कानूनों की प्रभावशीलता में सुधार : विधि-निर्माण पश्चात् संवीक्षा की प्रक्रिया
प्रश्न: कानूनों की प्रभावशीलता में सुधार के लिए विधि-निर्माण पश्चात् संवीक्षा की प्रक्रिया को औपचारिक बनाने की आवश्यकता का मूल्यांकन कीजिए।
दृष्टिकोण
- संक्षेप में विधि-निर्माण पश्चात् संवीक्षा (PLS) को परिभाषित कीजिए।
- भारत में विधि-निर्माण पश्चात् संवीक्षा की प्रक्रिया को औपचारिक बनाने की आवश्यकता को रेखांकित कीजिए।
- स्पष्ट कीजिए कि PLS कानूनों को अधिक प्रभावी बनाने में कैसे सहायता कर सकता है। उचित निष्कर्ष दीजिए।
उत्तर
विधि-निर्माण पश्चात् संवीक्षा (PLS) यह सुनिश्चित करने हेतु कि निर्मित विधि अपने प्रयोजन के अनुरूप कार्यसंचालन में है यह नहीं, उस विधि के एक बार प्रभावी होने के पश्चात् उसकी निगरानी और मूल्यांकन करने का एक साधन है। ज्ञातव्य है कि ऐसी कोई केवल एक रीति नहीं है जिसके माध्यम से किसी विधान के लागू हो जाने के उपरांत उसकी संवीक्षा की जाती हो। वे विभिन्न तरीके जिनके द्वारा सरकार किसी विधि के संदर्भ में प्रतिपुष्टि (फीडबैक) प्राप्त करती है, विधि-निर्माण पश्चात् संवीक्षा के रूप में कार्य करते हैं। हालाँकि, किसी कानून के प्रति लोगों की प्रतिपुष्टि प्राप्त करने और उन्हें शामिल करने के लिए कोई विशिष्ट एवं समर्पित रीति मौजूद नहीं है।
भारत में PLS की प्रक्रिया को औपचारिक बनाने की आवश्यकता:
- केवल केंद्रीय स्तर पर ही भारत में 2500 से अधिक अधिनियम हैं, परन्तु इनका कार्यान्वयन रिकॉर्ड अत्यंत निम्नस्तरीय है। रूपरेखा संबंधी मुद्दों, क्षमता की कमी और भ्रष्टाचार के अतिरिक्त, विधि-निर्माण पश्चात् संवीक्षा या कानूनों की समीक्षा | विधानों में समापक खंड (सनसेट क्लाज) की पूर्ण अनुपस्थिति भी इनके खराब निष्पादन के प्रमुख कारणों में से एक है।
- अनेक कानून जिस मूल प्रयोजनार्थ निर्मित होते हैं, अंत में उसके बाधक के रूप में सिद्ध होते हैं। उदाहरण के लिए, मातृत्व लाभ अधिनियम महिलाओं को नौकरी पर रखने के लिए नियोक्ताओं को हतोत्साहित कर सकता है।
- कई बार कानूनों को उत्पीड़न के एक उपकरण के रूप में उपयोग किया जाता है। उदाहरण के लिए, उच्चतम न्यायालय ने यह उल्लेख किया है कि विभिन्न दृष्टान्तों में अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निवारण) अधिनियम और साथ ही दंड प्रक्रिया संहिता (CrPC) की महिला-विशिष्ट धाराओं का “ब्लैकमेल करने” और ‘प्रतिशोध लेने’ के लिए एक साधन के रूप में प्रयोग किया गया है।
- एक औपचारिक PLS के माध्यम से सरकार को उन कमियों का ज्ञान हो जाएगा तथा उनका समाधान हो सकेगा जिनका लोग कानून से बचने हेतु प्रयोग करते हैं (जैसे GST के मामले में)।
- कानून की सफलता और विफलता के बारे में जानने का एकमात्र तरीका विभिन्न माध्यमों से व्यक्त की जाने वाली सार्वजनिक धारणा है।
PLS कानूनों को अधिक प्रभावी बनाता है:
