तटीय सुरक्षा (Coastal Security)

भारत के तटीय क्षेत्रों की विशेषता यहाँ विभिन्न प्रकार की स्थलाकृतियों का पाया जाना है। इनमें क्रीक, छोटी खाड़ियाँ, बैकवॉटर (पश्चजल), रिव्यूलेट्स (छोटी नदियाँ), लैगून, दलदल, समुद्र तट, छोटे द्वीप (आबादी वाले तथा निर्जन) इत्यादि शामिल हैं। वस्तुतः भारत की लंबी तट रेखा विभिन्न सुरक्षा चिंताओं को भी प्रस्तुत करती है, जिनमें शामिल हैं:

  • तस्करी: तटीय क्षेत्र में निर्जन स्थानों पर हथियारों और विस्फोटकों को उतारा जाना।
  • घुसपैठ: राष्ट्र-विरोधी तत्वों की घुसपैठ या उनका देश छोड़कर भागना। इसका उदाहरण 2008 के मुंबई हमलों के दौरान देखा
    गया था।
  • समुद्री आतंकवाद: आपराधिक गतिविधियों के लिए समुद्री एवं अपतटीय द्वीपों का उपयोग।
  • समुद्री डकैती एवं सशस्त्र लूटपाट : समुद्री मार्गों के माध्यम से उपभोक्ता व मध्यवर्ती वस्तुओं की तस्करी।

तटों पर भौतिक अवरोधों की अनुपस्थिति और इन स्थानों पर महत्वपूर्ण औद्योगिक तथा रक्षा प्रतिष्ठानों की मौजूदगी अवैध सीमापारीय गतिविधियों के लिए तटों की सुभेद्यता को बढ़ाती है। भारत की विभिन्न तटवर्ती सीमाएं राजनीतिक रूप से अस्थिर, आर्थिक मंदी से जूझ रहे और अमित्रवत देशों यथा श्रीलंका, बांग्लादेश, पाकिस्तान और खाड़ी देशों के करीब हैं जिससे यह और भी सुभेद्य हो जाती हैं।

तटीय सुरक्षा हेतु किए गए संस्थागत उपाय

सर्वोच्च स्तर पर समुद्री और तटीय सुरक्षा संबंधी सभी मामलों का समन्वय समुद्री और तटीय सुरक्षा के सुदृढ़ीकरण हेतु राष्ट्रीय समिति (NCSMCS) करती है। साथ ही यह समय-समय पर सभी हितधारकों के साथ मिलकर समुद्री मार्ग से होने वाले खतरों के विरुद्ध तटीय सुरक्षा की समीक्षा करती है।
वर्तमान में देश के तटीय राज्यों के लिए त्रि-स्तरीय सुरक्षा व्यवस्था स्थापित की गई है।

  • 12 नॉटिकल मील प्रादेशिक जलीय क्षेत्र सहित 200 नॉटिकल मील तक का समस्त समुद्री क्षेत्र भारतीय तट रक्षक बल
    और भारतीय नौसेना के अधिकार क्षेत्र में है।
  • संबंधित तटीय राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों के पुलिस बलों के अधिकार क्षेत्र में तट से 12 नॉटिकल मील तक का क्षेत्र
    शामिल है।

तटीय सुरक्षा योजना (CSS) की विशेषताएं

  • 2005-2011 की अवधि के दौरान CSS चरण-1 को नौ तटीय राज्यों और चार तटीय संघ शासित प्रदेशों में लागू किया गया
    था तथा CSS चरण-॥ की अवधि 2010 से 2020 तक है।
  • तटीय पुलिस स्टेशनों (CPS), तटीय चेक पोस्ट्स, समुद्री संचालन (ऑपरेशन) केंद्रों और नौकाओं / इंटरसेप्टर नौकाओं के रखरखाव एवं ठहरने के लिए रणनीतिक स्थानों पर जेटीज़ (Jetties) का निर्माण कर पेट्रोलिंग की व्यवस्था।
  • आधुनिक तकनीकी उपायों जैसे स्वचालित पहचान प्रणाली (AIS) रिसीवर और ओवरलैपिंग तटीय रडारों की एक श्रृंखला के माध्यम से निगरानी। भारतीय नौसेना द्वारा मुंबई, विशाखापत्तनम, कोच्चि और पोर्ट ब्लेयर में तटीय सुरक्षा हेतु निरीक्षण और नियंत्रण केंद्र के रूप में संयुक्त संचालन केंद्रों की स्थापना।
  • तकनीकी कार्यबल और प्रशिक्षण सुविधाओं की कमी में सुधार हेतु समुद्री पुलिस प्रशिक्षण संस्थानों (MPTIs) की स्थापना।
  • मर्चेट शिपिंग एक्ट, 1958 के तहत जलयानों / नौकाओं का पंजीकरण।
  • राज्यों में समुद्री क्षेत्र के विकास की सुविधा हेतु राज्य समुद्री बोर्डो (SMBs) का गठन और गैर प्रमुख बंदरगाहों को प्रोत्साहन देना।
  • तटीय सुरक्षा योजना के कार्यान्वयन की निगरानी करने और विभिन्न हितधारकों के मध्य बेहतर समन्वय सुनिश्चित करने हेतु
    सचिव (सीमा प्रबंधन) के स्तर पर एक संचालन समिति।

