भू-निम्नीकरण तटस्थता : महत्व एवम इसे प्राप्त करने हेतु आवश्यक कदम

प्रश्न: भू-निम्नीकरण तटस्थता पद से आप क्या समझते हैं? इसके महत्व पर प्रकाश डालिए एवं इसे प्राप्त करने हेतु आवश्यक कदमों का उल्लेख कीजिए।

दृष्टिकोण

  • उत्तर के प्रारंभ में, भू-निम्नीकरण तटस्थता (LDN) को परिभाषित कीजिए। 
  • इसके सिद्धांतों का विस्तृत वर्णन कीजिए।
  • LDN के महत्व का वर्णन कीजिए।
  • इसे प्राप्त करने के लिए आवश्यक क़दमों का उल्लेख कीजिए।

उत्तर

यूनाइटेड नेशंस कन्वेंशन टू कॉम्बैट डेजर्टिफिकेशन (UNCCD) के अनुसार, भू-निम्नीकरण तटस्थता (LDN) एक ऐसी स्थिति है, जिसमें पारिस्थितिक तंत्र सेवाओं का समर्थन करने और खाद्य सुरक्षा के संवर्धन हेतु आवश्यक भूमि संसाधनों की मात्रा और गुणवत्ता, निर्दिष्ट सामयिक एवं स्थानिक पैमानों के अंतर्गत या तो स्थिर रहे या उनमें वृद्धि हो। LDN की अवधारणा को वर्ष 2030 के एजेंडा फॉर सस्टेनेबल डेवलपमेंट के एक भाग के रूप में पहले से ही अपनाया जा चुका है और यह सतत विकास लक्ष्यों (SDGs) में निहित है, जो इसकी वैश्विक प्रकृति को रेखांकित करता है।

LDN भूमि प्रबंधन नीतियों एवं प्रथाओं में होने वाले प्रतिमान विस्थापन को इंगित करता है। यह एक अद्वितीय दृष्टिकोण है, जो उत्पादक भूमि की अपेक्षित क्षति को निम्नीकृत क्षेत्रों की पुनर्घाप्ति के साथ प्रतिसंतुलित करता है।

भू-निम्नीकरण तटस्थता का महत्व निम्नलिखित है:

  • आर्थिक लागतों की बचत: एक अनुमान के अनुसार विश्व स्तर पर मरुस्थलीकरण, भू-निम्नीकरण और सूखे (DLDD) के कारण प्रति वर्ष 490 बिलियन अमेरिकी डॉलर व्यय करने पड़ते हैं। भारत द्वारा इनसे निपटने हेतु अपनी GDP का लगभग 2.54% अर्थात 47 बिलियन डॉलर (2014-15) व्यय किया जाता है।
  • जलवायु परिवर्तन के प्रति शमन और अनुकूलन: भू-निम्नीकरण को रोकना और उसे पूर्व स्थिति में लाना ताकि भूमि को ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जनकर्ता से कार्बन सिंक के एक स्रोत में रूपांतरित किया जा सके।
  • ग्रामीण समुदायों की सुनम्यता को मज़बूत करना: विश्व की 40% निम्नीकृत भूमि प्रायः उन क्षेत्रों (अधिकांश ग्रामीण क्षेत्र) में पाई जाती है, जहाँ गरीबी की उच्चतम दर विद्यमान है। LDN मृदा अपरदन, मरुस्थलीकरण, जैव विविधता की क्षति आदि को रोककर महत्वपूर्ण पारिस्थितिक तंत्र सेवाओं संबंधी प्रबंधन में सुधार कर उनकी सुनम्यता में वृद्धि करेगी।
  • बढ़ती मांगों की पूर्ति: वर्ष 2030 तक खाद्य, ऊर्जा एवं जल की मांग में क्रमशः 50%, 45% और 30% की वृद्धि होने की सम्भावना है। जब तक हम अपनी भूमि की उत्पादकता का संरक्षण और उसे पुनर्स्थापित नहीं करते हैं, तब तक इन आवश्यकताओं की पूर्ति करना संभव नहीं है।

इसे प्राप्त करने हेतु आवश्यक कदम:

  • बहुकार्यात्मक भू-दृश्य दृष्टिकोण: विभिन्न हितधारकों को ध्यान में रखते हुए, भूमि-उपयोग नियोजन को भू-दृश्य स्तर पर किया जाना चाहिए जो जैव विविधता को संरक्षण प्रदान करते हुए लोगों की मांगों की सर्वोत्तम ढंग से पूर्ति कर सके।
  • विभिन्न लाभों हेतु कृषि करना: कृषिगत अभ्यासों को पारिस्थितिकीय दृष्टि से संधारणीय तरीके में स्थानांतरित किया जाना चाहिए, जो सामाजिक, पर्यावरणीय और आर्थिक लाभों की एक व्यापक श्रेणी का समर्थन करने में सक्षम हो।
  • ग्रामीण-शहरी इंटरफेस को प्रबंधित करना: परिधीय क्षेत्रों की आवश्यकताओं को ध्यान में रखते हुए संधारणीय शहरों को डिजाइन करना, जिससे परिवहन, खाद्य, जल एवं ऊर्जा संबंधी पर्यावरणीय लागत में कटौती की जा सके।
  • स्वस्थ एवं उत्पादक भूमि में निवल क्षति नहीं करना: ऐसा प्राकृतिक संसाधनों के संधारणीय उपभोग तथा उत्पादन हेतु प्रोत्साहन प्रदान करके किया जा सकता है। उदाहरणार्थ: खाद्य अपव्यय के वर्तमान स्तरों में कमी को प्रोत्साहित करना। सक्षम वातावरण का सृजन करना: स्थानीय सफलताओं को वृहत पैमाने पर हितधारकों की संलग्नता, भू-राजस्व व्यवस्था तथा निरंतर निवेश और अवसंरचना की उपलब्धता के माध्यम से प्रसारित किया जाना चाहिए।
  • साक्ष्य संबंधी आधार का गठन करना: यह LDN द्वारा लक्ष्य की प्रगति की निगरानी करने, अवांछित बाह्य कारकों पर नज़र रखने तथा पुनर्स्थापन के दौरान कार्यवाहियों के प्रभाव का आकलन करने में सहायता प्रदान करेगा।

भू-निम्नीकरण तटस्थता को प्राप्त करने के लिए, अंतर्राष्ट्रीय स्तर (UNCCD द्वारा आयोजित लैंड फॉर लाइफ प्रोग्राम) और राष्ट्रीय स्तर (राष्ट्रीय कृषि विकास योजना, प्रधानमंत्री कृषि सिंचाई योजना) के कार्यक्रमों को एकीकृत करने की आवश्यकता है, ताकि दीर्घकालिक दृष्टिकोण के तहत मरुस्थलीकरण, भू-निम्नीकरण एवं सूखे संबंधी समस्याओं से संबंधित चिंताओं का शमन किया जा सके।

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