भारत में कॉर्पोरेट गवर्नेस से सम्बंधित मुद्दे

  • कॉर्पोरेट गवर्नेस का तात्पर्य नियमों, प्रथाओं और प्रक्रियाओं की एक ऐसी व्यवस्था से है जिसके माध्यम से किसी कंपनी को निर्देशित
    और नियंत्रित किया जाता है।
  • कॉर्पोरेट गवर्नेस के अंतर्गत किसी कंपनी के विभिन्न हितधारकों यथा शेयरधारकों, प्रबंधन, ग्राहक, आपूर्तिकर्ता, वित्तदाताओं, सरकार और समुदाय के हितों के मध्य संतुलन स्थापित किया जाता है।
  • भारतीय सूचीबद्ध कंपनियों के लिए अभिशासन (गवर्नेस) के मापदंड कंपनी अधिनियम, कंपनियों द्वारा एक्सचेंजों के साथ क्लॉज 49 के अंतर्गत हस्ताक्षरित सूचीकरण समझौते (लिस्टिंग एग्रीमेंट) तथा सेबी (सूचीकरण दायित्व और प्रकटीकरण आवश्यकताएं) विनियम, 2015 में निर्धारित किए गए हैं।
  • पूर्व में विभिन्न समितियों ने भारत में कॉर्पोरेट गवर्नेस के मानकों में सुधार की प्रक्रिया में योगदान दिया है यथा – कुमार मंगलम बिड़ला समिति (1999) तथा एन.आर.नारायण मूर्ति समिति (2003)।
  • 2009 में कॉर्पोरेट कार्य मंत्रालय द्वारा कॉर्पोरेट गवर्नेस संबंधी स्वैच्छिक दिशा-निर्देश जारी किए गए।
  • वर्तमान में भारत का कॉर्पोरेट जगत अत्यधिक ऋणग्रस्तता और बोर्ड-रूम विवादों की समस्या का सामना कर रहा है (उदाहरण के
    लिए टाटा, इंफ़ोसिस)।

कॉर्पोरेट गवर्नेस का महत्व

  • विश्व भर में सुचारू रूप से प्रशासित कंपनियों का निवल मूल्य (नेट वर्थ) अपने समकक्षों (निम्न स्तर पर प्रशासित) की तुलना में 1040% अधिक है। बेहतर कॉर्पोरेट गवर्नेस के लाभ सार्वजनिक रूप से सूचीबद्ध कंपनियों के संचालन परिणामों तथा ऐसी कंपनियों के बाजार पूँजीकरण में परिलक्षित हैं।
  • कॉर्पोरेट निकायों द्वारा कॉर्पोरेट प्रशासन के आधारभूत सिद्धांतों का अनुपालन करना, वर्तमान में विदेशी निवेश को आकर्षित करने के लिए एक महत्वपूर्ण कारक बन गया है।
  • एक कंपनी के स्तर पर एक सुदृढ़ गवर्नेस के अनुपालन से, सामान्यतः देश के कॉर्पोरेट कानूनों या उनके क्रियान्वयन से सम्बंधित कमियों के कारण हुई क्षति की भरपाई की जा सकती है।
  • सुदृढ़ कॉर्पोरेट गवर्नेस का क्रियान्वयन कंपनी से संबंधित जोखिमों को नियंत्रित करने और भ्रष्टाचार के अवसर को कम करने में सहायक होता है। प्रायः ऐसी कंपनियों में घोटाले और धोखाधड़ी की संभावना बढ़ जाती है जहां के निदेशकों और वरिष्ठ प्रबंधन द्वारा औपचारिक प्रशासन संहिता का पालन नहीं किया जाता है।
  • एक बेहतर कॉर्पोरेट गवर्नेस प्रणाली का क्रियान्वयन यह भी सुनिश्चित करता है कि कंपनी अपने सदस्यों, अधिकारियों और प्रबंधन के हितों की सुरक्षा करेगी। इसके माध्यम से अभिलेखों (records) को बनाए रखने का अर्थ यह भी है कि आवश्यकता पड़ने पर दस्तावेज़ों के माध्यम से कंपनी के अधिकारियों को उनके कार्यों के लिए उत्तरदायी ठहराया जा सकता है।
  •  एक शेयरधारक अनावश्यक रूप से अधिकारियों द्वारा किए जाने वाले कार्यों पर प्रश्न नहीं उठाएगा। यदि आवश्यकता हो तो उन्हें कंपनी-बुक, अनुमोदित प्रस्ताव और बोर्ड से संबंधित कार्य विवरण दिखाए जा सकते हैं और आश्वस्त किया जा सकता है कि अधिकारी अपने अधिकार क्षेत्र के अंतर्गत ही कार्य कर रहे हैं।