योजना से संबंधित चिंताएं

  • लक्ष्य की अनुपस्थिति: परियोजनाओं में से अधिकांश कार्यक्रम क्रियान्वित नहीं किये गए हैं और आवंटित राशि के आधे से भी कम का उपयोग हुआ है।
  • प्रक्रियात्मक विलंब: निगरानी पोत और अन्य महत्वपूर्ण घटकों की खरीद में विलंब के कारण सामरिक स्थानों पर अपर्याप्त निगरानी। 10 योजनागत MOCs में से केवल एक ही कार्यान्वित किया जा सका है। CAG की एक रिपोर्ट में पाया गया कि 10 योजनाबद्ध जेटीज़ के लिए अभी तक अंतिम रूप से स्थान तय नहीं हुए हैं और 20 तटीय पुलिस स्टेशनों के उन्नयन पर काम अभी शुरू नहीं हुआ है।
  • तटीय योजना चरण II के सभी योजना घटक बगैर किसी वित्तीय बाधा के वास्तविक योजना लक्ष्यों से काफी पीछे थे।

तटीय सुरक्षा हेतु सरकार द्वारा उठाए गए कदम

  • भारतीय नौसेना की भारतीय समुद्री सुरक्षा रणनीति (IMSS) 2015: इसके अंतर्गत विभिन्न समुद्री एजेंसियों के मध्य वृहद समन्वय की परिकल्पना; हिंद महासागर के प्रमुख समुद्री मार्गों (SLOCs) को सुरक्षित करना; समुद्री आतंकवाद, समुद्री डकैती इत्यादि के नवीन आकलन हेतु समुद्री सुरक्षा ऑपरेशन; बहुपक्षीय समुद्री संबद्धता, स्थानीय क्षमता निर्माण, तकनीकी सहयोग इत्यादि सम्मिलित हैं।
  • तटीय राज्यों / केंद्रशासित प्रदेशों में समुद्री पुलिस बल की सुरक्षात्मक अवसंरचना के सुदृढीकरण हेतु तटीय सुरक्षा योजना (CSS)।
  • केंद्रीय समुद्री पुलिस बल (CMPF): हाल ही में केंद्रीय गृहमंत्री ने समुद्रों, तटों, बंदरगाहों और महत्वपूर्ण संस्थानों की रक्षा और तटवर्ती क्षेत्रों में हुए अपराधों की जांच के लिए केंद्रीय समुद्री पुलिस बल स्थापित करने के प्रस्ताव को मंजूरी दी है।
  • तटीय निगरानी नेटवर्क परियोजना- सम्पूर्ण तटरेखा के निकट अंतराल-रहित इलेक्ट्रॉनिक निगरानी उपलब्ध कराना और अज्ञात जहाजों की घुसपैठ पर प्रतिबन्ध लगाना। सम्पूर्ण पश्चिमी तट निरंतर निगरानी में है। इसके साथ कुछ स्थानों पर छोटे अंतरालों (अंतर) को भरने के लिए और अधिक तटीय रडार स्थापित किए जा रहे हैं।
  • निगरानी और खुफिया कार्यों में मछुआरों को शामिल करना: मछुआरों के समूहों को, तटीय सुरक्षा के ‘कान और आंख’ के रूप में जाना जाता है। इनमें ऐसे प्रशिक्षित स्वयंसेवक (volunteers) शामिल हैं जो समुद्रों और तटीय सीमा क्षेत्रों की निगरानी करते हैं।
  • समुद्री क्षेत्रों में जागरूकता बढ़ाना : नेशनल कमांड कंट्रोल कम्युनिकेशन एंड इंटेलिजेंस नेटवर्क (NC3I) के माध्यम से अति महत्वपूर्ण तटीय सुरक्षा नेटवर्क विकसित करना। यह हमारे तट के नजदीक से गुजरने वाले सभी जहाजों, ड्रोनों, मत्स्यन नौकाओं तथा अन्य सभी जहाजों के सम्बन्ध में आंकड़ों का संग्रहण एवं उनका प्रसार करता है।
  • क्षमता निर्माण – नौसेना और तट रक्षक बलों ने सभी तटीय राज्यों की समुद्री पुलिस को आवधिक समुद्री प्रशिक्षण भी प्रदान किया है।
  • हिंद महासागर नौसेना संगोष्ठी (Indian Ocean Naval Symposium) क्षेत्रीय रूप से प्रासंगिक समुद्री मुद्दों पर परिचर्चा हेतु एक खुला और समावेशी मंच प्रदान करता है।
  • भारतीय नौसेना को अपने अड्डों और सुभेद्य क्षेत्रों तथा अतिसंवेदनशील स्थानों की सुरक्षा हेतु सागर प्रहरी बल नामक एक विशेष बल के गठन की भी आवश्यकता है।

