शिक्षा के महत्व और वर्तमान समय में इसकी प्रासंगिकता : रवींद्रनाथ टैगोर

प्रश्न: नीचे नैतिक विचारकों/दार्शनिकों के उद्धरण दिए गए हैं। स्पष्ट कीजिए कि वर्तमान संदर्भ में आपके लिए इनके क्या निहितार्थ हैं:

श्रेष्ठतम शिक्षा वह है जो न केवल हमें जानकारी प्रदान करती है, अपितु सभी के अस्तित्व के साथ हमारे जीवन का सामंजस्य भी स्थापित करती है। – रवींद्रनाथ टैगोर

दृष्टिकोण

  • शिक्षा के महत्व के साथ उत्तर आरंभ कीजिए।
  • इस उद्धरण की व्याख्या कीजिए और इसके विभिन्न आयामों को स्पष्ट कीजिए।
  • वर्तमान समय में इसकी प्रासंगिकता पर चर्चा कीजिए।
  • उपयुक्त निष्कर्ष प्रस्तुत कीजिए।

उत्तर

शिक्षा, मानव चरित्र का मूल आधार है। शिक्षा हमारे आस-पास के जगत के विषय में जानकारी प्रदान करती है और राय एवं दृष्टिकोण बनाने में सहायता करती है। यद्यपि यह शिक्षा का अंतिम उद्देश्य नहीं होना चाहिए। टैगोर के अनुसार जानकारी के माध्यम से लोग सशक्त बन सकते हैं, लेकिन वे सहानुभूति के माध्यम से अस्तित्व की पूर्णता प्राप्त करते हैं। सच्ची शिक्षा का उद्देश्य पूर्णता की यह भावना प्राप्त करने में मनुष्यों की सहायता करना होना चाहिए।

शिक्षा से योग्य और नैतिक रूप से विचारशील व्यक्तित्वों का निर्माण होना चाहिए, जो मतभेदों से ऊपर उठने में सक्षम हों और जो जीवन एवं विविधता के प्रति व्यापक दृष्टिकोण रखते हों। इसके द्वारा सहानुभूति, सेवा और आत्म-बलिदान की भावना विकसित करनी चाहिए, जिससे हाशिए पर स्थित लोगों की स्थितियों को सुधारने में सहायता मिल सके। इसके अलावा, इसे हमारे आस-पास की चीजों के महत्व की भावना भी उत्पन्न करनी चाहिए, जो मानव-जीवन के लिए महत्वपूर्ण है। इसलिए, मानव-जाति की भलाई के लिए संसाधनों के प्रभावी और संधारणीय उपयोग को बढ़ावा देना चाहिए। अंततः, एकरूपता थोपे बिना लोगों के मध्य एकता पैदा करने की आवश्यकता है। एकरूपता, व्यक्ति को समाज में प्रभुत्वशाली प्रतिमानों का अंधानुकरण करने के लिए विवश कर सकती है। एकता शांतिपूर्ण और सामंजस्यपूर्ण समाज का निर्माण करती है।

जलवायु परिवर्तन, शरणार्थी संकट आदि जैसी चुनौतियों के लिए सामूहिक कार्रवाई करने की आवश्यकता है। इसके लिए विभिन्न दृष्टिकोणों से मुद्दे की समझ होना आवश्यक है। तभी व्यक्ति संपूर्ण आयामों को देख पाएगा और तद्नुसार कार्य कर पाएगा।

इस परिदृश्य में, मूल्य-आधारित शिक्षा नागरिकों को मतभेदों के प्रति सहिष्णु बनाने और शांतिपूर्वक रहने में सक्षम बनाती है। इससे ठहराव के बजाय समाज का क्रमिक विकास होता है। मानव जीवन के आसपास की चीजों के महत्व के विषय में जानकारी से संसाधनों का संधारणीय और विवेकपूर्ण उपयोग होता है और संसाधन संरक्षण, अंगीकरण और शमन जैसी प्रथाओं को बढ़ावा मिलता है। इस प्रकार पाठ्यक्रम को व्यवस्थित रूप से प्रकृति पर आधारित होना चाहिए। कई दोषयुक्त रेखाओं के साथ विभाजित और संसाधनों के संकट का सामना कर रहा भारतीय समाज, अपनी शिक्षा प्रणाली में इस प्रकार के बदलावों को अपनाकर सर्वाधिक लाभ उठा सकता है।

ऐसी शिक्षा प्रणाली के निर्माण हेतु समाज के सभी हितधारकों की ओर से सक्रिय योगदान की आवश्यकता है। इसे लाभ अर्जित करने वाले नागरिकों के बजाय नैतिक रूप से मजबूत, वैश्विक नागरिकों के निर्माण पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए। इसलिए आज आवश्यकता शिक्षा प्रणाली को इस प्रकार बदलने की है कि जो व्यक्ति और समाज का समुचित संश्लेषण करे और शेष मानवता के साथ व्यक्ति की मूलभूत एकता को साकार करने में सहायता करे।

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