केस स्टडीज : मूलभूत मानवाधिकारों के उल्लंघन की अनुभूति

प्रश्न: आपको प्रमुखतया कृषि आधारित एक जिले के जिला मजिस्ट्रेट के रूप में पदस्थापित किया गया है। यह जिला पिछले दशक से कृषि में सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शनकर्ताओं में से एक रहा है। एक ग्रामीण क्षेत्र के भ्रमण में आप पाते हैं कि बड़े भूस्वामी, जो सामाजिक, राजनीतिक और आर्थिक रूप से शक्तिशाली समूह हैं, ऐसे घरेलू सहायकों और कृषि मजदूरों को नियोजित किए हुए हैं, जो अनौपचारिक रूप से उनसे बंधे हुए हैं और पीढ़ियों से वहां काम कर रहे हैं। बदले में, इन श्रमिकों को कुछ पैसे के अतिरिक्त भोजन और आश्रय जैसी आधारभूत सुविधाएं प्रदान की जाती हैं। फिर भी, आपको इस परिस्थिति में मूलभूत मानवाधिकारों के उल्लंघन की अनुभूति होती है।

उपर्युक्त प्रकरण के आलोक में, निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर दीजिए:

(a) इस प्रकरण में सम्मिलित हितधारकों, उनके हितों और नैतिक मुद्दों की पहचान कीजिए।

(b) किस प्रकार चयन की वंचना मानवाधिकारों का उल्लंघन है?

(c) आप क्या कार्रवाही करेंगे? कारण बताएं।

दृष्टिकोण

  • उपर्युक्त प्रकरण में सम्मिलित प्रमुख हितधारकों, उनके हितों और नैतिक मुद्दों का संक्षेप में उल्लेख कीजिए।
  • चर्चा कीजिए कि किस प्रकार चयन की वंचना मानवाधिकारों का उल्लंघन करती है। 
  • नैतिक दुविधा और आपके द्वारा की जाने वाली कार्यवाही को सूचीबद्ध कीजिए।

उत्तर

दिए गए प्रकरण में अनौपचारिक नियोजन की व्यवस्था के अंतर्गत चयन के मूलभूत मानवाधिकार और आजीविका के मूल अधिकार के उल्लंघन को प्रदर्शित किया गया है।

(a) प्रमुख हितधारक, उनके हित और नैतिक मुद्दे:

  • घरेलू सहायकों और कृषि मजदूरों के रूप में कार्यरत व्यक्ति: अनुबंध की अनुपस्थिति इन व्यक्तियों को शोषणकारी कामकाजी परिस्थितियों, असुरक्षित कार्यकाल और मजदूरी की अल्प दर के प्रति सुभेद्य बनाती है। अवैधता के अतिरिक्त, यह भूस्वामियों में सहानुभूति और करुणा के अभाव को दर्शाती है।
  • भूस्वामी: इनके द्वारा अन्य मनुष्यों के प्रति उदासीनतापूर्ण व्यवहार और अपने कर्मचारियों की चयन की स्वतंत्रता का हनन किया जाता है। इस प्रवृत्ति ने अंतर-पीढ़ीगत निर्धनता को बढ़ावा दिया है। यह श्रम की गरिमा के विरुद्ध है।
  • राज्य: राज्य समाज के कमजोर वर्गों के लिए मूलभूत मानवाधिकारों और सुविधाओं को सुनिश्चित करने में विफल रहा है।

उपर्युक्त प्रकरण राज्य और जिला प्रशासन की ओर से इच्छाशक्ति और साहस की कमी को प्रदर्शित करता है।

(b) मानवाधिकारों के उल्लंघन के रूप में चयन की वंचना

मानवाधिकार सभी मनुष्यों को अनन्य रूप से प्राप्त मूलभूत अंतर्निहित अधिकार हैं। इन अधिकारों को एक मूलभूत, गरिमापूर्ण जीवन की अभिव्यक्ति के रूप में देखा जाता है। ये सामाजिक दुर्व्यवहार से लोगों को संरक्षण प्रदान करते हैं। ये चयन की स्वतंत्रता और जीवन तथा आजीविका की सुरक्षा पर बल देते हैं।

मानवाधिकारों का एक प्रमुख पहलू मानवों की क्षमता का विकास करना है ताकि वे स्वयं की प्रगति के लिए सबसे बेहतर विकल्प का चयन कर सकें। जब शोषणकारी, पीढ़ीगत बाध्य श्रम को नियोजित किया जाता है, तो यह श्रमिकों को अन्यत्र रोजगार प्राप्त करने और बेहतर परिस्थितियों की मांग करने के विकल्प से वंचित करता है। यह स्वयं और अपनी भावी पीढ़ियों के लिए तर्कसंगत रूप से चयन करने की उनकी क्षमता के विकास को भी अवरुद्ध करता है।

यह उन्हें शोषण के प्रति अधिक सुभेद्य बना देता है और वे अन्य मानवाधिकारों से वंचित हो जाते हैं। इसे उनकी वर्तमान स्थितियों के संदर्भ में और भी बेहतर तरीके से देखा जा सकता है:

