रेत खनन (Sand Mining)

खान मंत्रालय ने रेत खनन क्षेत्र के मुद्दों को संबोधित करने हेतु राज्य सरकारों की सहायता के लिए एक रेत खनन फ्रेमवर्क जारी किया है।

पृष्ठभूमि

  • वित्त वर्ष 2017 में देश में रेत की मांग लगभग 700मिलियन टन थी और यह वार्षिक रूप से 6-7% की दर से बढ़ रही है।
  • नीलामी प्रक्रिया की जटिलता को कम करने और खनिज ब्लॉकों की नीलामी में राज्यों की सहायता करने के लिए सरकार ने नवंबर 2017 में खनिज नीलामी नियम, 2015 में संशोधन किया है।
  • केंद्रीय सांख्यिकी कार्यालय (CSO) के अनुसार, निर्माण क्षेत्र में 6% की संयुक्त वार्षिक दर से वृद्धि हुई है तथा तीव्र शहरीकरण एवं अवसंरचना के विकास और सभी के लिए आवास जैसी सरकारी पहलों के कारण रेत की मांग में वृद्धि हो रही
  • खान मंत्रालय के अनुसार, 2015-16 में गौण खनिजों के अवैध खनन के 19,000 मामले दर्ज किए गए थे, जिनमें रेत शामिल थो (इन्फोग्राफिक: अवैध खनन का प्रभाव)
  • मई, 2017 में सरकार ने विभिन्न राज्यों में रेत खनन की मौजूदा प्रणाली का अध्ययन करने के लिए एक समिति गठित की और राज्यों द्वारा अनुकरण किए जाने हेतु मॉडल के रूप में व्यापक रेत खनन नीति / दिशा-निर्देश का सुझाव दिया।

रेत

खान और खनिज (विकास और विनियमन) अधिनियम, 1957 (MMDR Act) के अनुसार, रेत एक गौण खनिज है। इसके अनुसार रेत खनन को संबंधित राज्य सरकारों द्वारा विनियमित किया जाता है।

रेत खनन से संबंधित तथ्य

  • रेत खनन का आशय मुख्यतः खुले गड्ढो का खनन कर रेत के निष्कर्षण से है।
  • रेत के मुख्य स्रोतों में कृषि क्षेत्र, नदी तल व बाढ़ के मैदान, तटीय व समुद्री रेत, झील व जलाशय आदि शामिल हैं।
  • रेत खनन समुद्र तट, अंतर्देशीय बालू के टीलों तथा समुद्र तल एवं नदी तल के निष्कर्षण द्वारा भी किया जाता है।
  • यह रूटाइल, इल्मेनाइट और जिरकॉन जैसे खनिजों के निष्कर्षण हेतु किया जाता है, जिसमें टाइटेनियम और ज़िर्कोनियम जैसे उपयोगी तत्व पाए जाते हैं।

संबंधित मुद्दे

  • नीलामी के दौरान खनन कम्पनियों के मध्य व्यवसायी समूहन (कार्टलाइजेशन) के कारण राजस्व की हानि।
  • कई शहरों में रेत की अनुपलब्धता के कारण वहां इसकी उच्च कीमतें और सरकार द्वारा सुदृढ़ निगरानी प्रणाली और विनियमन की अनुपस्थिति।
  • प्रयोज्य रेत के साथ निम्न गुणवत्ता वाली रेत के मिश्रण के कारण दुर्बल इमारतों का निर्माण।
  • मरुस्थलीय रेत और समुद्री रेत निर्माण कार्यों के लिए उपयुक्त नहीं है: मरुस्थलीय क्षेत्रों में तीव्र पवनों के कारण रेत के कणअत्यधिक गोल होते हैं, जिससे वे एक साथ बने रहने में असमर्थ होते हैं।
  • समुद्री रेत बेहतर होती है, परंतु इसकी लवणीय सामग्री के परिणामस्वरूप प्रबलित कंक्रीट में स्टील का संक्षारण होता है। इस प्रकार
    नदी-रेत अत्यधिक मांग वाले खनिज बन जाते हैं।

