भारत में सार्वजनिक क्षेत्र के उद्यम : स्वतंत्रता के उपरांत औद्योगिक विकास

प्रश्न: स्वतंत्रता के उपरांत सार्वजनिक क्षेत्रक के उद्यम औद्योगिक विकास की रीढ़ बने, लेकिन बदलते समय के साथ उनकी भूमिका भी बदल गई है। चर्चा कीजिए। साथ ही, उनके द्वारा सामना की जाने वाली समस्याओं से निपटने के लिए एक बहु-आयामी रणनीति अपनाए जाने की आवश्यकता पर टिप्पणी कीजिए।

दृष्टिकोण

  • भारत में सार्वजनिक क्षेत्र के उद्यमों के विकास को रेखांकित करते हुए चर्चा कीजिए कि ये किस प्रकार स्वतंत्रता के उपरांत औद्योगिक विकास की रीढ़ बने।
  • विशेषतः 1991 के आर्थिक सुधारों के पश्चात सार्वजनिक क्षेत्र की बदलती भूमिका का विश्लेषण कीजिए।
  • सार्वजनिक क्षेत्र के उद्यमों द्वारा सामना की जाने वाली समस्याओं को रेखांकित कीजिए और इन समस्याओं से निपटने हेतु एक बहु-आयामी रणनीति का सुझाव दीजिए।

उत्तर

स्वतन्त्रता प्राप्ति के समय भारत में 5 केंद्रीय सार्वजनिक क्षेत्र के उद्यम (PSE) थे, परन्तु वर्तमान में इनकी संख्या 320 है। इनमें 12 लाख करोड़ रुपये की राशि निवेशित है, जो की देश के सकल घरेलू उत्पाद (GDP) का लगभग 22% है।

PSEs भारतीय अर्थव्यवस्था का मुख्य आधार रहे हैं और इनकी स्थापना निम्नलिखित उद्देश्यों से की गयी थी:

  • उच्च आर्थिक विकास के व्यापक समष्टि आर्थिक (मैक्रोइकोनॉमिक) उद्देश्यों की पूर्ति करना।
  • अत्यावश्यक औद्योगिक आधार का निर्माण करना और आधारभूत अवसंरचनात्मक उपयोगिताओं जैसे विद्युत्, परिवहन, संचार, आधारभूत और भारी उद्योग, सिंचाई इत्यादि को स्थापित करना।
  • वस्तुओं/सेवाओं के उत्पादन में आत्मनिर्भरता प्राप्त करके निर्यात प्रोत्साहन एवं आयात प्रतिस्थापन करना।
  • आय/धन के पुनर्वितरण को प्रोत्साहित करना तथा क्षेत्रीय विकास को संतुलित करना।
  • रोजगार के अवसरों को उत्पन्न करने हेतु श्रम समर्थक प्रौद्योगिकी को अपनाना।

हालांकि, 1991 में आर्थिक उदारीकरण के साथ वैश्विक स्तर पर उत्पन्न प्रतिस्पर्धा का सामना करने हेतु इसकी भूमिका में बदलाव आया है:

  • सार्वजनिक क्षेत्र के उद्यम अब धीरे-धीरे उन क्षेत्रों से बाहर निकलने का प्रयास कर रहे हैं जहां वे संसाधनों एवं सार्वजनिक कोष के अपव्यय के स्रोत के रूप में कार्य करते थे। इसका उपयुक्त उदाहरण ऋणग्रस्त एयर इंडिया है।
  • कार्य दक्षता में सुधार एवं आधुनिकीकरण के परिणामस्वरूप नौकरियों की संख्या में कमी आई है। उदाहरण के लिए, SAIL में पूर्व में 2 लाख से अधिक कामगारों के स्थान पर अब केवल 80,000 ही कार्यरत हैं।
  • कंपनियों को ‘रत्न’ का दर्जा देने की शुरुआत से ही सामाजिक परिणामों की तुलना में लाभोन्मुख होने पर अधिक ध्यान केंद्रित किया गया है।
  • विभिन्न क्षेत्रों के डि-लाइसेंसिंग और डि-रिजर्वेशन के कारण इन्हें निजी क्षेत्र से भारी प्रतिस्पर्धा का सामना करना पड़ रहा है। उदाहरण के लिए, हाल ही में वाणिज्यिक कोयला खनन क्षेत्र को निजी क्षेत्र के लिए खोले जाने का प्रस्ताव लाया गया है, जो राज्य समर्थित कोल इंडिया लिमिटेड (CIL) के एकाधिकार को समाप्त करेगा। यह सरकार के दृष्टिकोण में एक मौलिक परिवर्तन को दर्शाता है।

हालांकि, सार्वजनिक क्षेत्रक द्वारा विभिन्न क्षेत्रों में सेवाएं देने के बावजूद, ये क्षमता उपयोग, अप्रचलित तकनीक, विद्युत् (ऊर्जा) की कमी, राजनीतिक हस्तक्षेप और लाल फीताशाही से संबंधित विभिन्न समस्याओं का सामना कर रहे हैं। इन समस्याओं के कारण समय और लागत में वृद्धि होती है, जिसके परिणामस्वरुप अंततः लाभ में कमी होती है। अतः PSE के सुधार हेतु एक बहु-आयामी रणनीति की आवश्यकता है।

बहु-आयामी रणनीति

  • कॉर्पोरेट गवर्नेस में सुधार: पारदर्शिता एवं प्रकटीकरण के उच्च मानकों को बनाए रखने के साथ-साथ सभी प्रमुख हितधारकों के साथ रिकग्नाइज़, रिस्पैक्ट, और रिपोर्टिंग के आधार पर संबंध स्थापित करना।
  • उन क्षेत्रों से बाहर होना जहां निजी क्षेत्र बेहतर कार्य कर रहा है। उदाहरण के लिए, परिचालन दक्षता में सुधार हेतु एयर इंडिया जैसे उपक्रमों की रणनीतिक बिक्री (strategic sale) करना।
  • मानव संसाधन प्रबंधन: गुणवत्तापूर्ण प्रतिभा को आकर्षित करना और बनाए रखना। इसके लिए नेतृत्व भूमिकाओं में कार्य करने के लिए तैयार करने हेतु कर्मचारियों का चयन करने संबंधी नीतियों को अपनाना।
  • व्यापार प्रक्रियाओं को सुव्यवस्थित करना: पुनर्जभियांत्रिक व्यवसाय संबंधी प्रक्रियाओं के समर्थन हेतु अत्याधुनिक प्रौद्योगिकी में निवेश करना एवं ERP पैकेज समेत एकीकृत IT सिस्टम को अपनाना।
  • भूमि का उपयोग: सार्वजनिक क्षेत्र की कंपनियों के पास उपलब्ध विशाल भूमि का मौद्रीकरण एवं अधिक इकाइयों की स्थापना हेतु उपयोग करना।
  • कॉर्पोरेट सोशल रिस्पांसिबिलिटी (CSR) अपने व्यावसायिक अधिदेशों को प्राप्त करने के दौरान समुदाय के विकास एवं समृद्धि की दिशा में एक महत्वपूर्ण पहल है।

ये कदम विद्यमान क्षमताओं के बेहतर उपयोग में सहायता प्रदान कर इन्हें आदर्श उद्यमों के रूप में कार्य करने में सक्षम बनाएगें। इस प्रकार इनका उद्देश्य न केवल लाभ की प्राप्ति है, बल्कि ये देश के सामाजिक, आर्थिक एवं रणनीतिक उद्देश्यों की भी पूर्ति करते हैं।

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