केस स्टडीज : किसानों के विरुद्ध कानूनी शिकायत

प्रश्न: खाद्य एवं पेय पदार्थ से संबंधित एक फर्म के मध्यवर्ती स्तर के एक प्रबंधक को फर्म और स्थानीय किसानों के बीच ग्रामीण क्षेत्र में उत्पन्न होने वाले तनावों से निपटने का उत्तरदायित्व सौंपा गया है। इन किसानों द्वारा कंपनी को केले की आपूर्ति की जाती है, जिनका विशेष रूप से कंपनी द्वारा अपने आला (उच्च दर्जे के) उत्पादों में उपयोग किया जाता है। केले के बागानों में उक्त फर्म द्वारा विकसित एक किस्म उगायी जा रही है। मुख्य मुद्दा कंपनी के IPR के कथित उल्लंघन के इर्दगिर्द है क्योंकि पड़ोसी क्षेत्रों के कई किसान भी केले की यही किस्म उगाने लगे हैं। यह संदेह व्यक्त किया गया है कि जिन किसानों के साथ कंपनी का अनुबंध था, उन्होंने क्षेत्र के अन्य लोगों के साथ यह किस्म (बीड) साझा की है। फर्म के विधि विभाग का विचार है कि किसानों के विरुद्ध कानूनी शिकायत ही कंपनी के IPR की रक्षा करने का एकमात्र उपाय है। यह भविष्य के लिए भी एक पूर्व उदाहरण स्थापित करेगा। हालाँकि, फर्म के कई लोगों का यह भी मानना है कि इस प्रकार के कदम से मामला और आगे बढ़ेगा।

ऐसे परिदृश्य में, संबोधित किए जाने वाले प्रमुख मुद्दों की पहचान कीजिए। इन मुद्दों से निपटने के लिए आप किन उपायों का सुझाव देंगे?

दृष्टिकोण

  • पूरे मामले के विवरण को संक्षेप में प्रस्तुत कीजिए।
  • दिए गए मामले में सम्मिलित मुद्दों का विश्लेषण कीजिए।
  • मुद्दों से निपटने के लिए किए जा सकने वाले उपायों को रेखांकित कीजिए।
  • आगे की राह स्पष्ट करते हुए उत्तर समाप्त कीजिए।

उत्तर

यह केस स्टडी एक ऐसे उदाहरण को चित्रित करती है जिसमें किसानों को अनुबंध के माध्यम से केवल विशिष्ट रूप से कंपनी के उपयोग के लिए केलों की एक विशेष किस्म के उत्पादन का अधिकार दिया गया है। लेकिन, उन किसानों के कुछ पड़ोसी किसानों ने भी कंपनी के बौद्धिक संपदा अधिकार का उल्लंघन करके केलों की इस किस्म को उगाना आरंभ कर दिया है। यह सटीक रूप से ज्ञात नहीं है कि इन पड़ोसी किसानों को रोपण के लिए केले के पौधे किस प्रकार से मिले, लेकिन कंपनी को संदेह है कि अनुबंध करने वाले किसानों ने केले की किस्म पड़ोसी किसानों के साथ साझा की है।

बौद्धिक संपदा अधिकार के उल्लंघन से सम्बंधित विवादों, जैसा कि इस मामले में दर्शाया गया है, को भारत में पादप विविधता और कृषक अधिकार अधिनियम (PPV&FRAct), 2001 के तहत निपटाया जाता है।

प्रस्तुत मामला निम्नलिखित प्रमुख मुद्दों को प्रस्तुत करता है:

  • विश्वास का नैतिक, कानूनी और आपराधिक उल्लंघन: संभव है कि ऐसे किसानों ने, जो अनुबंध के अंतर्गत कार्य कर रहे हैं, जानबूझकर या अनजाने में केले की किस्म को पड़ोसियों के साथ साझा किया हो। इस प्रकार उन्होंने कंपनी के विश्वास को क्षति पहुंचाई हो और अनुबंध का कानूनी रूप से उल्लंघन किया हो। इसके लिए कंपनी द्वारा अनुबंध का उल्लंघन करने वाले किसानों के विरुद्ध अनुबंध एवं बौद्धिक संपदा अधिकार अधिनियम के अनुसार कानूनी कदम उठाए जाने की प्रक्रिया आरंभ की जा सकती है। इस कार्रवाई से कंपनी को भारी वित्तीय क्षति होने की संभावना है।
  • यहाँ समाविष्ट दुविधा यह है कि कानूनी विभाग द्वारा की गई अनुशंसा के अनुसार ऐसे किसानों पर मुकदमा करने और भविष्य के लिए उदाहरण स्थापित करने का कार्य किया जाए या मुद्दे के बढ़ने की संभावना को ध्यान में रखते हुए एक वैकल्पिक कार्रवाई की जाए।

मुद्दों से निपटने के उपायों में सम्मिलित हैं:

