भूमि के विखंडन : किसानों के समक्ष विद्यमान चुनौतियां

प्रश्न: विगत तीन दशकों के दौरान जोतों के औसत आकार में निरंतर गिरावट की प्रवृत्ति देखी गई है। भूमि के विखंडन के कारण किसानों को किन चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है? इस संबंध में क्या किये जाने की आवश्यकता है?

दृष्टिकोण:

  • भू-जोतों के आकार में गिरावट और इसके वर्तमान परिदृश्य का संक्षिप्त विवरण दीजिए।
  • भूमि के विखंडन के कारण किसानों के समक्ष विद्यमान चुनौतियों का उल्लेख कीजिए।
  • विद्यमान चुनौतियों को हल करने के लिए कुछ सुझाव दीजिए।
  • सरकार द्वारा उठाए गए कुछ कदमों पर चर्चा करते हुए निष्कर्ष दीजिए।

उत्तर:

कृषि संगणना 2015-16 के अनुसार, परिचालन जोतों का औसत आकार वर्ष 2010-11 के 1.15 हेक्टेयर के आकार की तुलना में वर्ष 2015-16 में घटकर 1.08 हेक्टेयर हो गया है। वर्तमान में लघु और सीमांत जोतें (<2 हेक्टेयर) कुल भू-जोतों का 86 प्रतिशत, जबकि वृहत् जोतें (> 10 हेक्टेयर) केवल 0.57 प्रतिशत ही हैं।

उच्च जनसंख्या दबाव, संयुक्त परिवार व्यवस्था में गिरावट, बढ़ती ऋणग्रस्तता और अन्य उपयोगों के लिए कृषि भूमि का रुपांतरण, इस विखंडन हेतु उत्तरदायी कुछ प्रमुख कारण हैं।

भूमि के विखंडन के कारण किसानों के समक्ष विद्यमान चुनौतियां:

  • अल्प उत्पादकता: लघु और खंडित भू-जोतें निर्वाह कृषि के लिए उपयुक्त हैं, जिसमें किसान सदियों पुरानी श्रम-गहन तकनीकों का उपयोग करने हेतु बाध्य होते हैं। इससे भूमि की उत्पादकता घटती है और इसके प्रतिफल में उत्पादकता में वृद्धि के लिए निवेश में भी कमी आती है।
  • आधुनिकीकरण में कठिनाइयाँ: बेहतर कृषि पद्धतियों उदाहरणार्थ ट्रैक्टर, सूक्ष्म-सिंचाई तकनीकों आदि का उपयोग लघु भूजोतों के लिए अलाभकारी हो जाता है।
  • भूमि का व्यर्थ उपयोग: सीमाओं के निर्धारण और बाड़ लगाने में भूमि के व्यर्थ उपयोग में वृद्धि होती है।
  • ऋणग्रस्तता: आर्थिक सर्वेक्षण-2016-17 के अनुसार, ऋणग्रस्तता और भू-जोत के आकार के मध्य एक व्युत्क्रम संबंध विद्यमान है। बिहार और पश्चिम बंगाल में सीमांत भू-जोतों वाले 80% से अधिक परिवार ऋणग्रस्त हैं।
  • सीमाओं पर विवाद: लघु खंडित भूमि सीमा विवाद से संबंधित शिकायतों के प्रमुख कारणों में से एक है।

अतः इससे किसान उत्पादन जोखिम, जलवायु संबंधी जोखिम, मूल्य जोखिम, ऋण जोखिम, बाजार जोखिम और नीतिगत जोखिम सहित सभी प्रकार के कृषिगत जोखिमों से ग्रसित हो जाते हैं। इन मुद्दों के समाधान हेतु निम्नलिखित उपाय किए जा सकते हैं:

  • भू-जोतों का समेकन: भूमि के पट्टे को प्रोत्साहित कर (पट्टेदारों की भूधृति की सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए) और लघु भूमियों हेतु लैंड पूलिंग (भूमि संयोजन) को बढ़ावा देकर भू-जोतों को समेकित किया जा सकता है।
  • सामूहिक खेती को प्रोत्साहित करना: लघु किसानों को सहकारी खेती करने के लिए प्रोत्साहित किया जा सकता है, उदाहरणार्थ- किसान उत्पादक संगठन (FPO) जैसे संगठनों के गठन के माध्यम से।
  • खेतों की आर्थिक व्यवहार्यता: उच्च मूल्य वाली फसलों के माध्यम से मिश्रित खेती, सहकारी खेती और फसल विविधीकरण को बढ़ावा देकर लघु जोत वाले खेतों की आर्थिक व्यवहार्यता में सुधार किया जा सकता है।
  • खेतों का स्पष्ट सीमांकन: खेत की सीमाओं और स्वामित्व अधिकार पर अधिक स्पष्टता लाने के लिए भूमि रिकॉर्ड के डिजिटलीकरण एवं आधुनिकीकरण को बढ़ावा दिया जाना चाहिए।
  • खेती पर दबाव को कम करना: ग्रामीण प्रवासियों को आकर्षित करने, गैर-कृषि गतिविधियों को बढ़ावा देने आदि हेतु शहरी विकास के माध्यम से वैकल्पिक आर्थिक अवसर प्रदान करके भूमि-मानव के अनुपात में सुधार किया जा सकता है।

आदर्श अनुबंध कृषि अधिनियम, 2018, खाद्य प्रसंस्करण उद्योगों को बढ़ावा देने, कम लागत वाली कृषि तकनीकों को अपनाने जैसे कुछ कदमों के द्वारा भारत में लघु भू-जोतों के कारण होने वाली समस्याओं का समाधान किया जा रहा है।

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