केस स्टडीज : मंदिर में महिलाओं के प्रवेश के प्रश्न पर यथेष्ट तनाव
प्रश्न:अपने निजी जीवन में आप एक धार्मिक व्यक्ति हैं और सामाजिक-सांस्कृतिक मान्यताओं के संरक्षण में आप प्रबल विश्वास करते हैं। एक IPS अधिकारी के रूप में आपका हालिया पदस्थापन एक ऐसे जिले में हुआ है जहाँ एक प्रसिद्ध श्रद्धेय मंदिर है। कार्यभार ग्रहण करने के बाद शीघ्र ही, जिले के उस मंदिर में महिलाओं के प्रवेश के प्रश्न पर यथेष्ट तनाव उत्पन्न होने का तथ्य आपके संज्ञान में आता है। इस पृष्ठभूमि में, सर्वोच्च न्यायालय ने महिलाओं को मंदिर में प्रवेश करने का अधिकार दिए जाने के पक्ष में निर्णय दिया है।
आपको यह ज्ञात है कि इस निर्णय के विरुद्ध यहाँ बहुत आक्रोश व्याप्त है। इसके अतिरिक्त, कई राजनीतिक दलों, धार्मिक निकायों और समूहों ने परंपरा का संरक्षण करने के लिए अभियान शुरू किया है। कुछ सप्ताह में मंदिर के लिए की जाने वाली पारंपरिक वार्षिक तीर्थ यात्रा आरम्भ होने जा रही है। आपको आशंका है कि यदि स्थिति का समुचित समाधान नहीं किया गया तो इससे कानून और व्यवस्था की समस्याएं उत्पन्न हो सकती हैं।
(a) यहाँ दांव पर लगे प्रमुख मुद्दे क्या हैं?
(b) क्या आपको इस प्रकट स्थिति में कोई दुविधा दिखाई देती है?
(c) इस संदर्भ में, अपने कर्तव्यों का निर्वहन करने के लिए आप क्या कदम उठाएंगे?
दृष्टिकोण:
- इस प्रकरण में शामिल सभी हितधारकों को संक्षिप्त में रेखांकित कीजिए।
- इस प्रकरण में शामिल सभी मुद्दों पर चर्चा कीजिए।
- इस प्रकरण में शामिल सभी नैतिक दुविधाओं पर चर्चा कीजिए।
- अपने कर्तव्यों का निर्वहन करने के लिए आपके द्वारा उठाये जाने वाले क़दमों पर चर्चा कीजिए।
उत्तर:
वर्तमान प्रकरण में ऐसी परिस्थिति अन्तर्निहित है जहां एक सिविल सेवक की व्यक्तिगत मान्यताएं उसे पक्षपातपूर्ण तरीके से कार्य करने हेतु प्रेरित कर सकती हैं और साथ ही यथोचित रूप से पारित निर्णयों को लागू करवाने के उसके कर्तव्य में अवरोध उत्पन्न कर सकती हैं। हालाँकि एक व्यक्ति किसी निर्णय के सही या गलत होने के सम्बन्ध में सुदृढ़ता से विचार-विमर्श कर सकता है, परंतु किसी निर्णय को लागू करवाने के लिए नियुक्त अधिकारी के रूप में एक लोक सेवक का यह कर्तव्य है कि वह उसे सर्वाधिक प्रभावी ढंग से कार्यान्वित करे। यह प्रकरण हमारे समाज में अन्तर्निहित विरोधाभासों का भी उल्लेख करता है, जहां दृढ़तापूर्वक धार्मिक मान्यताओं का संवैधानिक मूल्यों के साथ एक स्पष्ट या वास्तविक संघर्ष उत्पन्न हो सकता है।
शामिल हितधारक निम्नलिखित हैं:
- वे लोग जो मान्यताओं एवं परम्पराओं को बनाए रखना चाहते हैं;
- सामाजिक कार्यकर्ता, जो अपने मूल अधिकारों को सुनिश्चित करना चाहते हैं;
- मंदिर के प्रशासन में प्रत्यक्ष रूप से सम्मिलित लोग, जैसे-पुजारी;
- एक समग्र समूह के रूप में महिलाएं;
- न्यायालय के आदेश के निष्पादन हेतु उत्तरदायी विभिन्न अधिकारी, विशेषतः राज्य सरकार और सामान्य रूप से आम नागरिक।
(a) इसमें शामिल प्रमुख मुद्दे निम्नलिखित हैं:
- लोगों, विशेष रूप से महिलाओं की सुरक्षा: चूँकि उच्चतम न्यायालय ने मंदिर में महिलाओं के प्रवेश को स्वीकृति प्रदान की है, अतः प्रशासन का यह दायित्व है कि वह मंदिर में महिलाओं के सुरक्षित प्रवेश को सुनिश्चित करे तथा उच्चतम न्यायालय के निर्णय का अनुपालन करे। ऐसा न होने पर महिलाओं को ऐसे मंदिर में प्रवेश की अनुमति देना अविवेकपूर्ण होगा जहाँ उन्हें हानि पहुँचने की पूर्ण सम्भावना है।
- राजनीतिक दबाव: चूंकि कई राजनीतिक दलों और धार्मिक संप्रदायों ने परंपरा की रक्षा के लिए अभियान शुरू कर दिया है, इसलिए महिलाओं को सुरक्षा प्रदान करने का अर्थ, शक्तिशाली दबाव समूहों के खिलाफ खड़ा होना है।
