भारतीय अर्थव्यवस्था के लिए बॉण्ड (बंधपत्र)

प्रश्न: भारतीय अर्थव्यवस्था के लिए बॉण्ड (बंधपत्र) बाजारों को व्यापक बनाने की आवश्यकता पर चर्चा कीजिए। साथ ही भारत में बॉण्ड बाजार के अल्प विकसित होने के कारणों की पहचान कीजिए।

दृष्टिकोण

  • भारतीय अर्थव्यवस्था में बॉण्ड बाजार के महत्व का संक्षिप्त उल्लेख करते हुए, बॉण्ड एवं बॉण्ड बाजार को परिभाषित कीजिए।
  • भारत में बॉण्ड बाजार को व्यापक बनाने की आवश्यकता को वर्णित कीजिए।
  • भारत में बॉण्ड बाजार के अल्प विकसित होने के कारणों को सूचीबद्ध कीजिए।
  • उचित निष्कर्ष देते हुए हाल ही में इस संदर्भ में उठाए गए कुछ कदमों का उल्लेख किया जा सकता है।

उत्तर

भारत में, सीमित ऋण स्रोतों तक बड़े उद्योगों की विस्तृत पहुँच है। केयर रेटिंग्स की एक रिपोर्ट के अनुसार, भारत की केवल 106 बड़ी कंपनियों द्वारा बैंकों से 47% धन प्राप्त किया गया है और इनमें से 16 ने कभी भी बॉण्ड बाजार में प्रवेश नहीं किया है। इस प्रकार, भारतीय कंपनियों को बॉण्ड बाज़ार से जोड़ने और अत्यधिक दबावग्रस्त बैंकिंग प्रणाली के भार को कम करने की आवश्यकता है।

बॉण्ड, किसी सार्वजनिक या निजी संगठन द्वारा जारी किया जाने वाला एक वित्तीय ऋण उपकरण होता है जिसके माध्यम से परिचालित परियोजनाओं या नई परियोजनाओं के वित्तीयन, व्यापार का विस्तार करने या अल्पकालिक तरलता आवश्यकताओं की पूर्ति हेतु बाजार से वित्त प्राप्त किया जाता है।

बॉण्ड बाजार को व्यापक बनाने की आवश्यकता:

  • सुव्यवस्थित तरीके से विकसित कॉर्पोरेट बॉण्ड मार्केट वस्तुतः दीर्घकालिक निवेश आवश्यकताओं की पूर्ति हेतु अर्थव्यवस्था के विभिन्न क्षेत्रकों को वित्त का एक वैकल्पिक स्रोत प्रदान करता है और इस प्रकार यह बैंकिंग प्रणाली के पूरक के तौर पर कार्य करता है।
  • एक सक्रिय कॉर्पोरेट बॉण्ड मार्केट वित्तीय प्रणाली में जोखिमों के विकेन्द्रीकरण में भी सहायक है।
  • सार्वजनिक और निजी क्षेत्र की कंपनियों को अपनी निवेश आवश्यकताओं को पूरा करने तथा असंतुलित तुलन-पत्र एवं विदेशी मुद्रा से संबद्ध जोखिमों से बचने के लिए स्थानीय मुद्रा में अधिक परिपक्वता अवधि वाले ऋण प्राप्त करने में सक्षम बनाने हेतु स्थानीय मुद्रा बॉण्ड बाजार के विकास को गति प्रदान करने की आवश्यकता है।
  • एक सक्रिय कॉर्पोरेट बॉण्ड मार्केट संस्थागत निवेशकों (जैसे- बीमा कंपनियां और प्रोविडेंट एवं पेंशन फंड) को गुणवत्तापूर्ण दीर्घकालिक वित्तीय परिसंपत्तियां उपलब्ध कराता है, जिससे संस्थागत निवेशकों को अपनी परिसंपत्तियों एवं देयताओं को संतुलित करने में सहायता मिलती है।

भारतीय बॉण्ड बाजार पूर्णतः विकसित नहीं हुआ है, क्योंकि:

  • बैंक ऋण पर ब्याज दरें, संवेदनशील बॉण्ड बाजार की तुलना में कम होती हैं।
  • AA या उससे ऊपर की श्रेणियों के लिए सीमित निर्गमन, लघु उद्यमों के लिए संभावनाओं को सीमित करता है।
  • पेंशन और बीमा फंड के निवेश संबंधी निर्देश उनके बॉण्ड बाजार में निवेश संबधी अवसरों को सीमित करते हैं।
  • अक्षम ट्रेडिंग प्लेटफॉर्म, द्वितीयक बाजार के अल्प विकास का कारण है।

बॉण्ड बाज़ारों की क्षमता को ध्यान में रखते हुए, भारत में बॉण्ड बाज़ारों को व्यापक बनाने के लिए कुछ कदम उठाए गए हैं। हाल ही में सेबी द्वारा प्रस्ताव प्रस्तुत किया गया है कि बड़े उद्यमों को 25% ऋण बॉण्ड बाज़ार से प्राप्त करने होंगे। इसके अतिरिक्त, RBI द्वारा कॉर्पोरेट बॉण्ड मार्केट को रेपो रेट से संबद्ध करना भी इस दिशा में उठाया गया एक सकारात्मक कदम है। दिवाला और ऋण-शोधन अक्षमता संहिता (IBC) द्वारा भी डिफॉल्टरों पर नियंत्रण आरोपित करने और अपने हितों की रक्षा करने का अधिकार प्रदान करके बॉण्ड धारकों को सशक्त किया गया है।

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