वनावरण के संदर्भ में एक संक्षिप्त विवरण

प्रश्न: भारत में विभिन्न प्रकार के वनों के स्थानिक वितरण का विवरण प्रस्तुत करते हुए, इनमें से प्रत्येक की आर्थिक उपयोगिता की चर्चा कीजिए।

दृष्टिकोण

  • वनावरण के संदर्भ में एक संक्षिप्त विवरण दीजिए।
  • आर्थिक उपयोग और उदाहरणों के साथ स्थानिक वितरण की चर्चा कीजिए।

उत्तर

भारत में कुल वनावरण देश के कुल क्षेत्रफल का 21.54% है। भारत में कृषि के पश्चात् वन दूसरा सबसे बड़ा भूमि उपयोग क्षेत्र  वन, कृषि वानिकी, सामाजिक वानिकी, फार्म वानिकी, वन उत्पाद, औषधि, जैव-विविधता, कार्बन सिंक और स्वच्छ वायु प्रदान करते हैं। इनके माध्यम से वन आजीविका के महत्वपूर्ण स्रोतों के रूप में कार्य करते हुए भारत की जीव-जंतु एवं वनस्पति संपदा को समृद्धशाली बनाते हैं।

स्थानिक वितरण एवं आर्थिक उपयोग के आधार पर वनों के प्रकार:

उष्णकटिबंधीय सदाबहार और अर्द्ध सदाबहार वन 

  • ये वन पश्चिमी घाट के पश्चिमी ढाल, पूर्वोत्तर क्षेत्र की पहाड़ियों और अंडमान एवं निकोबार द्वीप समूह में पाए जाते हैं।
  • उष्णकटिबंधीय सदाबहार वन पूर्ण रूप से स्तरीकृत होते हैं जिनमें भूमि की सतह के निकट झाडियां और लताएं होती हैं, इसके ऊपर छोटे आकार (ऊँचाई) वाले वृक्ष और सबसे ऊपर लंबे आकार वाले वृक्ष होते हैं।
  • उदाहरण: रोजवुड, महोगनी, ऐनी, आबनूस, रबर, बाँस इत्यादि।

आर्थिक उपयोग: उत्तम गुणवत्तायुक्त, कठोर और टिकाऊ लकड़ियों का उपयोग रेलवे एवं निर्माण कार्य, रबर एवं संबंधित उद्योग आदि में किया जाता है।

उष्णकटिबंधीय पर्णपाती वन/मानसूनी वन

  •  ये भारत के सबसे विस्तृत क्षेत्र में फैले वन हैं। इन्हें मानसूनी वन भी कहा जाता है। ये वन उन क्षेत्रों में विस्तृत हैं, जहां 70-200 सेमी तक वर्षा होती है। जल की उपलब्धता के आधार पर इन वनों को आर्द्र और शुष्क पर्णपाती वनों में विभाजित किया जाता है।
  • आर्द्र पर्णपाती वनों का विस्तार ऐसे क्षेत्रों में अधिक हुआ है जहाँ 100-200 सेमी तक वर्षा होती है। ये वन पूर्वोत्तर राज्यों में हिमालय के गिरिपाद, पश्चिमी घाट के पूर्वी ढालों और ओडिशा में पाए जाते हैं। यहाँ पाए जाने वाले वृक्ष सागौन (टीक), साल, शीशम, हुर्रा, महुआ, आंवला, सेमल, कुसुम और चंदन आदि हैं।
  • शुष्क पर्णपाती वन देश के उन भागों में विस्तृत हैं जहां वर्षा 70 -100 सेमी के मध्य होती है। ये प्रायद्वीपीय पठार के अधिक वर्षा वाले भागों और उत्तर प्रदेश तथा बिहार के मैदानी भागों में पाए जाते हैं। यहाँ पाए जाने वाले वृक्षों के उदाहरण: तेंदु, पलास, अमलतास, बेल, खैर, अक्सलवुड आदि।

आर्थिक उपयोग: इमारती लकड़ी का स्रोत, मनोविनोद और वन्यजीव संरक्षण, कृषि-वानिकी, औषधि, बीड़ी उद्योग आदि।

उष्णकटिबंधीय कंटीले वन:

  • उष्णकटिबंधीय कंटीले वन उन भागों में पाए जाते हैं जहां 50 सेमी से भी कम वर्षा होती है। ये वन दक्षिण-पश्चिम पंजाब, हरियाणा, राजस्थान, गुजरात, मध्य प्रदेश और उत्तर प्रदेश के अर्द्ध शुष्क क्षेत्रों में पाए जाते हैं।