- कानून और व्यवस्था: मंदिर के लिए पारंपरिक वार्षिक तीर्थयात्रा शुरू होने के कारण, बड़े पैमाने पर तीर्थयात्रियों का जत्था कानून एवं व्यवस्था की समस्या को और भी जटिल बना सकता है।
- व्यक्तिगत मान्यताएं: कर्तव्य का निर्वहन कुछ ऐसे उपायों को अपनाने की मांग करता है जो सामाजिक-सांस्कृतिक मान्यताओं के संरक्षण के आपके व्यक्तिगत विश्वास के खिलाफ हो सकते हैं।
(b) शामिल नैतिक दुविधा
- मंदिर में महिलाओं के प्रवेश के संबंध में न्यायालय द्वारा स्पष्ट दिशानिर्देश दिए गये हैं। अतः अधिकारी के समक्ष आदेश को गंभीरता से लागू करने के अतिरिक्त कोई दूसरा विकल्प विद्यमान नहीं है। इसलिए, ऐसी कार्रवाई के सम्बन्ध में किसी प्रकार की अस्पष्टता की गुंजाइश नहीं होती है और यहाँ ऐसी कोई दुविधा उत्पन्न भी नहीं होनी चाहिए जिससे कार्यवाही में बाधा पहुंचे। फिर भी, अवचेतन स्तर पर, एक अधिकारी, मतभिन्नता की स्थिति का अनुभव कर सकता है।
यह स्थिति विभिन्न संघर्षों से उत्पन्न हो सकती है, जैसे कि:
- धार्मिक मामलों की स्वतंत्रता बनाम समानता का अधिकार।
- विश्वास और अटूट धारणाओं को चुनौती।
- कुछ ऐसी अतार्किक प्रथाएँ, जो वास्तव में भेदभावपूर्ण होती हैं बनाम ऐसी प्रथाएँ जो एक व्यावहारिक तरीके से रक्षात्मक हो सकती हैं। सांस्कृतिक पहचान का संरक्षण और स्वतंत्रता, न्याय और समानता के साथ इसके टकराव।
(c) कर्तव्य के तौर पर उठाये जाने वाले कदम –
- उपर्युक्त समस्याओं के बारे में जिला प्राधिकरणों को सूचित करना और संभावित संघर्षों के बारे में उन्हें पहले से ही अवगत कराना।
- मंदिर में प्रवेश हेतु इच्छुक लोगों की सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए पर्याप्त व्यवस्था करना तथा सर्वोच्च न्यायालय के आदेश को लागू करना।
- सभी हितधारकों के साथ पहले से ही एक बैठक का आयोजन करना और उनसे पुलिस बल के कर्तव्य और न्यायालय के आदेश को लागू करने की आवश्यकता के बारे में स्पष्ट रूप से वार्ता करना।
- स्थिति बिगड़ने से पूर्व ही विद्यालयों या शहर के विशिष्ट भागों को बंद करने जैसे आपातकालीन उपायों के साथ तैयार रहने के लिए जिला प्रशासन से अनुरोध करना।
- मंदिर में उचित सुरक्षा व्यवस्था सुनिश्चित करना और तीर्थयात्रियों के जत्थे को नियंत्रित करना।
- हिंसा के किसी भी कृत्य को नियंत्रित करने और हिंसा उभरने पर त्वरित कार्रवाई सुनिश्चित करने के लिए सुरक्षा कर्मियों की अधिकतम तैनाती करना।
- मंदिर के चारों ओर किसी भी प्रकार के हिंसा से बचने के लिए क्षेत्र में प्रत्येक नागरिक से अपील करना और कठोर चेतावनी देना।
- हिंसा भड़कने पर महिलाओं, बच्चों और बुजुर्गों की रक्षा के लिए विशेष सुरक्षा दिशानिर्देश जारी करना।
- किसी और नुकसान से बचने के लिए मंदिर के लोगों और मंदिर की संपत्ति के लिए सुरक्षा व्यवस्था का एक और स्तर स्थापित करना।
- किसी भी प्रकार की हिंसा को रोकने के लिए सम्बंधित राजनीतिक दलों, धार्मिक समूहों, मीडिया और क्षेत्र में कार्यरत गैर सरकारी संगठनों को शामिल करना।
ऐसा करके, मैं अपने कर्तव्य के प्रति प्रतिबद्धता का प्रदर्शन करूँगा। निष्पक्ष रूप से निर्णय लेना और भावनात्मक बुद्धिमता के साथ भीड़ को नियंत्रित करना, माहौल को हिंसा से मुक्त रखने हेतु महत्वपूर्ण कदम होंगे। इस प्रकार समग्र परिस्थिति मुझे मेरे मन में उत्पन्न हो सकने वाली किसी भी आंतरिक विसंगति को हल करने का अवसर देगी और मैं इस स्थिति से सीख ले सकता हूँ, ताकि मैं लोगों की बेहतर सेवा कर सकू।
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