तटीय सुरक्षा से सम्बंधित मुद्दे

  • तटीय पुलिस द्वारा पेट्रोलिंग में, विशेष रूप से रात में, कमी आना (90 प्रतिशत से अधिक) और मत्स्यन जलयानों की भौतिक रूप से जांच-पड़ताल में गिरावट।
  • भूमि अधिग्रहण में विलंब और समर्थनकारी अवसंरचना, जैसे बैरकों और स्टाफ क्वार्टर, का निर्माण कई स्थानों पर अभी भी नहीं हुआ है। कार्यबल और इंटरसेप्टर नौकाओं की कमी के कारण समुद्री पुलिस स्टेशन प्रभावी ढंग से कार्य नहीं कर रहे हैं।
  • समुद्री पुलिस का अपर्याप्त प्रशिक्षण: हालांकि समुद्री पुलिस को समग्र तटीय सुरक्षा का कार्य सौंपा गया है लेकिन उन्हें आतंकवाद का सामना करने हेतु प्रशिक्षित नहीं किया गया है।
  • समुद्री और तटीय सुरक्षा के सुदृढ़ीकरण हेतु राष्ट्रीय समिति (NCSMCS) के सर्वोत्तम प्रयासों के बावजूद समन्वय अस्थायी ही बना हुआ है। दुर्भाग्यवश, राष्ट्रीय समुद्री प्राधिकरण (NMA) के निर्माण के प्रस्ताव वाला तटीय सुरक्षा बिल 2013 से अभी तक लालफीताशाही के कारण पारित नहीं हो सका है।
  • एक समन्वयकारी तंत्र की कमी- तटीय सुरक्षा के कार्य में नौसेना, तटरक्षक बल, समुद्री पुलिस और अन्य प्राधिकरणों जैसी कई एजेंसियाँ संलग्न हैं। अतः सूचनाओं का साझाकरण और समन्वय एक बड़ी समस्या है।
  • बंदरगाहों की सुरक्षा तटीय सुरक्षा व्यवस्था में सबसे उपेक्षित क्षेत्रों में से एक है। हाल ही में IB के एक ऑडिट में यह पाया गया कि भारत में 227 छोटे बंदरगाहों में से कुछ में ही सुरक्षा की उचित व्यवस्था है।
  • मौजूदा नौसेनिक परिसंपत्तियों के लिए राज्य स्तर पर निम्नस्तरीय निगरानी तंत्र तथा रख-रखाव और परिचालन तंत्र का अभाव।
  • CMPF के साथ समस्या: राज्य नियंत्रित समुद्री पुलिस को एक केंद्रीय बल के द्वारा प्रतिस्थापित किया जाना संरचनात्मक बाधाओं को अनदेखा करता है; जैसे कि स्थानीय खुफिया जानकारियों का अभाव, क्षेत्रीय भाषा कौशल की कमी और दोनों पक्षों के मध्य अधिकार क्षेत्र को लेकर विवाद।

आगे की राह

  • तटीय पुलिस की सशक्त भागीदारी- बिना किसी विधिक अधिकार वाले एक तटीय सीमा सुरक्षा बल की स्थापना के बजाय राज्य पुलिस एजेंसियों को एकीकृत किया जा सकता है। इससे आम लोगों के माध्यम से प्राप्त होने वाली आसूचना के प्रवाह को सुविधाजनक बनाया जा सकता है तथा अपराधियों की पहचान करने और उन्हें बंदी बनाने में मछुआरों एवं स्थानीय समुदायों से सहायता प्राप्त करने की इन पुलिस बलों की विशिष्ट पहुंच का इस्तेमाल किया जा सकता है।
  • एक विधायी ढांचे की आवश्यकता है- नौपरिवहन और बंदरगाह क्षेत्र, दोनों को सम्मिलित करते हुए भारत की समुद्री अवसंरचना की सुरक्षा हेतु नियम एवं प्रक्रियाओं के संदर्भ में व्यापक कानूनों को लागू किया जाना चाहिए।
  • तटरक्षक बल (CG) को सुदृढ़ बनाना- तटरक्षक बल अधिनियम की सभी अस्पष्टताओं को दूर कर इसे मजबूत किया जाना चाहिए। तटीय सुरक्षा के संदर्भ में एक स्पष्ट कमांड श्रृंखला और परिभाषित मानक संचालन प्रक्रियाएं होनी चाहिए।
  • राष्ट्रीय वाणिज्यिक समुद्री सुरक्षा नीति प्रपत्र – सरकार को वाणिज्यिक समुद्री सुरक्षा हेतु अपनी रणनीतिक दृष्टि को स्पष्ट करने के लिए राष्ट्रीय वाणिज्यिक समुद्री सुरक्षा नीति प्रपत्र जारी करना चाहिए।

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