आर्थिक उपयोग: बबूल, बेर और जंगली खजूर के वृक्षों, खैर, नीम, खेजरी, पलास, गुच्छ घास, आदि का उपयोग अधिकांशतः कृषि-वानिकी, औषधि, फल व हस्तशिल्प के लिए तथा निर्धन एवं आदिवासी जनसंख्या की आजीविका के अन्य स्रोतों के रूप में किया जाता है।

पर्वतीय वन: 

  • पर्वतीय वनों को दो प्रकारों अर्थात् उत्तरी पर्वतीय वन और दक्षिणी पर्वतीय वन में वर्गीकृत किया जा सकता है।
  • हिमालय पर्वत श्रृंखला में उष्णकटिबंधीय से लेकर टुंड्रा प्रकार तक की वनस्पतियां पायी जाती हैं, जो ऊंचाई के साथ परिवर्तित होती रहती हैं।
  • हिमालय के गिरिपाद पर पर्णपाती वन पाए जाते हैं। इसके पश्चात 1,000-2,000 मीटर की ऊंचाई पर आर्द्र शीतोष्ण कटिबंधीय वन पाए जाते हैं। पूर्वोत्तर भारत की उच्च पर्वतीय श्रृंखलाओं और पश्चिम बंगाल एवं उत्तराखंड के पर्वतीय क्षेत्रों में ओक और चेस्टनट जैसे सदाबहार चौड़ी पत्ती वाले वृक्ष बहुतायत में पाए जाते हैं।
  • दक्षिणी पर्वतीय वनों में प्रायद्वीपीय भारत के तीन अलग-अलग क्षेत्रों में पाए जाने वाले वन शामिल हैं: पश्चिमी घाट, विंध्य और नीलगिरी। चूंकि ये श्रृंखलाएं उष्णकटिबंधीय क्षेत्र के समीप अवस्थित हैं और इनकी समुद्र तल से ऊँचाई लगभग 1,500 मीटर ही है, इसलिए यहां ऊँचाई वाले क्षेत्रों में शीतोष्ण कटिबंधीय और पश्चिमी घाट के निचले भागों, विशेष रूप से केरल, तमिलनाडु और कर्नाटक में उपोष्ण कटिबंधीय वनस्पति पाई जाती है। नीलगिरी, अनामलाई और पालनी पहाड़ियों में शीतोष्ण वन/शोला वन पाए जाते हैं। ये वन सतपुड़ा और मैकाल पर्वत श्रेणियों में भी पाए जाते हैं।

आर्थिक उपयोग: देवदार का उपयोग निर्माण गतिविधियों में किया जाता है। चिनार और अखरोट के वृक्षों ने कश्मीरी हस्तशिल्प को आधार प्रदान किया है। इस क्षेत्र के घास के मैदान गुज्जर, बकरवाल, भोटिया और गद्दी जैसे जनजातियों को आजीविका के महत्वपूर्ण स्रोत प्रदान करते हैं।

वेलांचली और अनूप वन: इन्हें आर्द्रभूमि वन भी कहा जाता है, ये निम्नलिखित क्षेत्रों में पाए जाते हैं:

  • दक्षिण में दक्कन पठार के जलाशय और दक्षिणी-पश्चिमी तटीय क्षेत्र के लैगून और अन्य आर्द्रभूमियाँ;
  • राजस्थान, गुजरात और कच्छ की खाड़ी का लवणीय मैदान;
  • गुजरात – राजस्थान (केवलादेव राष्ट्रीय उद्यान) और मध्य प्रदेश की स्वच्छ जल की झीलें एवं जलाशय;
  • भारत के पूर्वी तट पर डेल्टाई आर्द्रभूमियां और लैगून (जैसे चिल्का झील);
  • गंगा के मैदान में स्वच्छ जल के दलदली क्षेत्र;
  • ब्रह्मपुत्र नदी घाटी में बाढ़ का मैदान, पूर्वोत्तर भारत और हिमालय गिरिपाद के दलदली और अनूप क्षेत्र;
  • कश्मीर और लद्दाख के पर्वतीय क्षेत्र की झीलें और नदियां;
  • अंडमान और निकोबार द्वीप समूह के द्वीपीय चापों के मैंग्रोव वन और अन्य आर्द्रभूमियां

आर्थिक उपयोग: मैंग्रोव और आर्द्रभूमियाँ जैव-विविधता, वन्यजीव प्रजातियों और पर्यटन के महत्वपूर्ण स्रोत हैं।

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