अपशिष्ट निपटान : शहरों को ‘स्मार्ट’ बनाने के लिए भूमिभराव (लैंडफिल)

प्रश्न: हमारे शहरों को ‘स्मार्ट’ बनाने के लिए भूमिभराव (लैंडफिल) के वर्तमान मॉडल को अपशिष्ट के प्रसंस्करण और सुरक्षित निपटान से प्रतिस्थापित किया जाना चाहिए। स्पष्ट कीजिए। इस संदर्भ में, भारत में अपशिष्ट प्रबंधन नीतियों की विफलता के कारणों का विश्लेषण कीजिए।

दृष्टिकोण

  • अपशिष्ट निपटान के वर्तमान मॉडल अर्थात् भूमिभराव (लैंडफिल) के विवरण के साथ, अपशिष्ट प्रबंधन के संदर्भ में ‘स्मार्ट’ शहर की संक्षिप्त व्याख्या कीजिए।
  • लैंडफिल की तुलना में अपशिष्ट प्रसंस्करण के लाभों का वर्णन कीजिए।
  • उत्तर के दूसरे भाग में, भारत की अपशिष्ट प्रबंधन नीतियों का संक्षेप में उल्लेख कीजिए।
  • तत्पश्चात, अपशिष्ट प्रबंधन नीतियों की विफलता के कारणों को सूचीबद्ध कीजिए। 
  • भावी उपायों के साथ निष्कर्ष दीजिए।

उत्तर

अपशिष्ट प्रबंधन के सन्दर्भ में ‘स्मार्ट’ का पर्याय ‘संधारणीय’ होता है। संयुक्त राष्ट्र की एक रिपोर्ट के अनुसार 2050 तक भारत की 60% आबादी शहरी क्षेत्रों में निवास करने लगेगी। इस परिप्रेक्ष्य में भारत ने अपने शहरों को ‘स्मार्ट’ बनाने के मिशन को आरंभ कर दिया है। इस संदर्भ में नगरीय ठोस अपशिष्ट (Municipal Solid Waste:MSW) प्रबंधन एक महत्वपूर्ण अवसंरचनात्मक सुविधा के रूप में कार्य करता है।

वर्तमान में MSW वैज्ञानिक रूप से प्रबंधित नहीं है। नगरपालिका द्वारा प्रतिवर्ष उत्पन्न 62 मिलियन टन ठोस अपशिष्ट में से मात्र 43 मिलियन टन संगृहित एवं उसमें से 11.9 मिलियन टन शोधित किया जाता है, जबकि 31 मिलियन टन अपशिष्ट लैंडफिल में फेंक दिया जाता है। यह अवैज्ञानिक और अस्वास्थ्यकर डंपिंग विभिन्न समस्याओं को उत्पन्न करती है:

  • लैंडफिल से हानिकारक पदार्थों अथवा निक्षालकों (leachate) के उत्पादन के कारण भू-जल संदूषित होता है, जो विभिन्न स्वास्थ्य संबंधी समस्याएं उत्पन्न करता है। निक्षालक एक प्रकार का तरल है। इसका निर्माण लैंडफिल में अपशिष्ट के टूटने और अपशिष्ट के माध्यम से जल के रिसाव से होता है। यह तरल अत्यधिक विषाक्त होता है और भूमि, भूजल तथा नदियों को प्रदूषित कर सकता है।
  • लैंडफिल, मीथेन एवं अन्य ग्रीनहाउस गैसें भी उत्पन्न करते हैं। ये गैसें ज्वलनशील होती हैं, जिससे आग लगने की आशंका भी होती है।
  • अशोधित अपशिष्ट की विशाल मात्रा के कारण भूमि की उपलब्धता की समस्या भी उत्पन्न होती है।
  • पूर्व दिल्ली में गाजीपुर लैंडफिल के ढह जाने और मुंबई में देवनार लैंडफिल पर बार-बार आग लगने जैसी दुर्घटनाओं से जनहानि में वृद्धि हुई है।

इस प्रकार, संधारणीयता के सिद्धांत के आधार पर अपशिष्ट प्रसंस्करण निम्नलिखित लाभ प्रदान करता है:

  • उद्गम स्थल पर ही अपशिष्ट का उचित पृथक्करण, आगामी चरणों जैसे पुनश्चक्रण और संसाधन की पुनःप्राप्ति को सरल बना देता है।
  • कम मात्रा में बचे (reduced) अंतिम अवशेषों को वैज्ञानिक रूप से सैनेटरी लैंडफिल में समाप्त (डिस्कार्ड) किया जा सकता
  • ‘अपशिष्ट से ऊर्जा’ प्रक्रम अपशिष्ट को नवीकरणीय ऊर्जा और जैविक खाद में परिवर्तित कर देता है तथा अपशिष्ट की मात्रा भी कम कर देता है।
  • संग्रहण, ढुलाई और शोधन आदि जैसे विभिन्न चरण रोजगार के अवसर भी प्रदान करते हैं।

अपशिष्ट प्रबंधन हेतु सरकार द्वारा विभिन्न नीतिगत उपाय, जैसे पर्यावरण संरक्षण अधिनियम 1986, ठोस अपशिष्ट प्रबंधन नियम 2016 आदि अपनाए गए हैं। परंतु निम्नलिखित कारणों से, ये वांछित परिणाम प्रदान करने में असफल रहे हैं:

  • निम्न पारिस्थितिकीय जागरूकता और अपशिष्ट प्रबंधन में नागरिक भागीदारी में कमी के साथ तीव्र शहरीकरण।
  • उपयुक्त प्रसंस्करण विधियों को डिजाइन करने हेतु, MSW के विशेषीकरण के संबंध में भारत-विशिष्ट अध्ययनों का अभाव।
  • लेखापरीक्षा और अन्य जवाबदेही तंत्रों की अनुपस्थिति सहित विभिन्न कारणों से शहरी स्थानीय निकायों (ULBs) द्वारा नियमों का अपर्याप्त कार्यान्वयन।
  • अपशिष्ट प्रबंधन बजट का अधिकांश भाग अपशिष्ट संग्रह और ढुलाई के लिए आवंटित किया जाता है जिसके परिणामस्वरूप प्रसंस्करण और निपटान के लिए बहुत कम भाग शेष बचता है।
  • स्थानीय निवासियों द्वारा नए भूमिभराव स्थलों(लैंडफिल साइट्स) की अधिसूचना के प्रतिरोध के कारण वर्तमान स्थलों का क्षमता से अधिक प्रयोग हो रहा है।
  • अपशिष्ट प्रबंधन योजना में अनौपचारिक क्षेत्रक यथा अपशिष्ट चुनने वालों (rag pickers) की भागीदारी का न होना।
  • अपशिष्ट-से-ऊर्जा प्राप्ति की परियोजनाओं की वित्तीय अव्यवहार्यता।

इस प्रकार, भारत को अपने संगठित क्षेत्र और असंगठित क्षेत्र को सम्मिलित व एकीकृत करने तथा अपने शहरी स्थानीय निकायों (ULBs) को सशक्त बनाने की आवश्यकता है। ऐसा करने से ही स्वच्छ भारत मिशन की सफलता सुनिश्चित हो सकेगी और ‘स्मार्ट’ शहरी भारत का सपना साकार हो सकेगा।

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