BIMSTEC का संक्षिप्त परिचय : भारत के लिए अपनी विदेश नीति संबंधी प्रमुख प्राथमिकताओं की पूर्ति हेतु एक स्वाभाविक चयन
प्रश्न: बहु-क्षेत्रीय तकनीकी एवं आर्थिक सहयोग के लिए बंगाल की खाड़ी पहल (BIMSTEC),भारत के लिए अपनी विदेश नीति संबंधी प्रमुख प्राथमिकताओं की पूर्ति हेतु एक स्वाभाविक चयन है। इस संदर्भ में, अब तक हुई धीमी प्रगति के पीछे निहित मुद्दों और BIMSTEC के संबंध में पुनर्जीवित होते आशावाद की चर्चा कीजिए।
दृष्टिकोण
- BIMSTEC का संक्षिप्त परिचय दीजिए।
- यह बताइए कि भारत की विदेश नीति की मुख्य प्राथमिकताओं को पूरा करने हेतु यह स्वाभाविक विकल्प किस प्रकार है।
- पूर्व में इसकी मंद प्रगति के लिए उत्तरदायी कारणों का उल्लेख कीजिए।
- बताइए कि इसके प्रति जागृत नवीन रूचि के क्या कारण हैं।
उत्तर
बहु-क्षेत्रीय तकनीकी एवं आर्थिक सहयोग के लिए बंगाल की खाड़ी पहल (BIMSTEC) की स्थापना 1997 में की गई थी। इसके सदस्य भारत, बांग्लादेश, भूटान, म्यांमार, नेपाल, श्रीलंका और थाईलैंड हैं। 1.5 अरब लोगों को साथ लाकर यह समूह उन्हें बंगाल की खाड़ी के तटीय देशों के मध्य व्यापक सहयोग के माध्यम से पारस्परिक लाभ हेतु अवसर प्रदान करता है। दक्षिण और दक्षिण पूर्व एशिया के महत्वपूर्ण क्षेत्रों के मध्य एक सेतु के रूप में BIMSTEC भारत के लिए निकटतम और विस्तारित पड़ोस में अपने हितों को आगे बढ़ाने के लिए स्वाभाविक विकल्प के रूप में उभरा है।
पूर्व में बिम्सटेक की मंद प्रगति के लिए उत्तरदायी कारण:
- बिम्सटेक शिखर सम्मेलन की अनियमितता : अपने 20 वर्षों के इतिहास में, बिम्सटेक शिखर सम्मेलन केवल तीन बार आयोजित हुआ है।
- नेतृत्व की कमी: हालांकि, भारत और थाईलैंड इस पहल के प्रमुख अभिकर्ताओं में से थे। तथापि इन्होंने दूसरे समूहों, (क्रमशः SAARC और ASEAN) को प्राथमिकता दी। यह इस बात को दर्शाता है कि एक लम्बी अवधि तक बिम्सटेक में सार्थक नेतृत्व की कमी रही है।
- जनशक्ति, वित्त पोषण और संस्थागत तंत्र जैसे-सचिवालय आदि की कमी ने समूहीकरण को लंबे समय तक प्रभावित किया है।
- शिखर सम्मेलन में किए गए निर्णयों पर अनुवर्ती कार्यवाही का अभाव।
- सदस्य देशों में अत्यधिक संरक्षणवाद। यद्यपि, 2004 में एक मुक्त व्यापार समझौते पर हस्ताक्षर किए गए थे, किन्तु अभी तक यह लागू नहीं हुआ है।
- सदस्य देशों के मध्य निम्रस्तरीय कनेक्टिविटी, उदाहरण के लिए भारत और बांग्लादेश या म्यांमार के बीच प्रस्तावित पहलों में लंबे समय तक पर्याप्त प्रगति नहीं हुई।
- इस क्षेत्र के अत्यधिक राजनीतिकरण और सैन्यीकरण ने एकीकरण/सहयोग को चुनौतीपूर्ण बना दिया है।
इसके बावजूद, हाल के दिनों में BIMSTEC के प्रति एक नयी रूचि देखी जा रही है जिसमें विशेष रूप से भारत सर्वाधिक सक्रिय है। 2014 में ढाका में एक सचिवालय की स्थापना, भारत द्वारा 2016 में BRICS, BIMSTEC की पहुँच की संभावनाओं के लिए लघु-स्तरीय शिखर सम्मेलन की मेजबानी करना और सहयोग के क्षेत्रों की पहचान करने की दिशा में हो रही प्रगति नयी आशाओं के संचार की ओर संकेत करती है। इसके लिए निम्नलिखित कारकों का उल्लेख किया जा सकता है:
- SAARC में व्याप्त समस्याओं को देखते हुए वैकल्पिक क्षेत्र के रूप में BIMSTEC एक अवसर प्रदान करता है।
- पाकिस्तान की घुसपैठ और चीन के उदय को ध्यान में रखते हुए भारत ने उप क्षेत्रीय और क्षेत्रीय सहयोग को बढ़ावा देने में रूचि दिखाई है।
- भारत की लुक ईस्ट पॉलिसी ने लुक ईस्ट एप्रोच के माध्यम से और भी गति प्राप्त की है।
- भारत ने पूर्वोत्तर क्षेत्र को बांग्लादेश एवं म्यांमार के लिए खोलकर इसके विकास में समूहन की क्षमता को पहचाना है।
- BIMSTEC थाईलैंड की लुक वेस्ट पॉलिसी में उसका सहयोग करता है।
- BIMSTEC ढांचे के अंतर्गत छोटे राष्ट्र, भारत और थाईलैंड के बाजारों को बेहतर विकल्प के रूप में देखते हैं।
इस प्रकार, BIMSTEC बंगाल की खाड़ी के देशों को एक अवसर प्रदान करता है कि वे मिलकर काम करें तथा शांति और विकास के लिए एक साझा परिवेश तैयार करें।
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