चुनावी बंधपत्र (इलेक्टोरल बॉन्ड)

प्रश्न: भारत में राजनीतिक वित्तपोषण में पारदर्शिता की आवश्यकता की व्याख्या कीजिए। क्या आप मानते है कि चुनावी बंधपत्र (इलेक्टोरल बॉन्ड) राजनीतिक वित्तपोषण में पारदर्शिता की कमी से संबंधित समस्या को दूर करने में सहायता कर सकते हैं?

दृष्टिकोण:

  • राजनीतिक वित्तपोषण को संक्षिप्त में स्पष्ट कीजिए
  • राजनीतिक वित्तपोषण में पारदर्शिता की आवश्यकता की व्याख्या कीजिए।
  • जांच कीजिए कि क्या चुनावी बंधपत्र (इलेक्टोरल बॉन्ड) राजनीतिक वित्तपोषण में पारदर्शिता की कमी से संबंधित समस्या को दूर करने में सहायता करते हैं।

उत्तरः

भारत में राजनीतिक वित्तपोषण का अधिकांश भाग व्यक्तियों और कॉरपोरेट घरानों द्वारा किए गए स्वैच्छिक योगदान (विदेशी योगदानों सहित) से प्राप्त होता है। ऐसे योगदान पर दाता को कर में कटौती प्राप्त होती है, जबकि प्राप्तकर्ता को कर से छूट प्रदान की जाती है। हालांकि, योगदान प्रायः नकद में अज्ञात और अघोषित रूप से किये जाते हैं।

राजनीतिक वित्तपोषण में पारदर्शिता की आवश्यकता है क्योंकि:

  • प्रमुख दलों को मिले कुल दान का लगभग आधा हिस्सा अज्ञात स्रोतों से प्राप्त होता है। पहले अघोषित स्रोतों से नकदी स्वीकार करने की अधिकतम सीमा 20000 रुपये थी। अतः राजनीतिक दलों द्वारा की गई अधिकांश घोषणाएं इस सीमा से कम की एकल राशियों में होती थीं। अज्ञात दान को स्वीकार करने की प्रक्रिया को अधिक जटिल बनाने के लिए यह सीमा घटाकर 2000रु. कर दी गई है। वर्तमान में इस श्रेणी में तेजी से वृद्धि हुई है क्योंकि दलों ने अपने अज्ञात दानों को 2000 से कम राशि में विभाजित कर दिया है।
  • अपारदर्शी दान में प्रायः भ्रष्ट तरीकों से प्राप्त काला धन और अघोषित आय सम्मिलित होती हैं। काले धन और भ्रष्टाचार से वित्तपोषित राजनीतिक दलों द्वारा इस पर कड़ी कार्यवाही करने की उम्मीद नहीं की जा सकती है और इसलिए इस स्थिति में परिवर्तन शासन में सुधार के लिए मौलिक रूप से महत्वपूर्ण है।
  • कॉरपोरेट घराने (जो अधिकांश दान ज्ञात स्रोतों के रूप में प्रदान करते हैं) और विदेशी योगदानकर्ता नीतियों और संसाधन आवंटन को प्रभावित कर सकते हैं।
  • हवाला और अन्य अवैध मार्गों से प्राप्त दान से काले धन का सृजन हो सकता है और यह अर्थव्यवस्था को प्रभावित कर सकता है।
  • राजनीतिक दल और उनके द्वारा प्राप्त धन RTI अधिनियम के दायरे में शामिल नहीं हैं।
  • इस प्रकार के वित्तपोषण के माध्यम से एकत्र धन का उपयोग अंततः चुनावों को प्रभावित करने के लिए किया जाता है।

2017 में चुनावी बंधपत्र (इलेक्टोरल बॉन्ड) को नकद दान के विकल्प के रूप में प्रस्तुत किया गया था। ये दानदाताओं को बैंकिंग उपकरण का उपयोग करके राजनीतिक दलों को भुगतान करने की सुविधा प्रदान करेंगे। साथ ही दानदाताओं के खातों में इस लेन-देन को घोषित भी किया जाएगा। दाताओं द्वारा इन बॉन्डों को SBI की विशिष्ट शाखाओं से अपने KYC सत्यापित खातों के माध्यम से खरीदा जा सकता है। दान में प्राप्त बॉन्डों को राजनीतिक दलों द्वारा ECI द्वारा सत्यापित खातों में नकद के रूप में भुनाया जा सकता है। लोकतांत्रिक प्रक्रियाओं में पारदर्शिता व सफ़ेद धन का समावेश करने के लिए इसे एक क्रांतिकारी उपाय माना गया है।

हालाँकि, इनके सन्दर्भ में निम्नलिखित समस्याएं भी विद्यमान हैं:

  • चुनावी बंधपत्र जन प्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951 की धारा 29 C के दायरे से बाहर रखे गए हैं। यह धारा राजनीतिक दलों के लिए आयकर छूट प्राप्त करने हेतु 20000 रुपये से अधिक के दान पर ECI के समक्ष एक वार्षिक रिपोर्ट प्रस्तुत करना अनिवार्य बनाती है।
  • उन्हें आयकर अधिनियम, 1961 की धारा 13A के दायरे के बाहर भी रखा जाता है। 3A के तहत प्राप्तकर्ताओं तथा दाताओं के नाम और पते के साथ योगदान का रिकॉर्ड बनाए रखने की स्थिति में ही आयकर छूट प्रदान करने का प्रावधान किया गया है।
  • बैंकों को किसी भी उद्देश्य के लिए किसी भी प्राधिकरण को बॉन्ड के खरीददार के बारे में कोई भी जानकारी देने की अनुमति नहीं है।
  • न तो दल को अपने खाते में दानकर्ता के विवरण का प्रकटीकरण करना होगा और न ही दानकर्ता को यह बताना होगा कि उसने किस दल को दान दिया है। इस प्रकार यह व्यवस्था को अपारदर्शी तथा शेल कंपनियों का उपयोग करके मनी लॉन्ड्रिंग और काले धन के संचालन के लिए उसका दुरुपयोग किये जाने के प्रति भी उन्मुख बनाता है।

चुनावी बंधपत्र, राजनीति में नकदी की भूमिका को न्यूनतम करने के लिए एक पारदर्शी राजनीतिक वित्तपोषण व्यवस्था के विकास की दिशा में एक सकारात्मक कदम है। हालांकि, राजनीतिक विरोधियों से दाता की पहचान को सुरक्षित रखने की बाध्यता के कारण इसकी पारदर्शिता से समझौता हुआ है। जहाँ तक राजनीतिक वित्तपोषण में काले धन के उपयोग को कम करने का मुद्दा है, चुनावी बंधपत्र एक अग्रगामी कदम है।

इसके अतिरिक्त, भारतीय राजनीतिक प्रणाली की प्रकृति को देखते हुए, भविष्य में प्रतिक्रियाओं के भय से प्रतिद्वंद्वी राजनीतिक दलों के समक्ष प्रमुख दाताओं की पहचान का प्रकटीकरण नहीं करना भी एक तार्किक कदम प्रतीत होता है। साथ ही व्यवस्था में सुधार संबंधी अन्य प्रयास किये जाने भी आवश्यक है ताकि चुनावी बंधपत्र को लेकर विद्यमान इस भय का निराकरण किया जा सके कि वे सत्ताधारी दल को कॉरपोरेट वित्तपोषण की सुविधा प्रदान कर रिश्वत एवं भ्रष्टाचार को वैध बनाने का मार्ग प्रशस्त कर सकते हैं।

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