भारत में कॉर्पोरेट गवर्नेस से सम्बंधित मुद्दे

  • बोर्ड की नियुक्तियों में भाई-भतीजावाद।
  • निदेशकों के निष्पादन मूल्यांकन (परफॉरमेंस अप्रेज़ल) में प्रभाविता और पारदर्शिता का अभाव।
  • भारत में स्वतंत्र निदेशकों द्वारा सामान्यतः निष्क्रिय भूमिका निभाई जाती है और यदि वे प्रवर्तकों का समर्थन नहीं करते तो उन्हें आसानी से हटाया भी जा सकता है।
  • प्रायः सामान्य बैठकों में बोर्ड के सभी सदस्यों के उपस्थिति न होने के कारण हितधारक उनसे प्रश्न पूछने में असमर्थ रहते हैं।
  • कार्यकारी मुआवजा नीतियों में पारदर्शिता का अभाव है और इसमें शेयरधारकों की स्वीकृति की आवश्यकता नहीं है।
  • पारिवारिक स्वामित्व वाली भारतीय कंपनियों में अत्यधिक नियंत्रण और अनुपयुक्त उत्तराधिकार योजना होती है।
  • अव्यावहारिक जोखिम मूल्यांकन नीतियां।
  • निजता, डेटा संरक्षण तथा साइबर सुरक्षा को कम महत्व दिया जाना।
  • बोर्ड द्वारा कॉर्पोरेट सोशल रिस्पॉन्सिबिलिटी (CSR) परियोजनाओं की दिशा में गंभीर प्रयासों का अभाव।

 कॉर्पोरेट गवर्नेस पर सेबी द्वारा गठित समिति (Sebi Panel on Corporate Governance)

कॉर्पोरेट गवर्नेस पर उदय कोटक समिति ने अपनी रिपोर्ट सेबी को सौंप दी है। इस पैनल द्वारा कॉर्पोरेट गवर्नेस में विभिन्न सुधारों के संबंध में सुझाव दिए गए हैं।

सेबी द्वारा अनुमोदित कोटक समिति की अनुशंसाएँ:

पारदर्शिता को बढ़ाना- प्रकटीकरण (डिस्क्लोजर) में वृद्धि यथा:

  • अधिमानी आवंटन (प्रेफरेंशियल अलॉटमेंट) और QIPs (क्वालिफाइड इंस्टीट्यूशनल प्लेसमेंट) के माध्यम से प्राप्त किए गए धन
    के उपयोग का पूर्ण प्रकटीकरण।
  • ऑडिटर की योग्यता (क्रेडेंशियल), ऑडिट शुल्क, ऑडिटर के इस्तीफे के कारणों का प्रकटीकरण।
  • निदेशकों की विशेषज्ञता/कौशलों के प्रकटीकरण और जवाबदेहिता को बढ़ाने हेतु रिलेटेड पार्टी ट्रांजैक्शन (RPT) का
    प्रकटीकरण।

हाल ही में, केंद्रीय मंत्रिमंडल द्वारा राष्ट्रीय वित्तीय सूचना प्राधिकरण (National Financial Reporting Authority-NFRA) की स्थापना के लिए स्वीकृति प्रदान की गई है।

