भारत में शहरी शासन को दुष्प्रभावित करने वाली चुनौतियाँ और प्रस्तावित रणनीतियाँ

प्रश्न: सफल और चिरस्थायी शहरी रूपांतरण मुख्यतया, हमारे शहरों को शासित करने के तरीके में सुधार पर निर्भर करता है। इस संदर्भ में, भारत में शहरी शासन को दुष्प्रभावित करने वाली चुनौतियों पर प्रकाश डालिए और इन चुनौतियों को दूर करने के लिए कुछ रणनीतियों का सुझाव दीजिए।(250 words)

दृष्टिकोण

  • शहरी शासन के महत्व को रेखांकित करते हुए भारत में नगरीकरण की वर्तमान स्थिति का संक्षिप्त वर्णन कीजिए।
  • भारत में शहरी शासन से संबद्ध प्रमुख चुनौतियों का उल्लेख कीजिए।
  • इस संदर्भ में प्रस्तावित रणनीतियों (उदाहरणार्थ नीति आयोग) का उल्लेख कीजिए।
  • उचित निष्कर्ष दीजिए।

उत्तर

शहरी शासन शहरी रूपांतरण, सतत आर्थिक वृद्धि और रोजगार सृजन का एक प्रमुख कारक है। यू.एन. वर्ल्ड अर्बनाइज़ेशन प्रॉस्पेक्ट्स, 2018 के अनुसार भारत की लगभग 34% जनसंख्या शहरी क्षेत्रों में निवास करती है। वर्ष 2050 तक यह संख्या, कुल जनसंख्या का लगभग 50% हो जाएगी। बढ़ती शहरी जनसंख्या शहरों में उपलब्ध अवसंरचनाओं और सेवाओं पर अत्यधिक दबाव की स्थिति उत्पन्न करेगी। इन अवसंरचना और सेवाओं को केवल आधुनिक शहरी शासन के माध्यम से ही सुनिश्चित किया जा सकता है।

हालाँकि, भारत में वर्तमान शहरी शासन विभिन्न बाध्यताओं के कारण दुष्प्रभावित हुआ है:

  • शहरों में आधुनिक स्थानिक नियोजन रूपरेखा, सार्वजनिक उपयोगिता डिज़ाइन मानकों तथा भू- स्वत्वाधिकार (land titling) की स्पष्टता का अभाव। यह शहरों में आर्थिक वृद्धि और उत्पादकता, पर्यावरणीय संधारणीयता और निवास संबंधी स्थितियों को अत्यधिक क्षति पहुंचाता है।
  • विशेष रूप से शहरी स्थानीय निकायों (ULBs) में मानव संसाधन क्षमताओं (कार्मिकों और उनके कौशल के संदर्भ में) का अभाव।
  • संकीर्ण, अनम्य और कर-उछाल रहित (non-buoyant) कर आधार, खंडित वित्तीय लेखांकन व लेखा परीक्षण प्रणालियों तथा करों व प्रयोक्ता प्रभारों के अधिरोपण एवं पुनर्घाप्ति में नगरपालिकाओं की असक्षमता के कारण नगरपालिका वित्त की निम्नस्तरीय अवस्था।
  • पैरास्टेटल्स (Parastatals: सरकार से पृथक किंतु प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से सरकार द्वारा नियंत्रित और उसके लिए कार्य करने वाली, कुछ सीमा तक राजनीतिक अधिकार धारण करने वाली कंपनियाँ, एजेंसियां या अंतर-सरकारी संगठन), विकास प्राधिकरणों, लोक-निर्माण विभागों और स्थानीय नगर निकायों जैसी अतिव्यापी उत्तरदायित्वों वाली अनेक संस्थाओं की उपस्थिति। इनके कारण सीमित संसाधनों का पर्याप्त उपयोग नहीं हो पाता तथा जवाबदेही का बिखराव हो जाता है।
  • शहरी स्तर पर निर्वाचित अधिकारियों (मेयर और पार्षद) की तुलना में शहरी/जिला स्तर पर केन्द्रीय प्रशासनिक सेवा संवर्गों के अधिकारियों को अधिक शक्तियाँ प्राप्त हैं। इसका आशय यह है कि शहरी शासन को विकेंद्रीकृत करने हेतु 74वां संवैधानिक संशोधन वास्तविकता में रूपांतरित नहीं हुआ है जिसके कारण शहरों में नागरिक सहभागिता प्रतिकूल रूप से प्रभावित होती है।

