भारत में विद्युत : कोयला आधारित विद्युत उत्पादन
प्रश्न: नवीकरणीय संसाधनों के बढ़ते महत्व के बावजूद, कोयला आधारित विद्युत उत्पादन के योगदान में अगले कुछ दशकों में मूलतः कमी होने की उम्मीद नहीं है। भारत में विद्युत की बढ़ती मांग के आलोक में इस कथन पर टिप्पणी कीजिए।
दृष्टिकोण
- नवीकरणीय संसाधनों के बढ़ते महत्व को संक्षिप्त रूप में स्पष्ट कीजिए।
- चर्चा कीजिए कि भारत के संदर्भ में कोयले से ऊर्जा उत्पादन के निकट भविष्य में कम होने की संभावना क्यों नहीं है।
उत्तर
आगामी दो दशकों के लिए भारत के ऊर्जा उपभोग के प्रति वर्ष 4.2 प्रतिशत की दर से बढ़ने की अपेक्षा है, जिससे भारत वर्ष 2030 से पूर्व चीन से आगे निकलते हुए विश्व का सबसे बड़ा ऊर्जा विकास बाजार बन जाएगा। भारत का लक्ष्य वर्ष 2022 तक नवीकरणीय ऊर्जा की स्थापित क्षमता 175 GW करना है तथा वर्ष 2014 से इस क्षेत्र में 42 बिलियन अमेरिकी डॉलर से अधिक का निवेश किया गया है। वर्तमान में, नवीकरणीय ऊर्जा कुल विद्युत् उत्पादन क्षमता के लगभग 12% के लिए उत्तरदायी है और देश में उत्पादित विद्युत् के लगभग 6% भाग का योगदान करता है।
नवीकरणीय ऊर्जा में वृद्धि की अपेक्षा के बावजूद, कोयले से विद्युत् उत्पादन में अगले कुछ दशकों में कमी होने की संभावना नहीं है। इसके कारणों में निम्नलिखित शामिल हैं:
- कोयला आधारित विद्युत् संयंत्रों पर अधिक निर्भरता और आकस्मिक बदलाव से कठिनाई: भारत के विद्युत् क्षेत्रक में कोयला आधारित विद्युत उत्पादन का प्रभुत्व है, वर्ष 2017-18 में कुल विद्युत् उत्पादन के लगभग तीन-चौथाई भाग कोयला द्वारा उत्पादित किया गया। भारत में अभी भी 50,025 मेगावाट क्षमता के कोयला आधारित विद्युत् संयंत्र निर्माणाधीन हैं तथा नवीकरणीय ऊर्जा अवसंरचना में स्थानांतरण होने में अभी कुछ समय लग सकता है।
- स्वदेशी कोयले की आपूर्ति में प्रचुरता: वर्तमान में भारत विश्व में कोयला उत्पादक देशों में तीसरे स्थान पर है तथा देश में लगभग 75% कोयले का उपभोग अकेले विद्युत् क्षेत्र में किया जाता है।
- नवीकरणीय ऊर्जा से संबंधित प्रतिष्ठान जोखिम: उच्च निर्माण लागतों के कारण वित्तीय संस्थानों को नवीकरणीय ऊर्जा से संबंधित प्रतिष्ठान जोखिम के रूप में प्रतीत होते है, जैसे कि उच्च दरों पर धन उधार लेना तथा यूटिलिटी या डेवलपर्स के लिए परियोजना में निवेश का औचित्य साबित करने में कठिनाई हो सकती है।
- वित्तीय निवेश: भारतीय वित्तपोषकों ने कोयला आधारित विद्युत परियोजनाओं को समर्थन दिया है। सेंटर फॉर फाइनेंशियल अकाउंटेबिलिटी द्वारा 72 नवीकरणीय और तापीय विद्युत परियोजनाओं पर किए गए एक अध्ययन के अनुसार, वर्ष 2017 में 73% वित्त पोषण कोयला आधारित संयंत्रों में किया गया।
- विद्युत् की मांग में वृद्धि: भारत की जनसंख्या में तीव्र वृद्धि और देश में 100% विद्युतीकरण करने के सरकार के वादे के साथ, कंपनियां भावी कोयला आधारित थर्मल संयंत्रों के निरंतर वृद्धि के लिए निवेश कर रही हैं।
- नियमों का अप्रभावी कार्यान्वयन: वर्ष 2015 में, कोयले का उपयोग करने वाले तापीय विद्युत सयंत्रों के लिए पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय (MoEF&CC ) ने कठोर मानकों को अधिसूचित किया, जिन्हें दिसंबर 2017 तक अपनाया जाना था। हालांकि, अधिकांश मौजूदा तापीय विद्युत सयंत्र मानकों को पूरा नहीं करते हैं और अब उन्हें अतिरिक्त समय दिया गया है, उनमें से कुछ को वर्ष 2022 तक का समय विस्तार दिया गया है।
- लागत लाभ: कोयले से उत्पादित विद्युत् समग्र लागतों की तुलना में अत्यधिक ऊर्जा उत्पादन में योगदान करती है, इस प्रकार इसने उपभोक्ताओं के लिए विद्युत् की दरों को वहनीय बनाए रखा है जब भारत द्वारा विद्युत् के अधिक महंगे स्रोतों को अपनाया जा रहा है।
- हालांकि, कोयला संयंत्रों से तापीय ऊर्जा का उत्पादन निरंतर बना रहेगा, किन्तु भविष्य में देश में अधिक अतिरिक्त क्षमता नवीकरणीय स्रोतों से प्राप्त होगी। अतः सरकार को नवीकरणीय स्रोतों से विद्युत् उत्पादन को प्राथमिकता प्रदान की जानी चाहिए जिससे कि देश को एक संधारणीय ऊर्जा प्रणाली में स्थानांतरित किया जा सके।
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