भारत में शहरी अपराधों में वृद्धि : शहरी अपराधों में वृद्धि के कारक

प्रश्न: शहरी अपराधों में बढ़ोत्तरी भारत में शहरीकरण की अनियोजित और तीव्र प्रकृति की विकटता का सूचक है। चर्चा कीजिए। साथ ही, भारत में शहरी अपराधों के मुद्दे से निपटने के लिए अपनाये जा सकने वाले उपायों को सूचीबद्ध कीजिए।

दृष्टिकोण

  • भारत में शहरीकरण की अनियोजित प्रकृति का परिचय दीजिए।
  • भारत में शहरी अपराधों में वृद्धि को विशेषतः कुछ तथ्यों और आंकड़ों के साथ स्पष्ट कीजिए।
  • शहरी अपराधों में वृद्धि के कारकों का उपयोग करते हुए, इसके शहरीकरण की तीव्र और अनियोजित प्रकृति के साथ सहसंबंधों की व्याख्या कीजिए।
  • भारत में शहरी अपराधों के मुद्दे से निपटने के लिए अपनाये जा सकने वाले उपायों का उल्लेख करते हुए समापन कीजिए।

उत्तर

शहरीकरण, शहरी क्षेत्रों में जनसंख्या और आर्थिक गतिविधियों का विस्तार है। यह सामान्यतः समाज के आधुनिकीकरण, औद्योगिकीकरण और तर्कसंगतता से संबद्ध है। 2011 की जनगणना के अनुसार, 31% भारतीय जनसंख्या शहरों में निवास करती है। संयुक्त राष्ट्र द्वारा प्रकाशित विश्वे जेनसंख्या रिपोर्ट का अनुमान है कि यह संख्या 2030 तक 40.7% तक पहुंच जाएगी।

  • अनियोजित शहरीकरण: अपराधों के प्रजनन स्थल – भारत में शहरीकरण तीव्र ही नहीं, बल्कि अनियोजित भी है। इससे संसाधन उपलब्धता में एक असंतुलन उत्पन्न होता है। यह असंतुलन बढ़ती जनसंख्या के लिए स्थान, आश्रय, भोजन और बुनियादी सुविधाओं के अभाव में स्पष्ट रूप से परिलक्षित होता है, जिससे प्रतिस्पर्धा, प्रतिद्वंद्विता, असुरक्षा और अपराधों को बढ़ावा मिलता है।राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (NCRB) के अनुसार, चयनित 19 महानगरीय शहरों की जनसंख्या 2 मिलियन से अधिक है, 2015 से 2016 तक IPC (भारतीय दंड संहिता) और SLL (विशेष एवं स्थानीय कानून) के अंतर्गत अपराध में वृद्धि क्रमशः 7.3% और 5.2% दर्ज की गई। इसमें हत्या, बलात्कार, अपहरण तथा डकैती जैसे जघन्य अपराध शामिल हैं।

अपराध देर में इस वृद्धि के कारण:

  • भारतीय शहरों में अपराधों में वृद्धि, तनावपूर्ण सामाजिक-आर्थिक और राजनीतिक परिस्थितियों के कारण हो सकती है।
  • अनियोजित शहरीकरण से मलिन बस्तियों के विस्तार में वृद्धि होती है। ये मलिन बस्तियाँ शेष शहरी समाज से सामाजिक रूप से विलगित होती हैं। यह सामाजिक अलगाव उन्हें नशीली दवाओं के दुरुपयोग, बर्बरता, शराब और अपराधों की तरफ अग्रसर करता है।
  • संकुलित स्थानों, निजता का अभाव और अत्यधिक भीड़-भाड़ का बच्चों के मानसिक विकास पर प्रभाव पड़ता है, क्योंकि वे बहुत कम उम्र में घरेलू अपराधों का सामना करते हैं।
  • मलिन बस्ती के निवासियों को बुनियादी सुविधाएं उपलब्ध नहीं होती हैं। इससे उनमें सापेक्षिक अभाव की भावना उत्पन्न होती है तथा अभाव की इस भावना से उनके अपराधों की ओर प्रवृत्त होने की तीव्र सम्भावना बनती है।
  • भारत में उच्च शहरी बेरोजगारी, अपराध की समस्या के मुख्य कारणों में से एक है।
  • संसाधन प्रतिस्पर्धा, क्षेत्रवाद की समस्या को जन्म देती है, जिससे सामाजिक संघर्ष में वृद्धि हो रही है।

समाधान हेतु उपाय :

ऐसे अपराधों को रोकने के लिए, इस समस्या के मूल कारणों का निम्नलिखित उपायों द्वारा समाधान करना आवश्यक है जैसे कि:

  • शहरी गरीबों को मुख्यधारा के साथ एकीकृत करने और बढ़ते अपराधों के जोखिम का सामना करने हेतु समावेशी शहरी नियोजन। शहरी बेरोजगारी दर और आय असमानता को कम करना।
  • अत्यधिक भीड़-भाड़ वाली मलिन बस्तियों आदि के विकास द्वारा सामाजिक-आर्थिक उत्थान और निवास-योग्य जीवन दशाओं का निर्माण।
  • गुणवत्तापूर्ण शिक्षा में निवेश और साक्षरता दर में सुधार करके बच्चों में विषम परिस्थितियों से निपटने हेतु आवश्यक क्षमता का निर्माण करना।
  • बेहतर पुलिस व्यवस्था और कानून प्रवर्तन के लिए एक पूरक सुसज्जित पुलिस बल के साथ मजबूत न्यायिक प्रणाली।
  • महिलाओं के विरुद्ध होने वाले जघन्य अपराधों के बारे में जागरूकता का विशेष रूप से प्रसार करना और उन्हें आत्मरक्षा के लिए प्रेरित करने वाली पहले आरम्भ करना।
  • ग्रामीण क्षेत्रों में तीव्र प्रवास और शहरी इलाकों का बोझ कम करने के लिए ग्रामीण क्षेत्रों में संतुलित ग्रामीण विकास और रोजगार के अवसरों के निर्माण पर विशेष प्रोत्साहन देना।

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