भारतीय रेलवे की वित्तीय स्थिति का विवरण
प्रश्न: रेलवे में पूंजीगत व्यय के लिए उधारी पर निर्भरता कमजोर होती वित्तीय स्थिति को प्रतिबिंबित करती है। इस कथन पर टिप्पणी कीजिए और उन उपायों पर चर्चा कीजिए जिनसे इसमें बेहतर संसाधन सृजन और उपयोगिता प्राप्त की जा सकती है।
दृष्टिकोण
- भारतीय रेलवे की वित्तीय स्थिति का संक्षिप्त विवरण दीजिए।
- पूंजीगत व्यय के लिए ऋण पर निर्भरता तथा रेलवे की वित्तीय स्थिति को कमजोर करने के संदर्भ में इसके निहितार्थों पर टिप्पणी कीजिए।
- उन तरीकों की चर्चा कीजिए जिनके माध्यम से रेलवे बेहतर संसाधन उत्पादन एवं उपयोगिता को प्राप्त कर सकता है।
उत्तर
भारतीय रेलवे को इसके आंतरिक संसाधनों, केंद्र सरकार द्वारा प्रदत्त बजटीय सहायता और अतिरिक्त बजटीय संसाधनों (मुख्यतः ऋण द्वारा तथा इसके अतिरिक्त संस्थागत वित्त, PPP एवं FDI द्वारा सृजित) द्वारा वित्तपोषित किया जाता है। वेतन तथा पेंशन में वृद्धि पर व्यय के साथ, परिचालन अनुपात [कार्यशील व्यय (प्रतिदिन के परिचालनों द्वारा प्राप्त व्यय) का यातायात से अर्जित राजस्व से अनुपात) अपेक्षाकृत अधिक अर्थात विगत 10 वर्षों में औसतन लगभग 94% रहा है। इसका तात्पर्य यह है कि रेलवे द्वारा अर्जित 1 रूपये में से 94 पैसे व्यय कर दिए जाते हैं। उच्च व्यय, अधिशेष सृजन की अपेक्षाकृत निम्न क्षमता की ओर इंगित करता है। ध्यातव्य है कि अधिशेष का उपयोग पूंजी निवेश हेतु किया जा सकता है।
वित्तीय वर्ष 2017-18 के आंकड़ों के अनुसार पूंजीगत व्यय (रेल बोगियों की खरीद, स्टेशन पुनर्विकास आदि) को मुख्य रूप से अतिरिक्त बजटीय संसाधनों (58%) द्वारा वित्तपोषित किया गया। अतिरिक्त बजटीय संसाधनों में प्रमुख रूप से ऋण, इसके पश्चात केंद्र सरकार द्वारा बजटीय सहायता (33%) और रेलवे के अपने आंतरिक संसाधन (9%) शामिल हैं।
इसके अतिरिक्त माल ढुलाई एवं यात्री यातायात दोनों की वृद्धि में गिरावट के कारण विगत कुछ वर्षों में रेलवे के आंतरिक राजस्व में निरंतर गिरावट आई है, इस संदर्भ में विशेषज्ञों ने कहा है कि ऋण पर बढ़ती निर्भरता से रेलवे की वित्तीय स्थिति में गिरावट आएगी।
रेलवे की कमजोर वित्तीय स्थिति के कारण निम्नलिखित हैं:
- रेलवे के कुल माल यातायात में हिस्सेदारी 1950-51 के 89 प्रतिशत में घटकर 2011-12 में 30% रह गई है।
- माल समूह (फ्रेट बास्केट) कुछ ही थोक वस्तुओं तक सीमित है, और कोयले के परिवहन हेतु रेलवे पर अत्यधिक निर्भरता व्यवसाय के लिए खतरा उत्पन्न करती है।
- प्रथम श्रेणी के किरायों को न्यून लागत वाली एयरलाइंस तथा AC बस किरायों द्वारा प्रतिस्पर्धा का सामना करना पड़ता है। जबकि द्वितीय श्रेणी का यात्री यातायात, जो कुल यात्री राजस्व में 67% योगदान देता है, सड़क और हवाई यात्रा दोनों की तुलना में सस्ता है।