संधारणीय रेत खनन का महत्व

  • पारिस्थितिक तंत्र की सुरक्षा और पुनर्नवीकरण द्वारा नदी संतुलन और इसके प्राकृतिक पर्यावरण के संरक्षण को सुनिश्चित करना।
  • नदी के अनुप्रवाह (downstream) विस्तार, विशेषकर हाइड्रोलिक संरचनाओं जैसे- जलबंधकों (jetties), जल अंतर्ग्रहण इत्यादि के
    पास भूमि उच्चयन (aggradation) को रोकना और यह सुनिश्चित करना कि नदियाँ अपनी स्थाई अवस्थिति से परे किसी अतिरिक्त तट और नितल अपक्षय से संरक्षित है।
  • यह सुनिश्चित करना कि नदी के प्रवाह, जल परिवहन और तटवर्ती निवासों के पुनरुद्धार में कोई बाधा न आए।
  • जल गुणवत्ता में ह्रास के लिए उत्तरदायी नदी जल प्रदूषण से बचाव करना।
  • ऐसे स्थानों पर जहां दरार भूजल पुनर्भरण के लिए नियंदन का कार्य करते है, वहां रेत खनन को प्रतिबंधित कर भूजल प्रदूषण को रोकना।
  • उत्खनन के स्थानों, अवधि और मात्रा के निर्धारण हेतु अवसाद परिवहन सिद्धांतों के अनुप्रयोगों के माध्यम से संतुलन को बनाए रखना।

खनन फ्रेमवर्क की प्रमुख विशेषताएँ

  • MoEFCC द्वारा सतत रेत खनन प्रबंधन दिशा-निर्देश 2016 में निर्धारित दिशानिर्देशों के अनुसार ही खनन कार्य किए जाएंगे।

रेत के विकल्प:

शहरीकरण एवं अवसंरचना विकास की तीव्र गति की मांग को पूरा करने के लिए निम्नलिखित विकल्पों के प्रयोग की आवश्यकता है:

  • विनिर्मित रेत (M-SAND), जो चट्टानों और खदान से प्राप्त पत्थरों को पीसकर, 150 माइक्रॉन के निर्धारित आकार में बनायी
    जाती है। नदी की रेत की तुलना में, यह सस्ती होती है और इसमें सीमांत रूप से अधिक बंधन शक्ति (बांड स्ट्रेंथ) होती है। साथ
    ही इसके गारे में उच्च संपीडन शक्ति होती है।
  • कोल ओवरबर्डन (coal overburden) से उत्पादित रेत।
  • तटीय राज्यों की आवश्यकता को पूरा करने के लिए मलेशिया और फिलीपींस जैसे अन्य देशों से रेत आयात करना।
  • प्राकृतिक रेत पर निर्भरता को कम करने के लिए निर्माण सामग्री में वैकल्पिक प्रौद्योगिकियों को प्रोत्साहित करना।

वहनीयता: वहनीयता निम्नलिखित के माध्यमों से प्राप्त की जा सकती है

  •  प्रशासनिक तंत्र की अपेक्षा आपूर्ति पक्ष से कीमत को नियंत्रित करना;
  • खदानों को बंद करना तथा पड़ोसी राज्यों को रेत की गैर-क़ानूनी आपूर्ति को रोकना।
  • इस संसाधन के बेहतर और कुशल प्रबंधन के लिए GPS/RFID सक्षम समर्पित वाहनों के उपयोग के माध्यम से परिवहन को विनियमित करना।

व्यापार मॉडल:

राज्यों को अपने उद्देश्य के आधार पर दो मॉडलों में से किसी एक को चुनना चाहिए:

  • बाज़ार मॉडल (Simple Forward Auction): राज्य को अधिकतम राजस्व प्राप्ति के लिए।
  • अधिसूचित/नियंत्रित कीमत मॉडल: कीमतों और परिचालन को नियंत्रित करने हेतु।

