उत्तर प्रदेश में जल परिवहन की संभावनाओं एवं चुनौतियों का विश्लेषण करें।

उत्तर की संरचनाः

भूमिका:

  • संक्षेप में जल परिवहन के महत्व को बताएं।

मुख्य भाग:

  • उत्तर प्रदेश में जल परिवहन की संभावनाएँ- गंगा, यमुना, गोमती, गंडक इत्यादि।
  • संबंधित चुनौतियों को बताएं।

निष्कर्ष:

  • बताएं कि राज्य को सहभागिता आधारित राष्ट्रीय जल परिवहन नीति के कुशल क्रियान्वयन एवं नमामि गंगे, नदी जोड़ो परियोजना आदि की सफलता की आवश्यकता है।

उत्तर

भूमिकाः

जल परिवहन, परिवहन का सबसे पुराना साधन रहा है। यह किसी देश या प्रदेश को सबसे सस्ता यातायात प्रदान करता है। ईधन की कम खपत, पर्यावरण अनुकूलता और प्रभावी लागत आदि फायदों को ध्यान में रखते हुए सरकार रेल और सड़क परिवहन के पूरक परिवहन के रूप में इसका विकास करने का प्रयास कर रही है।

मुख्य भागः

उत्तर प्रदेश की गंगा, यमुना, घाघरा तथा गोमती नदियों में आंतरिक जल परिवहन की सुविधा उपलब्ध है। अंतर्देशीय जलमार्गों के विकास रख-रखाव तथा नियमन के लिए 1986 में भारतीय अंतर्देशीय जलमार्ग प्राधिकरण की स्थापना की गई।

गंगा नदी उत्तर प्रदेश का प्रमुख आंतरिक जलमार्ग है। यह एक नित्यवाही नदी है जिसमें वर्षा ऋतु में मानसून वर्षा और ग्रीष्म ऋतु में बर्फ पिघलने से वर्ष भर पर्याप्त जल उपलब्ध रहता है तथा पर्याप्त जल की गहराई भी (10 में ) उपलब्ध है। राष्ट्रीय जलमार्ग सं.-1 इलाहाबाद से हल्दिया के मध्य फैला है। यह देश का सबसे लम्बा राष्ट्रीय जलमा है। इसकी कुल लंबाई 1620 किमी. है। हाल ही में इसे स्टीमर चलाने योग्य बना दिया गया है। इसकी सहायक यमुना गंडक, गोमती आदि का उपयोग नौ परिवहन हेतु किया जा सकता है। नाव्य आंतरिक जलमार्गों में उत्तर प्रदेश का प्रथ स्थान है (2441 किमी.)।

यमुना नदी में इलाहाबाद से आगरा के बीच पर्याप्त जल होता है, जिससे यह स्टीमरों के चलाने के लिए ठर की आगरा से ऊपर जल की कमी के कारण केवल छोटी नौकाएँ ही चल सकती हैं।

अंतर्देशीय जलमार्गों के विकास हेतु 2016 में सरकार ने 106 जलमार्गों को राष्ट्रीय जलमार्ग घोषित किया है कि अब देश कुल राष्ट्रीय जलमार्गों की कुल संख्या 111 हो गयी है। इसके अंतर्गत NW-1 और यमुना पर बनने वाला। 110 को जोड़ा जाना भी प्रस्तावित है।

कई नित्यवाही नदियों के बावजूद प्रदेश में नदी परिवहन का समुचित विकास नहीं हो पाया है। इसमें मुख्यत: मौ वर्षा, नदी प्रवृत्ति में अस्थिरता, बाढ़ों, मार्ग परिवर्तन, अवसादन, सिंचाई नहरों में अधिक जल के अपर्वतन, असम स्थलाकृत, डेल्टा निर्माण और नदी मुख का संकरा होना इत्यादि चुनौतियाँ हैं।

निष्कर्षः

नदी परिवहन विकास एवं नियंत्रण केंद्रित राज्यों की सहभागिता आधारित राष्ट्रीय नीति की आवश्यकता है। नदी के परियोजना, नदियों की सफाई (नमामि गंगे) इत्यादि के कुशल क्रियान्वयन, प्रौद्योगिकी निवेश के द्वारा उत्तर प्रदेश में परिवहन को मजबूत बनाया जा सकेगा।

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