  • इसकी अनुशंसा कंपनी अधिनियम, 2013 के अंतर्गत की गई थी।
  • इसमें एक अध्यक्ष, तीन पूर्णकालिक सदस्य एवं नौ अंशकालिक सदस्य होंगे।
  • कैबिनेट सचिव की अध्यक्षता वाली एक समिति (यह समिति खोज और चयन दोनों कार्य करेगी) इस प्राधिकरण के अध्यक्ष और पूर्ण कालिक सदस्यों के नाम की अनुशंसा करेगी।

इसे एक स्वतंत्र नियामक के रूप में स्थापित किया गया है। यह लेखा व्यवसाय तथा लेखांकन मानकों की निगरानी करेगी और साथ ही सभी सूचीबद्ध कंपनियां और बड़ी असूचीबद्ध कंपनियां इसके न्यायिक क्षेत्राधिकार में आएंगी।

  • चार्टर्ड एकाउंटेंट्स एक्ट,1949 के अंतर्गत ICAI (The Institute of Chartered Accountants of India) छोटी
    असूचीबद्ध कंपनियों की लेखापरीक्षा जारी रखेगा।
  • क्वालिटी रिव्यु बोर्ड द्वारा भी प्राइवेट लिमिटेड कंपनियों, सार्वजनिक असूचीबद्ध कंपनियों और NFRA द्वारा प्रत्यायोजित
    कंपनियों की गुणवत्ता लेखा परीक्षा जारी रखी जाएगी।

इसे स्वतः संज्ञान से या कदाचार की शिकायत प्राप्त होने पर किसी चार्टर्ड अकॉउंटेंट तथा उसकी कंपनी की जांच करने की शक्ति प्राप्त होगी। यदि पेशेवर अथवा अन्य कदाचार सिद्ध हो जाते हैं तो: यह किसी व्यक्ति के सन्दर्भ में न्यूनतम एक लाख रुपये का अर्थदंड (जिसे प्राप्त फीस के पांच गुना तक बढ़ाया जा सकता है) तथा किसी कंपनी के संदर्भ में न्यूनतम दस लाख रुपये का अर्थदंड (जिसे प्राप्त फीस के दस गुना तक बढ़ाया जा सकता है) आरोपित कर सकता है। यह किसी ऑडिटर को 6 माह से लेकर अधिकतम 10 वर्षों तक प्रतिबंधित कर सकता है।

निदेशक मंडल के संस्थान की पुनर्संरचना और बोर्ड की समितियों की भूमिका का विस्तार करना:

यह निम्नलिखित उपायों के माध्यम से किया जा सकता है:

  • शीर्ष की 500 सूचीबद्ध कंपनियों में अध्यक्ष (अर्थात् जो बोर्ड के अध्यक्ष है) और CEO/MD (अर्थात् प्रबंधन के अध्यक्ष) के पद
    का पृथक्करण।
  • बोर्ड की शक्ति में विस्तार करना और विविधता को बढ़ाना, जिसके तहत 1 अप्रैल, 2019 तक शीर्ष 1000 तथा 1 अप्रैल,
    2020 तक शीर्ष की 2000 सूचीबद्ध कंपनियों के बोर्ड में न्यूनतम 6 निदेशक होंगे।
  •  इसके अतिरिक्त, शीर्ष 500 सूचीबद्ध कंपनियों (बाजार पूंजीकरण द्वारा) तथा शीर्ष 1000 सूचीबद्ध कंपनियों में क्रमश: 1 अप्रैल, 2019 और 1 अप्रैल, 2020 तक न्यूनतम एक स्वतंत्र महिला निदेशक की नियुक्ति की जानी चाहिए।
  • निदेशक मंडल की गणपूर्ति (कोरम) निदेशक मंडल की कुल संख्या के एक तिहाई के बराबर होनी चाहिए।
  •  निदेशक के रूप में किसी व्यक्ति द्वारा अधिकतम 8 पद धारण किये जाने की अनुमति देना।