राज्यों का वर्गीकरणः

मांग और आपूर्ति की स्थिति के विश्लेषण के आधार पर तथा राज्यों की आवश्यकताओं के अनुसार नीति एवं विनियमन तैयार करने में उनकी सहायता करने के उद्देश्य से रेत अधिशेष राज्य, पर्याप्त रेत वाले राज्य और रेत की कमी वाले राज्यों के रूप में विभिन्न राज्यों का वर्गीकरण किया गया है।

पृथक रेत खनन नीति और नियम: प्रत्येक राज्य के लिए क्षेत्र के बेहतर प्रबंधन करने के लिए यह आवश्यक है और केवल राज्य खनन विभाग को राज्य में रेत खनन को विनियमित करने का अधिकार दिया जाए।

जिला सर्वेक्षण रिपोर्ट (DSR): यह रिपोर्ट किसी विशेष जिले में उपलब्ध रेत की वार्षिक मात्रा और उसके उपयोग का अनुमान लगाने के लिए राज्य सरकार द्वारा तैयार की जाएगी।

स्वीकृति और अनुमोदन: मंजूरी और अनुमोदन प्राप्त करने का उत्तरदायित्व केवल पट्टेदार ठेकेदारों को दिया जाना चाहिए और
विभाग को केवल सहायक/नियामक की भूमिका निभानी चाहिए।

360 डिग्री निगरानी तंत्र: राज्यों को पट्टे (लीज़) पर दिए गए प्रत्येक स्थान पर और राज्य में इसके परिवहन के दौरान, उत्खनित खनिज की निगरानी और मापन के लिए एक मजबूत प्रणाली शुरू करने और उसे भली-भांति स्थापित करने की आवश्यकता है।

नदियों का वर्गीकरण: राज्यों को स्ट्रीम ऑर्डर I, II, III, IV या इससे अधिक; के आधार पर नदियों को वर्गीकृत करने की आवश्यकता है।स्ट्रीम I, II और || के लिए, तटों के किनारे स्थित गांवों या कस्बों में स्थानीय उपयोग के लिए रेत को मैन्युअल (हाथ से खनन कार्य) तरीके से निष्कर्षित करने की अनुमति दी जा सकती है, जबकि ऑर्डर IV और उससे ऊपर की धाराओं के लिए, धारणीय
वाणिज्यिक खनन और उपयोग के लिए बोली-प्रक्रिया का प्रयोग किया जाता है।

सतत रेत खनन प्रबंधन दिशा-निर्देश, 2016 की मुख्य विशेषताएँ

  • यह जिला कलेक्टर की अध्यक्षता वाले जिला पर्यावरण प्रभाव आकलन प्राधिकरण द्वारा जिला स्तर पर रेत और सूक्ष्म खनिजों के
    खनन के लिए खदान पट्टा क्षेत्र हेतु पांच हेक्टेयर तक के क्षेत्र के लिए पर्यावरण मंजूरी दिए जाने की अनुमति देता है।
  • राज्य 50 हेक्टेयर तक खदान पट्टा क्षेत्रों के लिए मंजूरी देंगे, जबकि केंद्र द्वारा 50 हेक्टेयर से अधिक क्षेत्रों के लिए अनुमति प्रदान की जाएगी।
  • यह बार कोडिंग, रिमोट सेंसिंग इत्यादि जैसे उपकरणों के माध्यम से रेत खनन की सख्त निगरानी के लिए प्रौद्योगिकी के उपयोग की आवश्यकता पर बल देता है।
  • यह प्राकृतिक रूप से प्राप्त होने वाली रेत और बजरी पर निर्भरता को कम करने के लिए निर्माण सामग्री और प्रक्रियाओं में विनिर्मित रेत, कृत्रिम रेत, फ्लाई ऐश और वैकल्पिक तकनीकों को प्रोत्साहन दिए जाने की मांग करता है।
  • यह रेत पर निर्भरता को कम करने के लिए आर्किटेक्ट्स और इंजीनियरों के प्रशिक्षण, नए कानूनों और विनियमों तथा सकारात्मक प्रोत्साहनों की भी मांग करता है।