इस संदर्भ में नीति आयोग द्वारा प्रदत्त कुछ रणनीतियों का उल्लेख किया जा सकता है:

  • शहरी अर्थव्यवस्था से लाभ उठाना: इसमें व्यापार करने की सुगमता में सुधार करने और निवेशों को उत्प्रेरित करने हेतु शहरी आर्थिक परिषदों की स्थापना करना तथा डाटा आधारित नीति निर्माण हेतु शहर स्तरीय निवेश, GDP और रोजगार वृद्धि शामिल हैं
  • विकेंद्रीकरण और महानगरीय शासन: महानगरों में द्वि-स्तरीय शासन संरचना का सृजन कर विकेंद्रीकरण और महानगरीय शासन की स्थापना की गयी है, जिसके तहत सभी स्थानीय कार्य वार्ड समितियों को हस्तांतरित किए जाते हैं तथा शहरों की व्यापक सेवाएं (जैसे कि परिवहन, जलापूर्ति, सीवरेज आदि) नगर परिषदों अथवा क्षेत्रीय प्राधिकरणों में निहित हैं।
  • स्थानिक नियोजन और भू-स्वत्वाधिकार: महानगरीय, नगरपालिका तथा वार्ड स्तरों पर योजना का निर्माण, कार्यान्वयन और प्रवर्तन करते हुए एक आधुनिक राष्ट्रीय ढांचे द्वारा वर्तमान दिशा-निर्देशों का प्रतिस्थापन करना। भूमि के पारदर्शी क्रयविक्रय को प्रोत्साहित करने हेतु प्रत्याभूत भू-स्वत्वाधिकार का भी मूल्यांकन किया जा सकता है।
  • शहरी स्थानीय निकायों और नागरिक अभिकरणों के वित्तीयन को सुदृढ़ करना: इसमें राजकोषीय विकेन्द्रीकरण, राजस्व संग्रहण में सुधार हेतु नवाचारी प्रतिमान, मूल्य अधिग्रहण सिद्धांत, शहरी अवसंरचना और सेवाओं में सार्वजनिक-निजी भागीदारी तथा अंकेक्षित तुलन पत्रों के माध्यम से वित्तीय जवाबदेही शामिल हैं।
  • क्षमता निर्माण: नगरपालिका सेवाओं हेतु एक पृथक कौशल परिषद का निर्माण।
  • नागरिक सहभागिता: सिटी वाच ग्रुप्स, लोक सुनवाई और शहरी परामर्श सभाओं में नागरिकों की संलग्नता।

भारत में शहरी शासन, ग्रामीण क्षेत्रों के शासन के साथ भी गहन रूप से संबद्ध है। इसका कारण यह है कि भारत में ग्रामीण क्षेत्रों से शहरी क्षेत्रों की ओर अत्यधिक प्रवास होता है। ग्रामीण क्षेत्रों में शहरी सुविधाओं का प्रावधान (PURA) जैसी रणनीतियों के माध्यम से ग्रामीण क्षेत्रों में आवासों को आकर्षक बनाकर प्रवास की इस प्रवृति को उलटना आवश्यक है। इसके अतिरिक्त, स्मार्ट सिटी जैसी परियोजनाओं के कार्यान्वयन की आवश्यकता है, जिसका लक्ष्य शहरी भू-दृश्य को अधिक दृढ़ता और प्रभावशीलता से रूपांतरित करना है।

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