केस स्टडीज-मद्यपान निषेध को लागू करने के उत्तरदायी कारण
प्रश्न: एक ओर जहाँ कुछ राज्य सरकारों ने मद्यपान निषेध कानून लागू किए हैं, वहीं अन्य राज्यों में इसकी अनुमति है। इस मुद्दे पर बहस में प्राय: व्यक्तिगत अधिकार, सांस्कृतिक अभिवृत्ति और सामाजिक कल्याण जैसे पहलू सम्मिलित होते हैं। एक शिक्षक के रूप में आपको युवा श्रोताओं को इसमें सम्मिलित महत्वपूर्ण मुद्दों को समझाना है। ये मुद्दे क्या हैं? आप अपने व्याख्यान के निष्कर्ष में क्या कहेंगे?
दृष्टिकोण
- मद्यपान निषेध को लागू करने के उत्तरदायी कारणों पर चर्चा कीजिए।
- प्रश्न तीन पहलुओं को शामिल करता है- व्यक्तिगत अधिकार, सांस्कृतिक अभिवृत्ति और सामाजिक कल्याण। मद्यपान निषेध से संबंधित प्रमुख मुद्दों को समझाते हुए इन पहलुओं की भी व्याख्या कीजिए।
- उपरोक्त बिन्दुओं पर बल देते हुए प्रयोजनपूर्वक निष्कर्ष दीजिए। किसी अभ्यर्थी का मत इस मॉडल उत्तर में प्रस्तुत किए गए मत से भिन्न हो सकता है।
उत्तर
मद्यपान के दुष्प्रभाव सुविख्यात हैं। मद्यपान की लत से ग्रसित व्यक्ति के स्वास्थ्य में ह्रास, चिंता का केबल एक पहलू है। विभिन्न अध्ययनों से यह स्पष्ट होता है कि घरेलू हिंसा की घटनाएँ, रोड रेज (यातायात में चालकों द्वारा प्रदर्शित हिंसा) और सड़क दुर्घटनाओं, जुआं, ऋणग्रस्तता तथा चोरी इत्यादि नशे में धुत व्यक्ति के अत्यंत सामान्य लक्षण हैं। इस कारण भारत में विभिन्न राज्यों ने समय-समय पर मद्यपान निषेध कानून लागू किए हैं जिनकी सफलता की दर भिन्न-भिन्न रही है। यद्यपि सभी राज्यों में व्यापक सामाजिक-आर्थिक विभिन्नताओं तथा भारतीय राजनीति की संघात्मक प्रकृति के कारण एक अखिल भारतीय मद्यपान निषेध कानून का क्रियान्वयन अत्यंत कठिन प्रतीत होता है। इसके अतिरिक्त, व्यक्ति-राज्य संबंधों को संचालित करने वाले एक अधिकार आधारित ढांचे की ओर बढ़ने पर मद्यपान व्यक्ति के एक अधिकार के रूप में वर्णित किया जाता है। ऐसे में पूर्ण मद्यपान निषेध हेतु लोगों को समझाना अत्यंत कठिन हो जाता है।
एक प्रभावशाली अभिकर्ता होने के कारण एक शिक्षक को सुव्यवस्थित रूप से मद्यपान निषेध के विभिन्न पहलुओं को प्रस्तुत करना चाहिए। इससे युवा श्रोताओं के मध्य विषय के संबंध में एक सुविज्ञ मत (इन्फॉर्मड ओपिनियन) के निर्माण में सहायता मिल सकती है। इससे सम्बंधित महत्वपूर्ण मुद्दों में शामिल हैं:
(a) व्यक्तिगत अधिकार
मद्यपान निषेध, नागरिकों की आहार-संबंधी आदतों तथा उनके चयन के अधिकार को सीमित करता है। चूंकि भविष्य में इस निषेध के दुरूपयोग की सम्भावना भी विद्यमान है, अतः इस तर्क के माध्यम से भी इसे उचित नहीं ठहराया जा सकता। वर्तमान में, जब निर्णय लेने वाले प्राधिकरणों का विकेन्द्रीकरण किया जा रहा है, किसी पूर्ण निषेध पर प्रश्न उठना स्वाभाविक है। इसके साथ ही यह एक निश्चित सीमा तक यह सुविज्ञ निर्णय लेने में नागरिकों की योग्यता को क्षीण करता है।
(b) सांस्कृतिक अभिवृत्ति
कुछ संस्कृतियों में मद्यपान समाजीकरण और उत्सव मनाने का एक साधन है। उदाहरण के लिए देश के विभिन्न भागों में ताड़ से बने मादक पेय तथा असम के कुछ भागों में चावल से निर्मित मादक पेय विशेष रूप से प्रचलित हैं। मध्य भारत में जनजातियाँ भी अपने उत्सवों में स्थानीय रूप से उपलब्ध अनाजों से निर्मित मादक पेय पदार्थों का प्रयोग करती हैं। पूर्ण निषेध इन सामाजिक पहलुओं की अनदेखी करता है। हालाँकि केवल व्यापक स्वीकृति किसी प्रथा को वैधता प्रदान करने तथा इससे संबंधित प्रतिकूल परिणामों की अनदेखी का कारण नहीं हो सकती।
