कॉर्पोरेट सामाजिक उत्तरदायित्व (CSR) के एक प्रभावी उपकरण बनने के समक्ष कई चुनौतियां
प्रश्न: भारत की विकास संबंधी चिंताओं को संबोधित करने में सरकार के प्रयासों का पूरक बनने हेतु कॉर्पोरेट सामाजिक उत्तरदायित्व (CSR) के एक प्रभावी उपकरण बनने के समक्ष कई चुनौतियां हैं, जिन्हें दूर करने की आवश्यकता है। परीक्षण कीजिए।
दृष्टिकोण:
- कॉर्पोरेट सामाजिक उत्तरदायित्व (CSR) के पीछे निहित अवधारणा और तर्क को संक्षेप में बताइए।
- भारत की विकास संबंधी चिंताओं के समाधान हेतु सरकार के प्रयासों के पूरक के रूप में CSR की प्रभावशीलता को कम करने वाली चुनौतियों को सूचीबद्ध कीजिए।
- CSR को अधिक प्रभावी बनाने के लिए कुछ प्रासंगिक उपायों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
कॉर्पोरेट सामाजिक उत्तरदायित्व (CSR) एक व्यावसायिक दृष्टिकोण है जो व्यावसायिक संचालन एवं संस्कृति में सामाजिक और पर्यावरण संबंधी चिंताओं को एकीकृत करता है। कंपनी अधिनियम, 2013 के अंतर्गत विधिक रूप से कंपनियों की चयनित श्रेणियों के लिए पिछले तीन वर्षों में हुए औसत निवल लाभ का कम से कम 2% CSR गतिविधियों पर व्यय करने का प्रावधान किया गया है। यदि इसका उचित ढंग से उपयोग किया जाता है, तो CSR निधियां सरकारी योजनाओं पर अत्यधिक गुणात्मक प्रभाव डाल सकती हैं। साथ ही इसके माध्यम से, विकास संबंधी अपरिहार्य आवश्यकताओं को पूरा करने हेतु कॉर्पोरेट एवं तृतीय पक्षीय संगठनों (जैसे विकास संबंधी गैर-सरकारी संगठनों) को एक साथ लाया जा सकता है।
CSR को एक प्रभावी उपकरण बनाने के समक्ष चुनौतियां:
- सशक्त नीति का अभाव: कई फर्मों में उपयुक्त नीतियों के न होने से CSR व्यय को निश्चित दिशा में निर्देशित करना कठिन हो जाता है।
- गतिविधियों का दोहराव: विभिन्न कॉरपोरेट घरानों द्वारा CSR के तहत एक जैसी गतिविधियों का परिणाम सहयोगात्मक दृष्टिकोण के बजाय प्रतिस्पर्धात्मक दृष्टिकोण के रूप में सामने आता है।
- भौगोलिक समता का मुद्दा– विकसित राज्यों जैसे महाराष्ट्र, गुजरात आदि में CSR के रूप में एक बड़ी राशि का व्यय किया जाता है जबकि पूर्वोत्तर राज्य इस संदर्भ में विशेष रूप से पिछड़े हुए हैं।
- स्थानीय आवश्यकताओं और कंपनियों द्वारा वित्त आवंटन के क्षेत्रों के मध्य असम्बद्धता विद्यमान है।
- CSR के संबंध में स्थानीय समुदायों में जागरूकता का अभाव: कंपनियों की CSR गतिविधियों में भाग लेने और योगदान देने के प्रति स्थानीय समुदाय में विश्वास एवं रुचि का अभाव है।
- ग्रामीण क्षेत्रों पर पर्याप्त ध्यान न दिया जाना: शहरी पूर्वाग्रह, ग्रामीण क्षेत्रों के गरीबों को CSR के लाभों से वंचित कर देता
- सुव्यवस्थित गैर-सरकारी संगठनों की अनुपलब्धता: सुदूर क्षेत्रों में ऐसे NGOs कार्यरत नहीं हैं जो समुदाय की वास्तविक आवश्यकताओं का आकलन और पहचान कर सकें।
- परियोजनाओं की पहचान में कठिनाई: कई कंपनियों की CSR अनुदान के पीछे कोई दीर्घकालिक रणनीतिक सोच नहीं होती है।
- CSR व्यय के संबंध में निम्नस्तरीय प्रदर्शन: परियोजना के स्थान को अंतिम रूप नहीं देने, तकनीकी कठिनाइयों, संगठनात्मक अक्षमता और CSR की अवधारणा के साथ असंबद्धता जैसे कारकों के चलते CSR व्यय के मामले में अपेक्षानुरूप प्रदर्शन नहीं हो सका है।
इन चिंताओं के कारण, हाल ही में, कॉर्पोरेट कार्य मंत्रालय ने CSR दायित्वों के अनुपालन की निगरानी के लिए एक केंद्रीकृत प्रणाली की स्थापना करने का निर्णय लिया है। इसके अतिरिक्त, अनिल बैजल समिति की अनुशंसा के अनुसार कंपनियों को स्वैच्छिक रूप से CSR गतिविधियाँ शुरू करने के लिए प्रोत्साहित करने हेतु वार्षिक पुरस्कार प्रदान किए जा सकते हैं ताकि सरकारों के विकास के एजेंडे को लागू करने में व्याप्त “अंतराल को भरने” में CSR अत्यधिक प्रभावी हो सके।
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