्र का एक स्वाभाविक और आवश्यक अवयव है। चर्चा कीजिए। इस संदर्भ में, क्या आप मानते हैं कि भारत की नो फॉरेस्ट फायर (NO FOREST FIRE) नीति पर पुनर्विचार किए जाने की आवश्यकता है? अपने उत्तर के समर्थन में तर्क दीजिए।

दृष्टिकोण

  • दावानल के हानिकारक प्रभावों की संक्षिप्त चर्चा कीजिए।
  • इस बात की चर्चा कीजिए कि किस प्रकार दावानल वन पारिस्थितिकी तंत्र के लिए लाभदायक है।
  • भारत की फॉरेस्ट फायर नीति के दोषों को उजागर कीजिए, तथा नीति पर पुनर्विचार करने की आवश्यकता पर चर्चा कीजिए।

उत्तर

राज्य वन रिपोर्ट (SER) 2015 के अनुसार, 7 करोड़ हेक्टेयर वनों में से 54% से अधिक वन प्राकृतिक और मानव जनित कारकों के कारण आग के प्रति सुभेद्य हैं।

दावानल कई एकड़ में फैली प्राकृतिक वनस्पति को नष्ट कर देता है तथा मानव अधिवासों को काफी क्षति पहुँचाता है। यह जानवरों के विस्थापन अथवा कम समय के भीतर उनके विलुप्त होने को बढ़ावा देता है। दावानल के बाद अत्यधिक वर्षा होने की स्थिति में यह मृदा अपरदन, भूस्खलन तथा राख के प्रवाह का कारण बनता है।

हालांकि, प्राकृतिक दावानल वन पारिस्थितिकी तंत्र से अंतरंग रूप से जुड़े हैं और अनेक उद्देश्यों की पूर्ति करते हैं:

  • नई पीढ़ियों के विकास को बढ़ावा: पेड़-पौधों की कुछ प्रजातियाँ वास्तव में आग पर निर्भर होती हैं। कुछ पेड़ों में आग प्रतिरोधी छाल और शंकु होते हैं, जिनसे पुनरुत्पादन के लिए बीजों की प्राप्ति हेतु ऊष्मा की आवश्यकता होती है। उदाहरण के लिए चैपरल और चारागाह पौधे।
  • वनीय सतह की सफाई: अग्नि सतह के निकट उगने वाली छोटी झाड़ियों को हटा देती है, वन की सतह का कूड़ा-कर्कट साफ़ कर देती है, सतह को सूर्य के प्रकाश के लिए अनावृत करके संसाधन के लिए होने वाली प्रतिस्पर्धा को घटाती है तथा मृदा का पोषण करती है।
  • विशाल आग से बचाव: कम तीव्रता वाली लपटों के द्वारा वनीय सतह से छोटी झाड़ियों के साफ़ हो जाने से विशाल क्षतिकारक दावानल से बचने में सहायता मिलती है जो नियंत्रण से बाहर फैलकर वनों को पूरी तरह नष्ट कर सकता है
  • अधिवास प्रदान करना एवं जैव-विविधता में वृद्धि करना: आग वनों को बड़ी मात्रा में विद्यमान छोटी झाड़ियों से मुक्त करती है, नई घास, औषधीय पौधों और पुनर्जीवित झाड़ियों के लिए स्थान उपलब्ध कराती है, जो अनेक वन्यजीव प्रजातियों को भोजन और अधिवास प्रदान करते हैं। जब आग झाड़ियों की मोटी सतह को नष्ट करती है, तो जल आपूर्ति में वृद्धि हो जाती है जिससे अन्य प्रकार के पौधों और जानवरों को लाभ पहुँचता है।
  • रोगों की समाप्ति: आग रोगों और कीटों को समाप्त कर देती है और मूल्यवान पोषक तत्वों को मुक्त करती है जिससे मिट्टी उपजाऊ बनती है।
  • मृदा पुनर्निर्माण: पर्वतीय दावानल के पश्चात, उर्वरता बढ़ाने वाली राख मानसूनी वर्षा के साथ बहकर नीचे खेतों में पहुँच जाती है जिससे मृदा की उर्वरता बढ़ती है।

वर्तमान में, भारत एक नो फ़ॉरेस्ट फायर नीति का पालन कर रहा है। वन विभाग ने लकड़ी के भंडार की सुरक्षा के लिए ऐतिहासिक रूप से दावानल की रोकथाम की है। हालांकि, यह वन साइज़ फिट्स आल दृष्टिकोण (अर्थात् प्रत्येक परिस्थिति में एक समान दृष्टिकोण) भारतीय परिस्थतियों के अनुकूल नहीं हैं क्योंकि:

  • प्रारंभिक शुष्क मौसम की आग कम तप्त होती है और चरम सूखे के मौसम की अत्यधिक तप्त आग की तुलना में वनस्पतियों के लिए कम हानिकारक होती है। यह लैंटाना जैसे आक्रामक पौधों को नष्ट कर देती है जो पश्चिमी घाट क्षेत्र में आग के प्रसार के लिए ईंधन का कार्य करते हैं।
  • दावानल को दंडनीय अपराध के रूप में वर्गीकृत करके, वन विभाग ने धीरे-धीरे जंगलों को लकड़ी और वन्यजीव उत्पादन प्रणालियों के रूप में वैधता प्रदान की है और वन पारिस्थितिक तंत्र के सांस्कृतिक और आजीविका संबंधी महत्व की उपेक्षा की है।

अतः, ‘नो फ़ॉरेस्ट फायर’ नीति पर पुनर्विचार करने और इसे पारिस्थितिकी एवं स्थानीय ज्ञान प्रणालियों के आलोक में पुन:स्थापित किए जाने की आवश्यकता है। दावानल को पूर्णरूप से विनाशकारी मानने के स्थान पर, नीति निर्माताओं द्वारा दावानल को पुनर्पूवीकारक एवं पुनरुद्धारक दोनों रूपों में देखा जाना चाहिए।

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