20वीं शताब्दी के उत्तरार्द्ध में चीन-सोवियत दरार के लिए उत्तरदायी कारणों पर चर्चा
प्रश्न: 20वीं शताब्दी के उत्तरार्द्ध में चीन-सोवियत दरार के पीछे उत्तरदायी कारणों को सूचीबद्ध करते हुए, शीत युद्ध पर इसके प्रभाव का विश्लेषण कीजिए।
दृष्टिकोण
- 20वीं शताब्दी के उत्तरार्द्ध में चीन-सोवियत दरार के लिए उत्तरदायी कारणों पर चर्चा कीजिए।
- इस दरार के परिणामों तथा इसके शीत युद्ध पर प्रभावों का मूल्यांकन कीजिए।
उत्तर
चीन-सोवियत दरार, 20वीं शताब्दी के उत्तरार्द्ध में घटित सर्वाधिक महत्वपूर्ण घटनाओं में से एक थी, क्योंकि इसके परिणामस्वरूप शीत युद्ध के दौरान कम्युनिस्ट एकता भंग हो गई।
चीन-सोवियत दरार के लिए उत्तरदायी कारण:
- विचारधारा संबंधी मतभेद: इस दरार का प्रमुख आधार कार्ल मार्क्स के लेखों में निहित था जिनमें वर्णित किया गया था कि पूंजीवाद के विरुद्ध क्रांति, शहरी कारखानों के श्रमिकों (सर्वहारा वर्ग) से प्रारंभ होगी। यह अवधारणा रूसी क्रांति पर तो लागू होती है किन्तु चीन की क्रांति का प्रारंभ ग्रामीण कृषक वर्ग द्वारा किया गया।
- स्टालिन की मृत्यु के पश्चात नेतृत्व की भूमिका: 1953 में स्टालिन की मृत्यु के पश्चात् माओ ने अनुभव किया कि वह अंतर्राष्ट्रीय साम्यवाद का प्रमुख एवं वरिष्ठतम नेता है। सोवियत नेता मालेनकोव और खुश्चेव द्वारा इस विचार को स्वीकार न करने पर माओ उनके विरुद्ध हो गया।
- खुश्चेव की नीतियां: खुश्चेव द्वारा 1956 में स्टालिन के अत्याचार की निंदा की गई और पूंजीवादी विश्व के साथ शांतिपूर्ण सह-अस्तित्व हेतु “डी-स्टालिननाइजेशन” को बढ़ावा दिया गया। इसने दोनों देशों के मध्य की दरार को और अधिक बढ़ा दिया।
- चीन की नीतियां: 1958 में माओ द्वारा चीन के ‘ग्रेट लीप फॉरवर्ड’ अभियान की घोषणा की गई, जो खुश्चेव की सुधारवादी नीतियों के विपरीत था। माओ ने परमाणु हथियारों की प्राप्ति का लक्ष्य निर्धारित करते हुए खुश्चेव द्वारा अमेरिका के साथ परमाणु तनावशैथिल्य (nuclear detente) की नीति की निंदा की।
- ताइवान मुद्दा: 1958 में, माओ ने चीन के अभिन्न अंग के रूप में ताइवान पर दावा किया और खुश्चेव को सूचित किए बिना किमेन और मत्सु द्वीपों पर आक्रमण कर दिया। इससे दोनों देशों के नेताओं के मध्य मतभेद में वृद्धि हुई।
- तिब्बती विद्रोह से सम्बंधित मुद्दे : 1959 में, USSR ने चीन के विरुद्ध विद्रोह में तिब्बतियों को नैतिक समर्थन प्रदान किया।
- सार्वजनिक रूप से दरार: 1960 में रोमानियाई कम्युनिस्ट पार्टी कांग्रेस की बैठक में, माओ और खुश्चेव द्वारा सार्वजानिक रूप से एक-दूसरे का अपमान किया गया। इसके अतिरिक्त, माओ ने क्यूबा मिसाइल संकट में USSR द्वारा समर्थन वापस लिये जाने की आलोचना की।
1969 में, चीन-सोवियत के मध्य यह दरार इतनी व्यापक हो गयी कि इसने दोनों देशों के बीच झिंजियांग उइघुर क्षेत्र और ताजिकिस्तान सोवियत गणराज्य (सोवियत रिपब्लिक ऑफ़ ताजिकिस्तान) के क्षेत्र में एक संक्षिप्त सीमा संघर्ष को जन्म दिया।
चीन-सोवियत दरार के शीत युद्ध पर प्रभाव का आकलन
- तनावशैथिल्य या ‘दितान्त’ (Détente) की अवधि में सोवियत-अमेरिकी संबंध और चीन-अमेरिकी सम्बन्ध सुदृढ़ हुए। अमेरिका ने माओ के साथ राजनयिक वार्ता का समर्थन किया, जिससे दोनों देशों के मध्य संबंधों के सामान्यीकरण में सहायता प्राप्त हुई। अंततः पीपल्स रिपब्लिक ऑफ़ चाइना (PRC) संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में स्थायी सदस्यता प्राप्त करने में सफल हुआ। चीन-अमेरिकी सम्बन्धों में वृद्धि से उत्पन्न असुरक्षा ने, USSR को संयुक्त राज्य अमेरिका के साथ भी इसी प्रकार वार्ता करने हेतु प्रेरित किया। इन राजनयिक क्रियाकलापों का सर्वाधिक महत्वपूर्ण परिणाम तनावशैथिल्य की ओर बढ़ने के रूप में परिलक्षित हुआ।
- वियतनाम युद्ध – चीन-सोवियत दरार का प्रभाव वियतनाम युद्ध पर भी पड़ा जहां USSR और PRC दोनों उत्तरी वियतनाम पर प्रभाव स्थापित करने तथा एक दूसरे से अधिक सहायता प्रदान करने के लिए प्रतिस्पर्धा कर रहे थे। इससे उत्तरी वियतनाम को अत्यधिक लाभ प्राप्त हुआ क्योंकि इस परिस्थिति ने उत्तरी वियतनाम को संयुक्त राज्य अमेरिका से लड़ने में सक्षम बनाया।
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