सभी निवेशकों के लिए एल्गोरिदम ट्रेडिंग का स्तर एक-समान बनाए रखनाः

  • स्टॉक एक्सचेंजों द्वारा ट्रेडिंग करने वाले सदस्यों के लिए लागत को कम करने हेतु साझा को-लोकेशन सेवाओं की अनुमति
    प्रदान की जाएगी। को-लोकेशन सुविधा के अंतर्गत एक्सचेंज द्वारा अपने यहाँ ट्रेडिंग करने वाले सदस्यों और डेटा वेंडरों को एक्सचेंज के परिसर में या उसके आस-पास अपना ट्रेडिंग या डाटा सिस्टम स्थापित करने की अनुमति दी जाती है।
  • सभी व्यापारिक सदस्यों के लिए मुफ्त टिक-बाई-टिक डेटा फीड (प्रयोक्ताओं को डेटा स्रोत से अद्यतन डेटा उपलब्ध कराने
    वाली प्रणाली)।

 समितियों की वर्द्धित भूमिका

  • लेखापरीक्षा समिति को किसी होल्डिंग कंपनी द्वारा उसकी सहायक कंपनी में 100 करोड़ अथवा उसकी परिसम्पत्तियों के
    आकार के 10 प्रतिशत से अधिक (जो भी कम हो) के अग्रिम/ निवेश की तथा/अथवा ऋण के उपयोग की समीक्षा करनी होगी।
  • वरिष्ठ प्रबंधन की नियुक्ति और हटाए जाने की सिफारिश करने वाली नामांकन और पारिश्रमिक समिति की भूमिका का विस्तार
    किया गया है।
  • जोखिम प्रबंधन समिति अब विशेष रूप से साइबर सुरक्षा से संबंधित मुद्दों की भी जांच करेगी।
  • अनेक सहायक कंपनियों वाली जटिल कॉर्पोरेट संरचना के मामले में, सहायक कंपनियों पर अधिक दायित्वों तथा अनिवार्य सेक्रेटेरियल ऑडिट के आरोपण के माध्यम से कॉर्पोरेट गवर्नेस को निचले स्तरों पर लागू किया जाना
  • किसी भुगतान के राजस्व के 2% से अधिक होने पर माइनॉरिटी शेयरहोल्डर्स (50% से कम शेयरों का धारक) का अनुमोदन
    अनिवार्य बनाकर शेयरधारकों की सहभागिता और संलग्नता को बढ़ाने की आवश्यकता है।

महत्व

  • कॉर्पोरेट गवर्नेस मानदंडों में अनुमोदित सुधारों का उद्देश्य कॉर्पोरेट गवर्नेस मानकों को सर्वोत्तम वैश्विक मानकों के अनुरूप बनाना
  • इससे भारतीय कॉर्पोरेट क्षेत्र में माइनॉरिटी शेयरहोल्डरों के हितों को क्षति पहुंचा कर स्थापित किये जाने वाले प्रमोटर-राज के
    जोखिमों को कम करने में सहायता मिलेगी।
  • कई मामलों में प्रकटीकरण को पहले से अधिक आवश्यक बनाने जैसी अनुशंसाएँ, कंपनी के प्रबंधकों और उसके शेयरधारकों के मध्य सूचनाओं की असंगतता को कम करने में सहायक होंगी।
  • हालांकि, यह भी चिंता का विषय है कि छोटी सूचीबद्ध कंपनियों को इन अनुपालन आवश्यकताओं से अलग रखा गया है। साथ ही सूचीबद्ध इकाइयों पर अनुपालन का भार बढ़ जाएगा।

Related Topics

Add a Comment

Your email address will not be published. Required fields are marked *


The reCAPTCHA verification period has expired. Please reload the page.