  • अनौपचारिक अववैतनिक (underpaid) रोजगार प्रत्यक्षतया जीवन के अधिकार का उल्लंघन है।
  • इन श्रमिकों को कई पीढ़ियों तक उचित रोजगार एवं पारिश्रमिक (मजदूरी) से वंचित करना, आधुनिक समय की दास प्रथा के समान है। इससे भी श्रम की गरिमा का ह्रास होता है।
  • चयन की वंचना प्रत्यक्ष रूप से स्वतंत्रता के अधिकार का उल्लंघन करती है। मानव अधिकारों के अपने दावे की प्राप्ति हेतु किसी भी व्यक्ति को स्वतंत्रता और अन्य मूलभूत सुविधाएं उपलब्ध होनी चाहिए।

(c) दिए गए मामले में की जाने वाली कार्यवाही

दिए गए मामले में, समग्र कानून और व्यवस्था की स्थिति के लिए उत्तरदायी अधिकारी के रूप में और विशेष रूप से यह देखने के लिए कि जिले में मानवाधिकारों का उल्लंघन न हो, मैं सर्वप्रथम यह सुनिश्चित करूंगा कि इस मामले से संबंधित आवश्यक विधिक कार्यवाही को तुरंत प्रारंभ किया जाए। यह मामला विधिक मामले के रूप में तब तक नहीं उठाया जा सकता जब तक कि इसे विधि के अनुसार बंधुआ मजदूरी के रूप में परिभाषित नहीं किया जाता। हालाँकि, यदि जिला मजिस्ट्रेट मानवाधिकारों के उल्लंघन के संबंध में पूर्णतः सुनिश्चित हो जाता है तो उसके द्वारा उपर्युक्त निर्धारण के बिना भी आवश्यक आदेश एवं दिशानिर्देश दिए जा सकते हैं।

स्पष्टतया, जो लोग विधि का उल्लंघन करते हैं वे राजनीतिक रूप से प्रभावशाली होते हैं। राजनीतिक प्रभाव के कारण ऐसे लोगों द्वारा कोई कार्यवाही न किया जाना चिंता का विषय नहीं है बल्कि ऐसे लोगों से अतिरिक्त उत्तरदायी व्यवहार की अपेक्षा करना एक मुख्य चिंता होनी चाहिए।

  • बलात एवं भुगतान रहित श्रम भारतीय संविधान में निहित मूल अधिकारों और राज्य के नीति निदेशक तत्वों (DPSPS) के विरुद्ध है।
  • पहली दुविधा बिना किसी शिकायत एवं साक्ष्य के कार्यवाही करना है। हालांकि, एक प्रशासक को अपने विवेक के अनुसार कार्य करने की आवश्यकता होती है। साथ ही साक्ष्य की प्राप्ति हेतु प्रारंभिक जांच भी की जानी चाहिए।
  • जांच के निष्कर्षों के आधार पर कार्यवाही का निर्धारण किया जाना चाहिए। यदि यह स्थापित हो जाता है कि कृत्य गैरकानूनी है तो नियोक्ताओं के विरुद्ध आवश्यक कार्यवाही की जानी चाहिए और मजदूरों को आवश्यक सहायता प्रदान की जानी चाहिए।
  • किसी भी मामले में, अनुबंधों की अनुपस्थिति एक प्रमुख मुद्दा है जिसका समाधान किए जाने की आवश्यकता है। जिला मजिस्ट्रेट द्वारा भूस्वामियों को अनुबंध आधारित प्रणाली अपनाने हेतु तैयार किया जाना चाहिए। रोजगार की वर्तमान अनौपचारिक प्रणाली, श्रम कानूनों का उल्लंघन कर सकती है।
  • हालांकि, इससे एक अन्य दुविधा उत्पन्न होती है कि भू-स्वामियों को अनुबंध प्रणाली अपनाने हेतु बाध्य करने से वे अपने कर्मचारियों को काम से निकालने हेतु प्रेरित हो सकते हैं। इससे मजदूरों श्रमिकों के निर्धनता के स्तर में वृद्धि होगी तथा वे घरेलू स्तरीय कार्य करने हेतु विवश होंगे।
  • राज्य प्रशासन के एक भाग के रूप में, इन श्रमिकों को आजीविका के वैकल्पिक साधन प्रदान करना जिला मजिस्ट्रेटों का अत्यावश्यक दायित्व है।  उन्हें श्रमिकों की स्थिति और अधिकारों के संबंध में संवेदनशील बनाए जाने की भी आवश्यकता है।
  • यदि भूस्वामियों द्वारा उन्हें उनके रोजगार से हटा दिया जाता है, तो श्रमिकों को ‘निर्धनता के पीढ़ीगत दुष्चक्र’ से सुरक्षित करने में सहायता हेतु उन्हें पुनः कौशल प्रदान किये जाने की आवश्यकता होगी।

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