भारत में सरकारी योजनाओं की निगरानी और कार्यान्वयन में चुनौतियां

प्रश्न: भारत में सरकारी योजनाएं दीर्घकाल से निगरानी और कार्यान्वयन संबंधी चुनौतियों से बुरी तरह प्रभावित रही हैं। हाल में सरकार द्वारा इस संबंध में क्या कदम उठाए गए हैं? साथ ही इन चुनौतियों को दूर करने में सामाजिक लेखापरीक्षा की क्षमता पर भी चर्चा कीजिए।

दृष्टिकोण:

  • भारत में सरकारी योजनाओं की निगरानी और कार्यान्वयन में आने वाली चुनौतियों का उल्लेख कीजिए।
  • इनकी निगरानी और कार्यान्वयन में सुधार के लिए सरकार द्वारा की गई हाल की पहलों को सूचीबद्ध कीजिए।
  • स्पष्ट कीजिए कि सरकारी योजनाओं के प्रभावी क्रियान्वयन और निगरानी में सामाजिक लेखापरीक्षा की अवधारणा किस प्रकार सहायता कर सकती है।

उत्तर:

भारत में सरकारी योजनाओं की निगरानी और इनके कार्यान्वयन में उपस्थित चुनौतियां दीर्घकाल से एक समस्या रही हैं। ये चुनौतियां हैं:  वित्त की कमी,

  • उपयुक्त नीतिगत ढाँचों की अनुपस्थिति,
  • वित्त के इष्टतम उपयोग हेतु प्रभावी वितरण तंत्र का अभाव,
  • कार्यान्वयन एजेंसी हेतु प्रेरणा और उसकी जवाबदेही का अभाव,
  • कर्मचारियों की कमी, लीकेज, भ्रष्टाचार, लालफीताशाही और नीतिगत कमियाँ,
  • केन्द्र के साथ-साथ राज्य स्तर पर कार्यरत विभिन्न एजेंसियों के मध्य समन्वय का अभाव,
  • पर्याप्त अवसंरचनात्मक सुविधाओं का अभाव,
  • लोगों के मध्य जागरुकता का अभाव,
  • योजना से संबंधित त्वरित शिकायत निवारण तंत्र का अभाव।

इस संबंध में सरकार द्वारा उठाए गए विभिन्न कदम निम्नलिखित हैं:

  • पारदर्शिता सुनिश्चित करने के उपाय के रूप में सूचना का अधिकार अधिनियम सार्वजनिक अधिकारियों द्वारा अनुपालन किये जाने को प्रेरित करता है।
  • महात्मा गाँधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम (MNREGA), मेघालय सामाजिक लेखापरीक्षा कानून आदि कानूनों के तहत अनिवार्य सामाजिक लेखा परीक्षा जैसे उपायों के माध्यम से नागरिक भागीदारी में वृद्धि।
  • नीति (NITI) आयोग में ‘विकास निगरानी और मूल्यांकन कार्यालय’ जैसे संस्थागत उपाय। ध्यातव्य है कि नीति आयोग केंद्र द्वारा वित्त पोषित कार्यक्रमों की निगरानी और उनके प्रभाव मूल्यांकन के लिए उत्तरदायी है।
  • जवाबदेहिता बनाए रखने के लिए आउटकम बजट को अपनाया जाना।
  • बेहतर नीति निर्माण और निगरानी के लिए IT का उपयोग; उदाहरण के लिए डेटा-संचालित निर्णय लेने के लिए विधिनिर्माताओं और स्थानीय अधिकारियों की सहायता हेतु दिशा (DISHA) डैशबोर्ड, महत्वपूर्ण कार्यक्रमों और परियोजनाओं की निगरानी और समीक्षा करने के लिए प्रगति (PRAGATI), सभी संबंधित दस्तावेज उपलब्ध कराने हेतु नरेगासॉफ्ट (NREGAsoft) तथा कार्यान्वयन एजेंसियों को प्रदान किये जाने वाले धन के प्रवाह को ट्रैक करने एवं उसके पर्यवेक्षण हेतु कार्यक्रम प्रबंधन सूचना तंत्र आदि।
  • रैपिड असेसमेंट सिस्टम (RAS) के माध्यम से भारत सरकार और राज्य सरकारों द्वारा वितरित योजनाओं और ई-सेवाओं के लिए निरंतर फ़ीडबैक।

सामाजिक लेखापरीक्षा किसी सरकारी संगठन की किसी भी या सभी गतिविधियों में निहित उद्देश्यों की उपलब्धि को मापने में हितधारकों की संलग्नता को संदर्भित करती है। यह निम्नलिखित तरीकों से कार्यान्वयन और निगरानी में सुधार करने में सहायता कर सकती है:

  • यह किसी गतिविधि के सम्बन्ध में समाज के लोगों के दृष्टिकोण से बेहतर समझ निर्मित करती है।
  • योजनाओं के उन महत्वपूर्ण घटकों की पहचान करती है जिनके अंतर्गत लोगों के हित प्रत्यक्ष रूप से जुड़े होते हैं।
  • अभीष्ट लाभार्थियों की बेहतर पहचान के माध्यम से योजनाओं के लक्षित दृष्टिकोण में सुधार करती है।
  • सरकारी कार्यक्रमों के कार्यान्वयन को अधिक सहभागी और समावेशी बनाती है।
  • विभिन्न भौगोलिक क्षेत्रों और राज्यों में सरकारी कार्यक्रमों के प्रदर्शन की तुलना करती है।
  • सार्वजनिक एजेंसियों द्वारा विकास पहलों के लिए उपयोग किए जाने वाले खातों की बेहतर जांच करती है।
  • आगतों, प्रक्रियाओं, वित्तीय और भौतिक रिपोर्टिंग, अनुपालन, भौतिक सत्यापन, दुरुपयोग के विरुद्ध आश्वासन, धोखाधड़ी एवं अनुपयुक्तता तथा संसाधनों के उपयोग हेतु प्रत्यक्ष इनपुट प्रदान करती है।

हालाँकि सामाजिक लेखापरीक्षा की अनौपचारिक व स्थानीयकृत प्रकृति, डेटा तक अपर्याप्त पहुंच, सामाजिक लेखापरीक्षकों की कमी और ज़मीनी स्तर पर निगरानी व्यवस्था में व्याप्त भिन्नता के कारण इसकी क्षमता का अभी तक सीमित उपयोग ही हो पाया है। मेघालय सामाजिक लेखापरीक्षा अधिनियम अन्य राज्यों के लिए एक मॉडल के रूप में कार्य कर सकता है।

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