सबसे पहले, संदेह रहित रूप से यह सिद्ध करना महत्वपूर्ण है कि किसानों ने किस्म को दूसरे किसानों के साथ साझा किया और इस प्रकार से विश्वास का उल्लंघन किया। इसके लिए कंपनी द्वारा उचित प्रकार से जांच करवाई जानी चाहिए या जांच करने का काम किसी तीसरे पक्ष को सौंपा जाना चाहिए, इस प्रक्रिया में निम्नलिखित का विश्लेषण अवश्य किया जाना चाहिए:

  • अनुबंध के विभिन्न नियम एवं शर्ते,
  • अपने खेत की उपज को बचाने, उपयोग करने, बोने, पुनः बोने, विनिमय करने, साझा करने या बेचने के विषय में किसानों को प्राप्त विधिक स्वतंत्रता।
  • किसानों का ऐसा आचरण जिसे बौद्धिक संपदा अधिकार के उल्लंघन के रूप में माना जा सकता है।

अनुबंध के अधीन कार्य करने वाले किसानों को इस मामले पर अपना दृष्टिकोण व्यक्त करने का अवसर अवश्य दिया जाना चाहिए। स्थिति के निष्पक्ष मूल्यांकन के लिए जांच महत्वपूर्ण है। उदाहरण के लिए, यह संभव हो सकता है कि वानस्पतिक भागों को वायु, जल, जानवरों आदि द्वारा स्थानांतरित कर दिया गया हो (जैसा कि मोनसेंटो मामले में देखा गया था जिसमें बौद्धिक संपदा अधिकार के कथित उल्लंघन के लिए एक कनाडाई किसान पर मुकदमा दायर किया गया था)।

इसी प्रकार, कभीकभी बौद्धिक संपदा अधिकार द्वारा संरक्षित किस्मों के ऐसे अंकुरों और महीन जड़ों को खेत में ही छोड़ दिया जाता है जो अत्यधिक छोटे आकार के होने के कारण प्रसंस्करण के लिए पर्याप्त उपयोगी नहीं होते हैं। ये बीज व्यापारियों के माध्यम से किसानों तक पहुंच जाते हैं, जिसके लिए संबंधित व्यापारियों को ही बौद्धिक संपदा अधिकार के उल्लंघन के लिए उत्तरदाई ठहराया जाना चाहिए। इसके अतिरिक्त, किसी निष्कर्ष पर पहुंचने के लिए पड़ोसी गांवों में संरक्षित किस्म की खेती करने वाले किसानों को भी इस प्रक्रिया में सम्मिलित करना आवश्यक है। प्रबंधक/कंपनी की भविष्य की कार्रवाई पूरी तरह से इस मुद्दे की विस्तृत जांच पर आधारित होनी चाहिए, क्योंकि जल्दबाजी में की गई कार्रवाइयाँ कंपनी की व्यावसायिक संभावनाओं को बेहतर बनाने के स्थान पर उन्हें अधिक क्षति पहुंचा सकती हैं और इस समस्या को और अधिक बढ़ा सकती हैं।

यदि विस्तृत जांच के बाद किसानों द्वारा जानबूझकर अनुबंध का उल्लंघन किए जाने का पता चलता है, तो गंभीर विधिक परिणामों की कड़ी चेतावनी जारी की जानी चाहिए और अनुबंध का उल्लंघन करने वाले किसानों के साथ अनुबंध को अनिवार्य रूप से समाप्त कर दिया जाना चाहिए। इससे मुद्दे की गंभीरता के विषय में सफल संदेश जाएगा और अनुबंध के समापन का भय भविष्य में इस प्रकार के अन्य अनुबंधों में बौद्धिक संपदा अधिकार के उल्लंघन को रोकेगा। किसानों पर मुकदमा करना एक उदाहरण स्थापित कर सकता है लेकिन इससे कंपनी की प्रतिष्ठा धूमिल हो जाएगी और उसके ब्रांड को क्षति पहुंच सकती है। इसलिए, इन पहलुओं के गुणों और दोषों पर कंपनी के ऐतिहासिक आंकड़ों तथा उसकी ग्राहक और निवेशक प्रोफाइल को ध्यान में रखकर विचार किया जाना चाहिए। कंपनी को नागरिक समाज संगठनों और कृषि यूनियनों के विरोध और हिंसा का भी सामना करना पड़ सकता है।

भविष्य में बौद्धिक संपदा अधिकारों के उल्लंघनों को रोकने के लिए, कंपनी को अनुबंध में प्रवेश करते समय बौद्धिक संपदा अधिकार कानूनों के विषय में जागरुकता उत्पन्न करनी चाहिए। उसे बौद्धिक संपदा अधिकारों द्वारा संरक्षित उपज के विषय में किसानों के अनुमेय अधिकारों और सीमाओं के संबंध में किसानों की जानकारी को बढ़ाने के लिए कॉर्पोरेट सामाजिक उत्तरदायित्व निधियों का उपयोग करना चाहिए। साथ ही अनुबंध खेती, अनुबंध और संबंधित बौद्धिक संपदा अधिकारों का पालन करने की नैतिक और कानूनी आवश्यकताओं के विषय में जागरुकता विकसित करने के लिए स्वयं सहायता समूहों/गैरसरकारी संगठनों को नियोजित करने पर विचार किया जाना चाहिए।

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