धर्मनिरपेक्षता की भारतीय अवधारणा

प्रश्न: क्या राज्य द्वारा सभी धर्मों के प्रति एक समान आदर और सार्वजनिक संस्थागत प्रक्रियाओं से धर्म के पृथक्करण संबंधी धर्मनिरपेक्षता की भारतीय अवधारणा एक धर्मनिरपेक्ष राज्य को सुनिश्चित करने हेतु पर्याप्त है? चर्चा कीजिए।

दृष्टिकोण

  • दिए गए कथन के अनुसार भारतीय धर्मनिरपेक्षता का संक्षिप्त वर्णन कीजिए।
  • उचित तर्कों के साथ चर्चा कीजिए की क्या यह एक धर्मनिरपेक्ष राज्य को सुनिश्चित करती है। चुनौतियों का वर्णन कीजिए।
  • सुझाव दीजिए, यदि कोई हो।

उत्तर

एक धर्मनिरपेक्ष राज्य होने के कारण भारत में किसी एक धर्म को वरीयता प्राप्त नहीं है तथा सभी धार्मिक समूहों को बिना किसी पक्षपात या भेदभाव के समान संवैधानिक संरक्षण प्राप्त है। पश्चिमी अवधारणा के विपरीत, भारत में धर्मनिरपेक्षता का अर्थ ‘धर्म से पृथक राज्य’ नहीं है। इसका अर्थ सभी मतों एवं धर्मों के लिए समान आदर है। इसे विस्तृत रूप में निम्न प्रकार से वर्णित किया जा सकता है:

  • भारतीय संविधान के अनुच्छेद 25 से 28 के तहत सभी को धर्म की स्वतंत्रता संबंधी अधिकार प्रदान किये गये हैं। हालांकि, राज्य को सामाजिक-आर्थिक विषयों को विनियमित करने की शक्ति प्राप्त है।
  • अनुच्छेद 14, 15, 16, 17, 44 और 51A, धर्मशासी राज्य की स्थापना को प्रतिबंधित करते हैं।
  • केशवानंद भारती वाद में उच्चतम न्यायालय (SC) द्वारा धर्मनिरपेक्षता को संविधान के मूल ढांचे के एक भाग के रूप में स्थापित किया गया। इसे बोम्मई वाद में पुनः दोहराया गया। इसके साथ ही, न्यायालय ने मंदिर, मस्जिद और पूजा के अन्य स्थलों के धर्मनिरपेक्ष मामलों को विनियमित करने के राज्य के अधिकार तथा पर्सनल लॉ का निर्माण करने और उन्हें तर्कसंगत बनाने की संसद की शक्ति को बरकरार रखा।
  • जन प्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951 की धारा 123 (3) के तहत धर्म के आधार पर राजनीतिक दलों के चुनाव लड़ने पर प्रतिबंध आरोपित किया गया है। यह प्रतिबन्ध सांप्रदायिक शक्तियों द्वारा मतदाताओं के ध्रुवीकरण करने की प्रक्रिया पर नियंत्रण स्थापित करता है।
  • इस्माइल फ़ारूक़ी बनाम भारत संघ वाद में, SC ने धर्मनिरपेक्षता को समानता के अधिकार के एक पक्ष के रूप में स्वीकार किया।

चुनौतियां

  • एक धर्मनिरपेक्ष संविधान के बावजूद विभिन्न धर्मों, मतों और मान्यताओं को मानने वाले वर्गों के मध्य परस्पर गलतफहमी और असहिष्णुता विद्यमान है। ‘घर वापसी’ आदि जैसी धार्मिक पुनरुत्थानवादी घटनाओं के कारण अल्पसंख्यक वर्ग में बहुसंख्यकवाद के प्रति भय उत्पन्न होता है।
  • सांप्रदायिक टकराव, घृणा और हिंसा की घटनाएं बहु-धार्मिक और बहु-सांस्कृतिक भारतीय समाज के लिए एक कलंक हैं।
  • धार्मिक संगठनों के लिए इस बात की गुंजाइश होना कि वे राज्य और राजनीतिक निर्णयन को प्रभावित कर सकते हैं।
  • धार्मिक विद्वेष उत्पन्न करने वाले भाषण, इतिहास का मिथ्याकरण और जनता के मध्य गलत सूचनाओं का प्रसार।

उपर्युक्त चुनौतियों के बावजूद, भारत में अपनायी गयी धर्मनिरपेक्षता लोकतांत्रिक राजनीति के कार्यान्वयन में प्रभावी सिद्ध हुई है। वर्तमान चुनौतियों का निराकरण मानवतावाद, तर्कसंगतता और सार्वभौमिक धर्म के सिद्धांतों के अनुपालन के माध्यम से किया जा सकता है, इन सिद्धांतों ने सदियों से भारतीय धर्मनिरपेक्षता को बौद्धिक आधार प्रदान किया है।

Read More 

Add a Comment

Your email address will not be published. Required fields are marked *


The reCAPTCHA verification period has expired. Please reload the page.