भारत में विनियामक संरचना का संक्षिप्त परिचय

प्रश्न: दोषपूर्ण विनियामक नीतियों का बाजार की शक्तियों की कुशल अंतक्रिया पर गंभीर विपरीत प्रभाव पड़ सकता है और सार्वजनिक हित को नुकसान हो सकता है। भारत में विनियामकीय परिवेश से संबंधित प्रणालीगत मुद्दों के संदर्भ में परीक्षण कीजिए।

दृष्टिकोण

  • भारत में विनियामक संरचना का संक्षिप्त परिचय दीजिए।
  • भारत में विनियामक वातावरण के प्रणालीगत मुद्दे बताइए।
  • तत्पश्चात् कुछ ऐसे उदाहरण दीजिए जब दोषपूर्ण विनियामक नीतियों का बाजार की शक्तियों और इस प्रकार सार्वजनिक हित पर गंभीर विपरीत प्रभाव पड़ा हो।
  • उत्तर को संक्षिप्त निष्कर्ष के साथ समाप्त कीजिए।

उत्तर

विनियामक कार्य सरकार का एक महत्वपूर्ण कार्य है। उदारीकरण, भूमंडलीकरण और राज्य के बढ़ते हुए अहस्तक्षेप की स्थिति में वृहत्तर सार्वजनिक हित सुनिश्चित करने के लिए पर्याप्त विनियमन करना और भी महत्वपूर्ण हो जाता है। इस प्रकार प्रक्रम, प्रक्रियाओं और समग्र क्षेत्र या बाजार की दक्षता बढ़ाने के उद्देश्य से विनियामक ढांचा तैयार किया जाता है। हालांकि, कई बार विनियमन अनजाने में प्रतिस्पर्धा पर प्रतिबंध (उदाहरण के लिए रेलवे और कोल इंडिया) के साथ-साथ बाजार में अक्षमता (उदाहरण के लिए, भ्रष्ट व्यवहार) लाता है। भारतीय विनियामक वातावरण में निम्नलिखित बिंदुओं में यथा चर्चित कुछ प्रणालीगत मुद्दे हैं:

  • साझा विनियामक दर्शन की अनुपस्थिति ने राजनीतिक बाधाओं और मंत्रिस्तरीय वरीयताओं के लिए विनियामक संस्थानों के साथ ही सुधार एजेंडे के विकास पर हावी होना सरल बनाया है।
  • विनियामक प्राधिकरणों के लिए स्वायत्तता का अभाव – विनियामकीय निकायों की स्वतंत्रता के संरक्षण के साथ ही जवाबदेही बनाए रखना कठिन कार्य है।
  • परस्परव्यापी प्रकार्य – सांविधिक विधियों में स्पष्टता की कमी के कारण SEBI, TRAI और भारतीय प्रतिस्पर्धा आयोग आदि जैसी विभिन्न एजेंसियों के मध्य संघर्ष का मार्ग प्रशस्त होता है।
  • अति-विनियमन की समस्या – उदाहरण के लिए – भारत में व्यापार आरंभ करने के लिए की जाने वाली प्रक्रियाओं की संख्या 12 है, जबकि OECD देशों में यह संख्या 5 है। बड़ी संख्या में विनियम और खराब क्षमता निर्माण प्रवर्तन में लापरवाही को प्रेरित करते हैं।
  • विनियामक प्रभाव आकलन का अभाव – विनियामक नीतियों की प्रभावकारिता के लिए स्वतंत्र तृतीय पक्ष मूल्यांकन का अभाव है।
  • अप्रचलित विनियम जो संविधि की पुस्तक में बने हुए हैं।

अन्य मुद्दे: निवेश की शर्ते, FDI की सीमाएं, अधिग्रहणों पर प्रतिबंध, मूल्य निर्धारण नियंत्रण, श्रम कानून आदि। विनियामक वातावरण में इन मुद्दों के साथ-साथ विनियामक नीतियों में दोष का बाजार की शक्तियों की कुशल अंतर्किया पर गंभीर विपरीत प्रभाव पड़ता है और सार्वजनिक हित को नुकसान पहुंचता है। निम्नलिखित उदाहरणों से यह देखा जा सकता है:

  • सत्यम घोटाला – यह घोटाला बाजार के साथ ही सभी शेयरधारकों के लिए एक बड़ा आघात था, जिसने कार्पोरेट्स के बीच बेहतर विनियमने की आवश्यकता पर प्रकाश डाला।
  • शहरी भूमि हदबंदी और विनियमन अधिनियम 1976 – आवास परियोजना के लिए भूमि मुक्त करने के उद्देश्य से बनाया गया यह अधिनियम निरस्त करना पड़ा था, क्योंकि यह पाया गया कि सार्वजनिक हित के आधार पर छूटों का लक्षित स्वामियों द्वारा सरकार को अपनी भूमि बेचने से रोकने के लिए उपयोग किया गया।
  • राजकोषीय घाटा – उदाहरण के लिए, PPP के लिए प्रभावी विनियामक नीतियों की कमी के चलते अपारदर्शी तरीके से प्रयोक्ता प्रभार तय किया गया, जैसा कि CAG के प्रतिवेदन में इंगित किया गया।
  • ठोस सार्वजनिक अधिप्राप्ति प्रणाली का अभाव – इससे PDS प्रणाली में भारी रिसाव और घटिया दवाओं आदि की खरीद का मार्ग प्रशस्त हुआ है, जिससे सार्वजनिक हित को नुकसान पहुंचा।

हालांकि, ‘इष्टतम विनियमन’ प्राप्त करना एक चुनौतीपूर्ण कार्य है क्योंकि इसके लिए व्यक्ति की स्वतंत्रता और समाज के हित के बीच संतुलन प्राप्त करना होगा। इस प्रकार, कुछ बाजार समर्थक प्रतिस्पर्धात्मक सुधार किए जाने चाहिए जिनमें न्यूनतम प्रतिबंधक विनियम; पारंपरिक सार्वजनिक एकाधिकार वाले क्षेत्र खोलना; नीति निर्माण, विनियमन और परिचालन को अलग करना; सरकारी स्वामित्व वाले और निजी स्वामित्व वाले उद्यमों के बीच प्रतियोगिता तटस्थता और अंतरराज्यीय प्रतियोगिता पर प्रतिबंध समाप्त करना सम्मिलित हैं।

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