- यह निष्पक्ष रूप से यह आकलन करता है कि कोई कानून उद्देश्यों और प्रत्याशित प्रभावों में यथार्थ रूप में कितना लागू हो पाया है।
- यह किसी भी ऐसे अनपेक्षित प्रभाव की पहचान कर सकता है जो विधान से उत्पन्न हो सकता है। नियमित विधि-निर्माण पश्चात् मूल्यांकन, संशोधनों के माध्यम से कानूनों को अधिक प्रभावी बनाने में सहायता कर सकता है।
- विधि-निर्माण पश्चात् मूल्यांकन के अभाव के कारण नीति-निर्माताओं और नौकरशाहों के पास किसी कानून की प्रभावकारिता और प्रदर्शन के बारे में कोई व्यवस्थित साक्ष्य नहीं होता है। वर्तमान में कानून में संशोधन के पक्ष या विपक्ष में तर्क करने के लिए उपाख्यानों और साक्ष्यों का एक वृहद् भाग कॉर्पोरेट/गैर सरकारी संगठनों/अधिवक्ता समूहों जैसे गैर आधिकारिक स्रोतों द्वारा प्रदान किया जाता है। उदाहरण के लिए, मादक द्रव्यों के दुरुपयोग को कम करने में स्वापक औषधि और मन:प्रभावी पदार्थ (NDPS) अधिनियम की प्रभावशीलता के संदर्भ में सामाजिक न्याय और अधिकारिता मंत्रालय के पास कोई प्रामाणिक आंकड़ा उपलब्ध नहीं है।
- PLS सुशासन को तीव्रता प्रदान करने का एक सशक्त साधन है।
भारत इस संबंध में विभिन्न देशों के उदाहरणों का अनुसरण कर सकता है। 1990 के दशक में कई यूरोपीय देशों के साथ-साथ संयुक्त राज्य अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया और कनाडा ने विधि-निर्माण पश्चात् मूल्यांकन सहित बेहतर विनियमन नीतियां विकसित की हैं। यूनाइटेड किंगडम में कानूनों के प्रवर्तन के तीन से पांच वर्षों के भीतर उसकी समीक्षा की जाती है। जर्मनी में विधिनिर्माण पश्चात् संवीक्षा व्यवस्थित है और लोक प्रशासन के लिए दिशा-निर्देशों में निर्धारित मानकीकृत पद्धति पर आधारित है। ऑस्ट्रेलिया में अधिकांश कानूनों की दो वर्ष के भीतर संवीक्षा आवश्यक होती है और वे 10 वर्ष पश्चात् समाप्त हो जाते हैं। कनाडा में अधिकांश कानूनों में समीक्षा और समापन खंड (सनसेट क्लाज) का समावेश होता है।
इस संदर्भ में यह आवश्यक है कि किसी विधि हेतु बेंचमार्क, PLS की संभावना तथा PLS के कार्यान्वयन की संस्थागत प्रक्रिया का निर्धारण किया जाए। इसमें विभिन्न हितधारकों के साथ परामर्श के पश्चात् गठित एक विशेष निकाय को भी शामिल किया जा सकता है। इसके अतिरिक्त, कानूनों में भी आंतरिक रूप से एक PLS तंत्र अंतर्विष्ट किया जा सकता है।
जनसांख्यिकी, शहरी-ग्रामीण परिदृश्य (rural urban landscape), तकनीकी विकास और सामाजिक संरचना जैसे तेजी से विकसित हो रहे आयामों एवं युवाओं की बढ़ती आकांक्षाओं को पूर्ण करने के लिए भारत को पूर्व विधायी प्रतिपुष्टि और सर्वेक्षण के साथ-साथ विधि-निर्माण पश्चात् संवीक्षा, दोनों पक्षों पर कार्य करने की आवश्यकता है। उल्लेखनीय है कि यह मजबूत कानून और बेहतर प्रशासन देने के लिए आवश्यक है।
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