भारत में पत्तन-आधारित विकास के समक्ष विद्यमान अवरोध

प्रश्न: जहाँ भारत में पत्तन-आधारित विकास के कई लाभ हैं, वहीं इसके मार्ग में कई अवरोध भी हैं। चर्चा कीजिए।

दृष्टिकोण:

  • पत्तन-आधारित विकास की संकल्पना और इस संदर्भ में भारत के लिए इसकी संभावनाओं पर चर्चा कीजिए।
  • भारत में पत्तन-आधारित विकास के लाभों को सूचीबद्ध कीजिए।
  • भारत में पत्तन-आधारित विकास के समक्ष विद्यमान अवरोधों को सूचीबद्ध कीजिए।
  • आगे की राह सुझाते हुए निष्कर्ष प्रस्तुत कीजिए।

उत्तर:

पत्तन-आधारित विकास किसी क्षेत्र के विकास के साथ ही अंततः राष्ट्र का ऐसा आर्थिक विकास होता है, जो मुख्यतः पत्तनों और इसकी अवसंरचना पर आधारित होता है। भारत में 7,500 किलोमीटर लंबी समुद्र तट रेखा तथा 14,500 किलोमीटर लंबा संभावित नौगम्य जलमार्ग विद्यमान है। भारत की 42 प्रतिशत जनसंख्या तटीय क्षेत्रों में निवास करती है। इसके अतिरिक्त, प्रमुख अंतरराष्ट्रीय समुद्री व्यापार मार्गों पर भारत की रणनीतिक अवस्थिति पत्तन-आधारित विकास के लिए विश्वसनीय क्षमता प्रदान करती है।

भारत में पत्तन-आधारित विकास के निम्नलिखित लाभ हैं:

  • भारत में निर्यात-आयात की कुल मात्रा के 90 प्रतिशत भाग का संचालन पत्तनों द्वारा किया जाता है, किन्तु सकल घरेलू उत्पाद (GDP) में रेलवे के 9% और सड़क क्षेत्र के 6% योगदान की तुलना में इनका योगदान मात्र 1% है। अतः इसमें वृद्धि की व्यापक संभावनाएं विद्यमान हैं। पत्तन-आधारित विकास से लॉजिस्टिक्स लागत में कमी आएगी और इस प्रकार भारतीय वस्तुओं की निर्यात प्रतिस्पर्धात्मकता में वृद्धि होगी।
  • सागरमाला (SAGARMALA) परियोजना के तहत प्रतिवर्ष 40,000 करोड़ रुपए तक की लॉजिस्टिक्स लागत की बचत होने, व्यापारिक निर्यात को प्रोत्साहन मिलने तथा 1 करोड़ रोजगारों के अवसर सृजित होने का अनुमान है।
  • समुद्र तटीय क्षेत्र और आतंरिक क्षेत्रों (हिंटरलैंड) के मध्य वस्तुओं के आवागमन की सुविधा प्रदान कर यह आर्थिक विकास को प्रोत्साहन प्रदान करेगा, जिससे देश के भीतर और विश्व के अन्य देशों के साथ आर्थिक एकीकरण को बढ़ावा प्राप्त होगा।
  • यह सड़कों, रेलवे और जलमार्गों जैसी अवसंरचनाओं में सुधार में सहायक होने के साथ-साथ लास्ट माइल कनेक्टिविटी को सुनिश्चित करेगा। कोल्ड चेन और वेयर हाउस, तटीय आर्थिक क्षेत्रों (Coastal Economic Zones: CEZs), ड्राई पोर्टों आदि के रूप में अन्य अवसंरचनात्मक विकास गतिविधियों को गति प्राप्त होगी।
  • पत्तन-आधारित विकास के एकीकरण के साथ स्मार्ट शहरों/एकीकृत कस्बों में घरेलू और अंतरराष्ट्रीय, दोनों स्तरों पर पर्यटन में उल्लेखनीय वृद्धि होने की संभावना है।

यद्यपि भारत में पत्तन-आधारित विकास के कई लाभ हैं, किंतु निम्नलिखित अनेक अवरोधों के कारण यह अभी भी पिछड़ा हुआ है:

  • वैश्विक स्तर के अनुरूप नहीं होने के कारण भारत की घरेलू अवसंरचना विशाल अवरोध उत्पन्न करती है, साथ ही यह हिंटरलैण्ड कनेक्टिविटी को भी बाधित करती है। इससे सामग्री और संसाधनों का सुगमता से संग्रहण बाधित होता है।
  • समयबद्ध तरीके से निवेश प्राप्ति तथा पर्याप्त बजटीय सहायता का आवंटन और उपलब्धता एक मुद्दा बना हुआ है।
  • पर्यावरणीय स्वीकृति, भूमि अधिग्रहण और पत्तन विकास से प्रभावित जनसंख्या के उचित पुनर्वास से संबंधित मुद्दे विद्यमान हैं।
  • जलमार्गों के विकास की मंद गति के आलोक में, मल्टी-मोडल कनेक्टिविटी सुनिश्चित करना भी एक समस्या बना हुआ है।
  • वैश्विक प्रतिस्पर्धा के संदर्भ में भारतीय जहाजरानी उद्योग के समक्ष विद्यमान चुनौतियां भी प्रमुख अवरोध हैं।
  • इसके अतिरिक्त, पर्याप्त और कुशल मानव संसाधनों की उपलब्धता का अभाव भी एक मुख्य मुद्दा है।

दक्षिण-पूर्वी एशियाई देश और चीन उन देशों में से हैं जहां पत्तन-आधारित विकास के सफल मॉडल विद्यमान हैं। भारत के लिए पत्तन-आधारित विकास को प्राप्त करने हेतु निवेश को आकर्षित करने के लिए सार्वजनिक निजी भागीदारी (PPP) मॉडल का पुनरावलोकन करने की आवश्यकता है। साथ ही पर्यावरणीय स्वीकृति और भूमि अधिग्रहण के मानकीकरण, टैरिफ मानदंडों के युक्तिकरण तथा शासन एवं नीति निर्माण में पारदर्शिता की भी आवश्यकता है।

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