भारत में रेत आयात के लाभ

  • अधिकाँश राज्यों में रेत की कमी से निपटा जा सकता है: 2017-18 में, खनन मंत्रालय द्वारा 14 प्रमुख रेत उत्पादक राज्यों में किये
    गए सर्वेक्षण के अनुसार हरियाणा, उत्तराखंड एवं मध्य प्रदेश के अतिरिक्त सभी राज्यों में रेत की मांग उसकी आपूर्ति से बहुत अधिक है। हालांकि आयातित रेत महंगी हो सकती है, फिर भी यह उच्च कमी वाले क्षेत्रों के लिए उपयुक्त है।
  • न्यायालयों एवं NGT द्वारा लगाये गए प्रतिबंधों का समाधान: न्यायालयों एवं NGT द्वारा लगाये गए प्रतिबन्ध के परिणामस्वरूप कई राज्यों में रेत आपूर्ति में कमी आई है। उदाहरणस्वरूप, गत वर्ष NGT ने महाराष्ट्र, के विभिन्न भागों में रेत खनन को प्रतिबंधित कर दिया तथा उत्तराखंड उच्च न्यायालय ने सम्पूर्ण राज्य में चार माह हेतु रेत खनन को प्रतिबंधित कर दिया।
  • अवैध खनन से निपटना: कानूनी खामियों के उपयोग, कानूनों के अप्रभावी कार्यान्वयन, सुदृढ़ निगरानी तंत्र की अनुपस्थिति तथा राजनेताओं और माफिया के मध्य गठबंधन के कारण प्रमुख नदी तलों से भारी अवैध खनन जारी है। लेखा महानियंत्रक (CAG) की 2017 की रिपोर्ट के अनुसार 2015-16 में अवैध खनन के कारण उत्तर प्रदेश के राजकोष को 477 करोड़ का नुकसान हुआ।
  • यह घरेलू बाजार में दीर्घावधि के लिए रेत की लागत को कम कर सकता है, इस प्रकार, वहनीय आवास व्यवहार्य बन सकते हैं।
  • निर्यातक देशों के लिए लाभ: मलेशिया और इंडोनेशिया जैसे कुछ दक्षिण-पूर्व एशियाई देशों में पर्याप्त रेत उपलब्ध है, जिसे हटाए न जाने पर यह बाढ़ का कारण बन सकती है। इस रेत का भारत में आयात किया जा सकता है।

संधारणीय खनन को बढ़ावा देने के लिए सरकार द्वारा उठाए गए कदम

  • प्रधानमंत्री खनिज क्षेत्र कल्याण योजना PMKKKY): इसे डिस्ट्रिक्ट मिनरल फाउंडेशन (DMF) के तहत एकत्रित धन द्वारा
    क्रियान्वित किया जायेगा। साथ ही इस धन का उपयोग खनन प्रभावित क्षेत्रों के कल्याण एवं विकास के लिए भी किया जाना है।
  • खनन निगरानी प्रणाली (MSS): इसे भारतीय खान ब्यूरो (IBM) के माध्यम से खान मंत्रालय ने इलेक्ट्रॉनिक्स एवं सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय और भास्कराचार्य इंस्टीट्यूट ऑफ स्पेस एप्लीकेशंस एंड जियो-इंफॉर्मेटिक्स (BISAG) के सहयोग से विकसित किया है। इसका विकास अवैध खनन की जांच करने के लिए अंतरिक्ष प्रौद्योगिकी का उपयोग करने हेतु किया गया है।
  • माइनिंग टेनेमेंट सिस्टम (MTS): यह अवैध खनन के विस्तार को कम करने के लिए, पिटहेड (खदान निकास) से इसके अंतिम उपयोग तक ऑटोमेशन के माध्यम से राष्ट्रीय स्तर पर देश में उत्पादित समस्त खनिजों के एंड टू एंड लेखांकन में सहायता करेगा।

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