भारतीय वन अधिनियम, 1927 :भारत में वनों के अभिशासन (गवर्नेस) की आधारीय रूपरेखा
प्रश्न: व्याख्या कीजिये की किस प्रकार भारतीय वन अधिनियम, 1927 भारत में वनों के अभिशासन (गवर्नेस) की आधारीय रूपरेखा निर्मित करता है। अभिशासन के प्रति अधिकार आधारित दृष्टिकोण के प्रकाश में इसमें व्यापक संशोधन की आवश्यकता का परीक्षण कीजिए।
दृष्टिकोण
- उत्तर के प्रारंभ में इस अधिनियम की उत्पत्ति एवं दायरे का संक्षिप्त वर्णन कीजिए।
- उन कारणों का उल्लेख कीजिए किस प्रकार यह अधिनियम वनों के अभिशासन (गवर्नेस) की आधारीय रूपरेखा निर्मित करता है।
- वर्तमान कानून में विद्यमान खामियों की चर्चा कीजिए तथा अभिशासन के अधिकार-आधारित दृष्टिकोण के प्रकाश में इसमें संशोधन की आवश्यकता का परीक्षण कीजिए।
उत्तर
भारतीय वन अधिनियम, 1927 (IFA) को औपनिवेशिक काल के दौरान अधिनियमित किया गया था, जिसमें प्रख्यात डोमेन के सामान्य कानून सिद्धांत को अधिक महत्व दिया गया था। इस सिद्धांत का उपयोग वन भूमि पर राज्य के अधिकार के दायरे में विस्तार करने के लिए किया गया था, तथा निजी संपत्ति की अवधारणा ने इन भूमियों के विशिष्ट उपयोग एवं हस्तांतरणीयता(alienability) को बढ़ावा दिया।
यह अधिनियम वनों के अभिशासन (गवर्नेस) की आधारीय रूपरेखा निर्मित करता है:
- यह अधिनियम 1878 के भारतीय वन अधिनियम से व्युत्पन्न हुआ है, जिसे वनावरण, या महत्वपूर्ण वन्यजीवों वाले क्षेत्रों को समेकित एवं आरक्षित करने के लिए क्रियान्वित किया गया था, ताकि वनोपज के आवागमन एवं पारगमन को विनियमित किया जा सके, साथ ही लकड़ी एवं अन्य वन उत्पादों पर प्रभार प्रशुल्क प्राप्त किया जा सके।
- यह क्षेत्र को आरक्षित वन, संरक्षित वन या ग्राम वन के रूप में घोषित करने हेतु अपनाई जाने वाली प्रक्रिया को परिभाषित करता है।
- यह अधिनियम वन अपराध को परिभाषित करता है: ऐसे कृत्य जो एक आरक्षित वन के अंतर्गत निषिद्ध हैं, तथा अधिनियम के प्रावधानों का उल्लंघन करने पर दंड आरोपित किया जाएगा।
ऐतिहासिक संदर्भ जिसमें IFA के प्रावधान विकसित हुए, तथा जिस संदर्भ में इन्हें वर्तमान में क्रियान्वित करने की मांग की गई है, एक-दूसरे से बिल्कुल भिन्न हैं। कई रिपोर्टें जैसे- 2010 की एम.बी. शाह रिपोर्ट एवं 2015 की टी.एस.आर. सुब्रमण्यम रिपोर्ट ने अभिशासन (गवर्नेस) में अधिकार-आधारित दृष्टिकोण के प्रकाश में IFA में संशोधन की आवश्यकता पर चर्चा की है।
अधिकार-आधारित दृष्टिकोण से IFA के व्यापक संशोधन की आवश्यकता का वर्णन निम्नलिखित है:
- वन अथवा उसके अभिशासन से संबंधित किसी भी भारतीय कानून में वन की परिभाषा का उल्लेख नहीं किया गया है। वर्ष 1996 के उच्चतम न्यायालय द्वारा दिए गए निर्णय के अनुसार, वन शब्द की शब्दकोष परिभाषा को वैधानिक परिभाषा माना जा सकता है।
- ‘वन’ की वैधानिक परिभाषा के कारण वनों के संरक्षण के साथ-साथ अनुसूचित जनजातियों और अन्य परंपरागत वन निवासी (वन अधिकारों की मान्यता) अधिनियम, 2006 के कार्यान्वयन पर वृहत जटिलताएं उत्पन्न हो सकती हैं।
- इस अधिनियम का प्रमुख उद्देश्य वस्तुनिष्ठ उपयोग हेतु वन को आरक्षित करने पर अधिक ध्यान केंद्रित करना है, उल्लेखनीय है कि यह वन संरक्षण पर न्यूनतम ध्यान केंद्रित करता है। अभी तक, इस संदर्भ में किसी भी सहभागी सामुदायिक वन विकास संबंधी प्रक्रिया को कठोर IFA की सीमा के बाहर किया जा रहा है।
- IFA के प्रावधानों, जैसे कि कानून का उल्लंघन करने हेतु तय की गई जुर्माने की राशि को उस समय के अनुसार निर्धारित किया गया था, अतः यह वर्तमान समय में बहुत कम है।
- वर्ष 1927 से वन अभिशासन से संबंधित कई कानूनों को क्रियान्वित किया गया था; अतः इन कानूनों तथा IFA के संबंध में मौजूदा संघर्षों का समाधान करने की आवश्यकता है।
- जलवायु परिवर्तन संबंधी चिंताओं के संबंध में, कार्बन प्रच्छादन, पारिस्थितिक सेवाओं आदि से संबंधित प्रावधानों को शामिल करने की आवश्यकता है।
वर्तमान में जैव विविधता संरक्षण के दृष्टिकोण में परिवर्तन करने हेतु ‘संरक्षण’ और ‘कानून’ के मध्य एक स्पष्ट अंतर मौजूद है; अतः IFA में संशोधन करना समय की मांग बन चुकी है।
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