- केंद्रीकृत निर्णय-निर्माण के कारण, रेलवे जोन के पास अपने राजस्व में वृद्धि करने के संबंध में बहुत सीमित शक्तियाँ विद्यमान हैं।
- भारतीय रेलवे द्वारा विभिन्न गैर-लाभकारी गतिविधियों का प्रबंधन किया जाता है जैसे कि अपने कर्मचारियों के लिए स्कूल एवं अस्पतालों को संचालित करना, रेलवे पुलिस बल तथा रेलवे संपत्ति को प्रबंधित करना आदि।
अपर्याप्त वित्त के कारण होने वाले निम्नस्तरीय अवसंरचना विकास के कारण रेलवे वृहत क्षमता संबंधी अवरोधों, कम गति, सुरक्षा संबंधी मुद्दों तथा पटरियों पर उच्च रेल घनत्व का सामना करता है। क्षमता उपयोगिता के उच्च स्तरों के साथ तथा नई ट्रेनों को प्रारंभ करने से ट्रेनों की गति धीमी हो जाती है तथा इससे सेवाओं की गुणवत्ता प्रभावित होती है और इसके परिणामस्वरूप रेलवे अपने ही व्यवसाय में नुकसान करती है।
संसाधन के सृजन एवं उपयोग में सुधार करने के लिए आवश्यक उपाय निम्नलिखित हैं:
- डेडिकेटेड फ्रेट कॉरिडोर का तीव्र क्रियान्वयन करना, इससे माल ढुलाई संबंधी यातायात में वृद्धि की जा सकेगी तथा अतिरिक्त राजस्व की प्राप्ति में वृद्धि करने हेतु माल ढुलाई संबंधी व्यवसाय को गैर-भारी वस्तुओं की ओर स्थानांतरित किया जा सकेगा।
- रेल विकास प्राधिकरण को समय पर किराए के युक्तिकरण (रेशनलाइज़ेशन) पर ध्यान देना चाहिए, इस प्रकार सेवाओं के मूल्यों को लागत के अनुरूप किया जा सकेगा, इसके अतिरिक्त गैर-किराया राजस्व में वृद्धि करने के लिए विभिन्न साधनों का सुझाव दिया जाना चाहिए।
- संबंधित रेलवे जोनों को आवश्यक रूप से निर्णय-निर्माण की स्वायत्तता प्रदान की जानी चाहिए, ताकि वे स्वतंत्र रूप से राजस्व वृद्धि हेतु उपाय करने में सक्षम हो सकें।
- रेलवे को गैर-लाभकारी गतिविधियों पर व्यय करने से मुक्त कर दिया जाना चाहिए ताकि गैर-वाणिज्यिक गतिविधियों पर होने वाले व्यय में कटौती की जा सके।
- 100% विद्युत् चालित इंजनों की ओर स्थानांतरित होने से तेल की लागत में कटौती की जा सकेगी, जिससे रेलवे का भावी समय में आर्थिक रूप से सुदृढ़ीकरण हो सकेगा।
- रेलवे यातायात में भीड़-भाड़ में कटौती तथा यातायात की गति में वृद्धि करने हेतु रेलवे नेटवर्क में विस्तार करना। इससे यातायात की आवाजाही में वृद्धि सुनिश्चित होगी, परिणामतः राजस्व में वृद्धि होगी।
अतः रेलवे द्वारा गैर-वाणिज्यिक गतिविधियों को कम कर तथा अपनी व्यावसायिक गतिविधियों में सुधार कर इस राष्ट्रीय वाहक के पुनरुद्धार हेतु बहुपक्षीय पहलों को प्रारंभ करना समय की मांग है।
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