(c) सामाजिक कल्याण
भारत जैसे एक विकासशील देश के लिए अपने नागरिकों के सामाजिक और आर्थिक कल्याण हेतु हस्तक्षेपकारी नीतियों को अपनाने की आवश्यकता होती है। भारतीय संविधान का अनुच्छेद-47, औषधीय कारणों के अतिरिक्त, मादक पदार्थों के सेवन को प्रतिबंधित करने हेतु राज्यों को निदेश देता है। महात्मा गाँधी भी मद्यपान निषेध के मौखिक समर्थकों में से एक थे। निषेध कुछ संवैधानिक निदेशों के कार्यान्वयन हेतु सरल और श्रेयस्कर उपकरण बन जाते हैं, हालाँकि उनकी प्रभावशीलता विवादास्पद है। इन तर्कों को देखते हुए इस विवाद का एक निश्चित उत्तर खोजना कठिन है। ऐसे में एक शिक्षक के रूप में कुछ ऐसे अवयवों सहित निष्कर्ष निकालना तर्कसंगत हो जाता है, जिनका इसके किसी भी समाधान में सम्मिलित होना आवश्यक है। ये हैं:
- निरंतरता- प्रभावी निषेध सुनिश्चित करना (अन्तरराज्यीय तस्करी तथा काला बाजारी को रोकना) तथा निषेध के कारण होने वाली राजस्व क्षति की पूति के लिए वैकल्पिक राजस्व स्त्रोतों का सृजन, प्रशासनिक क्षमता पर निर्भर है। अतः दीर्घकालिक समाधानों में शामिल हैं- नागरिक जागरूकता तथा निषेध पर सुस्पष्ट नीति जो समाज में विद्यमान सामाजिक-आर्थिक पहलुओं का ध्यान रखेगी
- विभिन्न हितधारकों की भूमिका- परिवार, शैक्षणिक संस्थान, मीडिया तथा रोल मॉडल्स (अनुकरणीय व्यक्ति) युवाओं के दृष्टिकोण को आकार देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। इस प्रकार ये समाधान के एक अनिवार्य भाग के रूप में होने चाहिए तथा इनके द्वारा समाज के सर्वोत्तम हित में उत्तरदायित्वपूर्वक कार्य करना चाहिए।इसी प्रकार राजनीतिक दलों को भी केवल राजनीतिक लाभ के लिए मुद्दे का राजनीतिकरण नहीं करना चाहिए तथा संवैधानिक और वैश्विक अनिवार्यताओं के अनुरूप नीतियों का निर्माण करना चाहिए।
उपयोगितावादी दृष्टिकोण से यह स्पष्ट है कि मद्यपान से समाज का सर्वसमावेशी कल्याण नकारात्मक रूप से प्रभावित होता है। कुछ लोगों के उपभोग के अधिकार के उल्लंघन के तर्क का प्रयोग समाज के अनेक लोगों के मानवाधिकारों के उल्लंघन की अनदेखी के रूप में नहीं किया जा सकता। इसके अतिरिक्त आचार-विषयक दृष्टिकोण से मद्यपान के अधिकार की सार्वभौमिकता एवं मानवता के आधार पर जाँच की जा सकती है। इससे यह ज्ञात हुआ है कि चरम मामलों में भी यदि प्रत्येक व्यक्ति मद्यपान को सार्वभौमिक स्वीकार्यता के रूप में विस्तारित करना चाहेगा तो यह कहना अस्पष्ट होगा कि यह मानवता के साथ साधन के रूप में व्यवहार करेगा या साध्य के रूप में।
हालाँकि इस सम्बन्ध में यह निश्चित रूप कहा जा सकता है कि यह एक अत्यंत लघु अल्पसंख्यक वर्ग के अधिकारों के लिए शेष व्यक्तियों के अधिकारों की उपेक्षा करता है। हालाँकि इसे एक अधिकार का दर्जा भी नहीं दिया जा सकता, अपितु इसे सीमित रूप से एक अभिलाषा या एक विलासिता (आत्म-संतुष्टि की प्राप्ति हेतु एक साधन) के रूप में वर्गीकृत किया जा सकता है।
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