भूस्खलन की संक्षिप्त व्याख्या

प्रश्न:हिमालयी क्षेत्र भूस्खलनों प्रति सुभेद्य क्यों है? इस क्षेत्र में बार-बार होने वाले भूस्खलनों की रोकथाम हेतु क्या कदम उठाए जा सकते है?

दृष्टिकोण:

  • उत्तर के आरम्भ में भूस्खलन की संक्षिप्त व्याख्या कीजिए।
  • हिमालयी क्षेत्र को भूस्खलनों के लिए सुभेद्य बनाने वाले कारणों को सूचीबद्ध कीजिए।
  • हिमालयी क्षेत्र में बार-बार होने वाले भूस्खलन की रोकथाम करने हेतु किए जा सकने वाले उपायों का उल्लेख कीजिए।

उत्तरः

भूस्खलन गुरुत्वाकर्षण के प्रभाव में ढाल के पदार्थों जैसे कि चट्टानी मलबे और मृदा की अधोगामी और बर्हिगामी गति है। भूस्खलन स्थलीय प्राकृतिक आपदाओं में से एक है जो भारतीय भू-भाग के 15% से अधिक क्षेत्र (0.49 मिलियन वर्ग किलोमीटर से अधिक) को प्रभावित करती है।

अन्य आपदाओं के विपरीत, भूस्खलन अत्यधिक स्थानीयकृत कारकों द्वारा नियंत्रित होता है। देश के हिमालयी और पूर्वोत्तर भागों की अराकान-योमा पट्टी के भू-गतिकीय रूप से सक्रिय प्रदेश में प्राय: बार-बार विभिन्न प्रकार के भूस्खलन की घटनाएँ घटित होती हैं। भूस्खलन आपदा अनुक्षेत्र वर्गीकरण मानचित्रण ने हिमालयी क्षेत्र को अति उच्च सुभेद्यता क्षेत्र के रूप में वर्गीकृत किया गया है।

हिमालयी क्षेत्र को भूस्खलन घटना के प्रति अधिक प्रवण बनाने वाले कारक:

भूगर्भीय कारक

  • विवर्तनिक रूप से सक्रिय – हिमालय पर्वत श्रृंखलाओं और पूर्वोत्तर के पर्वतीय क्षेत्रों में विवर्तनिक प्लेट सीमांत से निकटता के कारण उच्च भूकंपीयता देखने को मिलती है। भूकंप से सह-भूकंपीय भूस्खलन घटित होता है अथवा प्रेरित होता है।
  • तीव्र ढाल – हिमालयी क्षेत्र अपरिपक्व और ऊबड़-खाबड़ स्थलाकृति, चट्टान की भंगुर स्थिति के कारण ढलान की अस्थिरता के प्रति अतिसंवेदनशील है। हिमालय की चट्टाने अधिकांशत: अवसादी चट्टानों और संगठित एवं अर्द्ध संगठित निक्षेपों से निर्मित हैं।

जलवायविक कारक

  • गहन वर्षा – अत्यधिक वर्षा से मृदा अपरदन होता है और इससे बार-बार भूस्खलन घटित हो सकता है।

मानवजनित कारक

  • निर्वनीकरण– प्राकृतिक वनस्पति अच्छादन में कमी के कारण भूपृष्ठीय और भूजल व्यवस्था में परिवर्तन के परिणामस्वरूप ढलान की स्थिरता अव्यवस्थित हो जाती है। इससे मृदा ढीली हो जाती है और मृदा अपरदन में वृद्धि होती है।
  • जनसंख्या दबाव और विकासात्मक गतिविधियां- शहरीकरण, सड़कों और बांधों के निर्माण, खनन, चराई की गतिविधियों में वृद्धि आदि के कारण अवैज्ञानिक भूमि उपयोग ने इस खतरे को कई गुना बढ़ा दिया है।

हिमालयी क्षेत्र में भूस्खलन की बारंबारता को कम करने के लिए निम्नलिखित न्यूनीकरण उपाय किए जा सकते हैं:

  • ढलान स्थिरीकरण उपाय करना- व्यापक पैमाने पर वनीकरण कार्यक्रमों को प्रोत्साहन प्रदान करने और प्रतिधारण भित्तियों का निर्माण करने से ढलान की स्थिरता बनाए रखने में सहायता प्राप्त होगी।
  • क्षेत्र-विशिष्ट उपायों को अपनाना – कृषि को घाटियों और मध्यम ढलान वाले क्षेत्रों तक सीमित करना, वृहद अधिवास के विकास को नियंत्रित करना, उत्तर-पूर्वी पहाड़ी राज्यों में सीढ़ीनुमा कृषि को प्रोत्साहित करना जहां स्थानांतरित कृषि अभी भी प्रचलित है।
  • भूपृष्ठीय अपवाह में सुधार- अतिरिक्त जल को निर्बाध रूप से नीचे की ओर अपवाहित करने के लिए सर्फेस डिच या कैचवाटर ड्रेन का उपयोग, अत्यधिक वर्षा के दौरान जल प्रवाह कम करने के लिए बंध का निर्माण। इसे जल संचयन प्रणालियों के विकास द्वारा अनुपूरित किया जाना चाहिए।
  • आपदा अनुक्षेत्र वर्गीकरण मानचित्रण– भारत के भूस्खलन मानचित्र को निरंतर अद्यतित करने के साथ व्यापक और उपयोगकर्ताओं के अनुकूल नेशनल लैंडस्लाइड इन्वेंटरी डेटाबेस तैयार करना।
  • भूस्खलन की निगरानी और पूर्वानुमान- वर्षा की तीव्रता, ढलान की सतह और उप-ढलान संचलन के मध्य अंतर-संबंध पर अध्ययनों से भूस्खलन का बेहतर पूर्वानुमान लगाया जा सकता है।
  • विनियमन और प्रवर्तन- निर्माण और अन्य विकासात्मक गतिविधियों पर प्रतिबंध, भूस्खलन सुरक्षित भू-उपयोग परिपाटियों को अपनाना, भूमि उपयोग क्षेत्रीकरण और भूस्खलन सुरक्षा मानदंडों का अनुपालन।
  • लोगों की भागीदारी- इससे स्थानीय जागरूकता बढ़ाने और स्थानीय ज्ञान के आधार पर प्रतिपुष्टि (फीडबैक) लेने में सहायता प्राप्त होगी।

भारतीय भूवैज्ञानिक सर्वेक्षण ने भूस्खलन जोखिम में कमी और प्रबंधन सुनिश्चित करने के लिए उत्तर-पूर्वी क्षेत्र (NER) और सिक्किम सहित देश के विभिन्न भागों में भूस्खलन संवेदनशीलता का मानचित्रण किया है। इसके साथ ही, हिमालयी क्षेत्र में भूस्खलन का खतरा कम करने के लिए भूस्खलन और हिमस्खलन के प्रबंधन पर राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण (NDMA) दिशानिर्देशों को लागू करने की आवश्यकता है।

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