केस स्टडीज : जिला मजिस्ट्रेट द्वारा चुनौतियों से निपटने हेतु अपनाई जाने वाली कार्रवाई

प्रश्न: आप एक ऐसे दूरस्थ जनजातीय जिले के निवासी हैं, जहाँ कुपोषण व्यापक रुप से विद्यमान है। उपचारात्मसक उपाय के रुप में, जिला मजिस्ट्रेट ने विशेषकर वर्तमान में जिले में परती पड़ी भूमि पर बाजरा की खेती प्रोत्साहित करने का कार्यक्रम आरंभ किया हालाँकि, अधिकारी का यह सुविचारित कदम स्थानीय आदिवासियों की ओर से कठोर आलोचना का विषय बन गया है, क्योंकि इससे न केवल उनकी युगों पुरानी खान-पान की आदतें परिवर्तित हो सकती हैं, बल्कि उनकी पारंपरिक कृषि पद्धतियाँ भी बदल सकती हैं। वे अपने वर्तमान फसल उत्पादन पैटर्न को जारी रखने के लिए एक और कारण के रुप में बाजरा की कम लाभप्रद कीमतों का भी उद्धरण देते हैं। एक सिविल सेवक अभ्यर्थी के रुप में, जिसकी जनजातीय क्षेत्रों के विकास में गहरी रुचि है, निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर दीजिए:

(a) आपके अनुसार उपर्युक्त परिस्थिति में सम्मिलित प्रमुख मुद्दे और चुनौतियाँ क्या हैं?

(b) प्रमुख हितधारकों और उनके संबंधित हितों की पहचान कीजिए।

(c) आदिवासियों के व्यापक हितों को ध्यान में रखते हुए, जिला मजिस्ट्रेट द्वारा की जा सकने वाली कार्यवाही का सुझाव दीजिए।

दृष्टिकोण

  • कुपोषण पर आंकड़े प्रस्तुत करते हुए उत्तर प्रारंभ कीजिए।
  • दी गई केस स्टडी में प्रमुख मुद्दों और चुनौतियों को सूचीबद्ध कीजिए।
  • हितधारकों और उनके हितों को वर्णित कीजिए।
  • जिला मजिस्ट्रेट द्वारा चुनौतियों से निपटने हेतु अपनाई जाने वाली कार्रवाई का उल्लेख कीजिए।

उत्तर

इस प्रकरण में कुपोषण की व्यापकता से ग्रसित जिले के जनजातीय समुदाय के लिए दीर्घकालिक लाभ सुनिश्चित करने हेतु उनकी युगों पुरानी खान-पान की आदतों और कृषि पद्धतियों में परिवर्तन करना सम्मलित है। यह प्रकरण हाल ही में जारी भारत के खाद्य पोषण सुरक्षा विश्लेषण, 2019 के कारण और भी अधिक महत्त्वपूर्ण हो जाता है, जिसमें कहा गया है कि अनुसूचित जनजातियों के बच्चों में (43.6%) अवरुद्ध विकास की घटनाओं की अत्यधिक व्यापकता है।

(a) इस प्रकरण में सम्मिलित प्रमुख मुद्दे और चुनौतियां निम्नलिखित हैं:

  •  हितधारकों में असहमति: जनजातीय लोगों को अपनी पारम्परिक खान-पान की आदतों और कृषि पद्धतियों में एक नई जीवन शैली को अपनाने के लिए सहमत करने की प्रक्रिया में टकराव उत्पन्न होने की सम्भावना है, जिसके कारण जिले के अधिकारियों और आदिवासियों के मध्य विश्वास में कमी आ सकती है।
  • कुपोषण की घटनाएं: असंतुलित आहार पद्धति और जागरुकता का अभाव कुपोषण की घटनाओं में कमी लाने में एक प्रमुख बाधक का कार्य करेगा।
  • बाजरे की कम-लाभप्रद कीमतें: अन्य फसलों की तुलना में बाजरे की कम-लाभप्रद कीमतें जनजातीय लोगों को बाजरे की खेती को अपनाने से निरुत्साहित करेंगी।
  • परिवर्तन को बनाए रखना: कल्पना को यथार्थ में परिवर्तित करने हेतु, प्रमुख मुद्दा जिले के निवासियों के बीच लम्बे समय तक खान-पान में परिवर्तन को बनाए रखना होगा।

