चक्रीय अर्थव्यवस्था (सर्कुलर इकोनॉमी) की अवधारणा

प्रश्न: ‘चक्रीय अर्थव्यवस्था’ (सर्कुलर इकॉनमी) पद प्राय: सुर्खियों में रहता है। वे कौन-से सिद्धांत हैं जिन पर यह आधारित है? भारत के लिए इसकी प्रासंगिकता स्पष्ट कीजिए।

दृष्टिकोण

  • चक्रीय अर्थव्यवस्था (सर्कुलर इकोनॉमी) की अवधारणा को संक्षेप में समझाइए।
  • उन सिद्धांतों को स्पष्ट कीजिए जिन पर यह आधारित है।
  • भारतीय संदर्भ में इसके महत्व को रेखांकित कीजिए।
  • इस संबंध में कुछ पहलों को रेखांकित करते हुए एक संक्षिप्त निष्कर्ष प्रस्तुत कीजिए।

उत्तर

चक्रीय अर्थव्यवस्था (सर्कुलर इकोनॉमी) उत्पादन और उपभोग का एक मॉडल है, जिसमें मौजूदा सामग्रियों और उत्पादों को जहां तक संभव हो साझा करना, पट्टे पर देना, पुन: उपयोग करना, जीर्णोद्धार करना, नवीनीकरण करना और पुनर्चक्रण करना शामिल है। इस प्रकार से उत्पादों के जीवन-चक्र (उपयोग अवधि) को बढ़ाया जाता है। यह पारंपरिक, रैखिक आर्थिक मॉडल से प्रस्थान है, जो एक ग्रहण-निर्माण-उपभोग-परित्याग प्रतिरूप (टेक-मेक-कंज्यूम-थ्रो अवे पैटर्न) पर आधारित है।

चक्रीय अर्थव्यवस्था कुछ सामान्य सिद्धांतों पर आधारित है:

  • योजनाबद्ध ढंग से अपशिष्ट को बाहर करना: उत्पाद पृथक करने तथा पुन: उपयोग के चक्र के लिए डिज़ाइन और अनुकूलित किए जाते हैं। इस प्रकार, निपटान (जहां बड़ी मात्रा में ऊर्जा और श्रम की क्षति होती है) की आवश्यकता नहीं होती है।
  • नकारात्मक बाह्यताओं को कम करना: आर्थिक गतिविधियों की नकारात्मक बाह्यताओं में भूमि निम्नीकरण, जल प्रदूषण, GHG उत्सर्जन आदि शामिल हैं। एक चक्रीय अर्थव्यवस्था उनके जोखिम और संभावित आर्थिक प्रभाव को रेखांकित करेगी और प्रणाली की दक्षता पर ध्यान केंद्रित करेगी।
  • नवीकरणीय ऊर्जा का उपयोग करना: संसाधन निर्भरता को कम करने और प्रणाली के लचीलेपन को बढ़ाने के लिए (तेल कीमतों के आघात जैसी घटना के लिए) नवीकरणीय ऊर्जा की आवश्यकता होती है।
  • उपभोग्य और टिकाऊ घटकों के मध्य अंतर करना: चक्रीय अर्थव्यवस्था में टिकाऊ उत्पादों की उपयोग अवधि को अधिक करने और अधिक से अधिक जैव-निम्नीकरणीय अवयवों को स्थानांतरित करने के माध्यम से अर्थव्यवस्था में अपशिष्ट निर्माण की मात्रा को कम करने का प्रयास किया जाता है।
  • उपभोक्ता को उपयोगकर्ता से प्रतिस्थापित करना: वर्तमान खरीद और उपभोग अर्थव्यवस्था के बजाय टिकाऊ उत्पाद पट्टे पर दिए जाते हैं, किराए पर दिए जाते हैं अथवा साझा किए जाते हैं। यदि उनका विक्रय किया जाता है, तो उनकी वापसी सुनिश्चित करने के लिए प्रोत्साहन और समझौते भी मौजूद होते हैं और तत्पश्चात उत्पाद का पुन: उपयोग होता है।

भारत के लिए चक्रीय अर्थव्यवस्था की प्रासंगिकता

  • आर्थिक विकास: अनेक शोध अध्ययनों से यह ज्ञात हुआ है कि विकास के लिए चक्रीय अर्थव्यवस्था पथ भारत के वर्तमान विकास पथ की तुलना में वर्ष 2050 में 624 बिलियन अमेरिकी डॉलर का वार्षिक लाभ प्रदान कर सकता है। यह लाभ भारत के वर्तमान GDP के 30% के बराबर होगा।
  • कुशल संसाधन उपयोग: चक्रीय अर्थव्यवस्था प्राकृतिक संसाधन उपयोग से आर्थिक विकास को पृथक करती है। यह भारत के लिए अच्छा संकेत है, जो मूलभूत उपयोगिताओं में विभिन्न संसाधन बाधाओं का सामना कर रहा है। उदाहरण के लिए, इसकी 20% जनसंख्या तक विद्यत की पहंच का अभाव है, 63 मिलियन लोगों के पास स्वच्छ पेयजल आदि का अभाव है। कम सामग्री के उपयोग से कच्चे माल की कीमतों से संबंधित अस्थिरता में भी कमी आएगी।
  • निरंतर वृद्धिशील जनसंख्या: भारत के अगले एक दशक में सर्वाधिक जनसंख्या वाले देश के रूप में चीन से आगे निकलने की राह पर होने के साथ, इसका अपशिष्ट सृजन भी बढ़ जाएगा। इस प्रकार, चक्रीय अर्थव्यवस्था बढ़े हुए अपशिष्ट के नियंत्रण में सहायता करेगी जहाँ ठोस अपशिष्ट निपटान भारत के बड़े शहरों में पहले से ही एक गंभीर संकट है।
  • व्यवसायों के लिए नए अवसर: चक्रीय अर्थव्यवस्था सिद्धांतों को लागू करने से, व्यवसाय नए विचार उत्पन्न कर सकते हैं और कार्य करने के नए तरीकों की खोज कर सकते हैं।
  • पर्यावरणीय लाभ: चक्रीय अर्थव्यवस्था में ग्रीनहाउस गैसों के उत्सर्जन को कम करने की क्षमता है। एक अध्ययन के अनुसार, एक चक्रीय अर्थव्यवस्था विकास-पथ, वर्तमान स्तरों के सापेक्ष वर्ष 2030 तक कार्बन डाइऑक्साइड उत्सर्जन को आधा कर सकता है।

नीतियां और पहले जैसे जीरो इफेक्ट और जीरो डिफेक्ट, वेस्ट टू एनर्जी आदि भारतीय अर्थव्यवस्था की संरचना में चक्रीय अर्थव्यवस्था को एकीकृत करने के लिए आदर्श हो सकते हैं।

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