(b) प्रमुख हितधारक और उनके हित निम्नलिखित हैं:

  •  जनजातीय समुदाय: इस प्रकरण में जनजातीय समुदाय प्रमुख हितधारक हैं, क्योंकि वे जिले में फसलों के उत्पादक भी हैं और उपभोक्ता भी हैं। खान-पान की आदतों, कृषि पद्धतियों तथा लाभप्रद कीमतों से संबंधित उनके हित प्रशासन के लिए अति महत्त्वपूर्ण हैं।
  • जिला मजिस्ट्रेट और जिला प्रशासन: DM को बाजरे की खेती को पुनर्जीवित करने और भूमि उपयोग को प्रोत्साहित  करने हेतु एक उचित योजना प्रस्तुत करनी होगी। उनकी रूचि स्पष्ट रूप से जिले के स्वास्थ्य संकेतकों में सुधार करना और सभी को लाभान्वित करना है।
  • मैं और मेरे जैसे अन्य जनजातीय युवा जो बाजरे की खेती के लाभों के बारे में जागरुकता का प्रसार कर सकते हैं और परिवारों को जिला प्रशासन के सुविचारित कदम पर विश्वास रखने के लिए आश्वस्त कर सकते हैं।

(c) जिला प्रशासन द्वारा एक ऐसा मॉडल विकसित करना चाहिए जो सभी हितधारकों के लिए उपयुक्त हो।

इस संदर्भ में, जिला प्रशासन को संयुक्त राष्ट्र SDG 17 के अनुरूप एक सार्वजनिक निजी सामुदायिक भागीदारी मॉडल को प्रस्तुत करना चाहिए, जो प्रभावी भागीदारी को प्रोत्साहित करने के लिए बॉटम अप/समुदाय-चालित दृष्टिकोण का समर्थन करे।

इसके अंतर्गत समुदाय के सदस्यों में परिवर्तन करने हेतु एक गैर-सरकारी संगठन के साथ निजी क्षेत्र को सम्बद्ध करके निविदा आमंत्रित की जा सकती है। प्रारम्भ में, जनजातीय लोगों के दैनिक जीवन में व्यापक परिवर्तन करने से बचने के लिए पशुधन कृषि के साथ एक मिश्रित फसल पद्धति को अपनाया जा सकता है। इसके साथ ही, जिला प्रशासन को परती भूमि पर बाजरे की खेती के महत्त्व के बारे में जागरुकता प्रसार पर ध्यान केन्द्रित करना चाहिए।

जनजातीय समुदाय में भूमि उपयोग, कृषिगत विविधता, और कुपोषण के दुष्प्रभावों को उजागर करने पर ध्यान केन्द्रित करना चाहिए। इच्छुक जनजातीय किसानों के बीच स्थानीय निकायों के सहयोग से कार्यशालाओं का आयोजन किया जाना चाहिए ताकि उनके विरोध को कम किया जा सके। सांसद स्थानीय क्षेत्र विकास योजना (MPLAD) या दाता संगठनों से प्राप्त धनराशि का उपयोग परिचालन लागत को कम करने के लिए किया जाना चाहिए, जिससे बाजरे की खेती को और अधिक लाभप्रद बनाया जा सके। इसके अतिरिक्त अधिशेष उत्पाद की बेहतर कीमतों को सुनिश्चित करने के लिए उचित ब्रांडिंग के साथ विपणन हेतु TRIFED जैसे निकायों को सम्मिलित किया जा सकता है।

समग्रतः, जनजातीय समुदाय की किसी भी शंका के निवारण हेतु बाजरे की खेती के लाभों के संबंध में उन्हें शिक्षित किया जाना चाहिए। यह न केवल प्रशासन के प्रति जनजातीय समुदाय के विश्वास में वृद्धि करेगा, बल्कि दीर्घकाल में स्वयं उन्हें परिवर्तन के लिए एक उत्प्रेरक के रूप में कार्य करने हेतु सशक्त करेगा।

Read More

Add a Comment

Your email address will not be published. Required fields are marked *


The reCAPTCHA verification period has expired. Please reload the page.