मरुस्थलीकरण की परिभाषा : भारत में मरुस्थलीकरण के बढ़ने के प्रमुख कारण

प्रश्न: भारत में मरुस्थलीकरण से प्रभावित हो रहे क्षेत्रों की पहचान कीजिए। इसके प्रमुख कारणों का उल्लेख करते हुए, इसका मुकाबला करने के लिए उठाए गए कदमों की प्रभावशीलता का विश्लेषण कीजिए।

दृष्टिकोण

  • परिचय के अंतर्गत मरुस्थलीकरण की परिभाषा लिखिए।
  • इसके पश्चात भारत में इसके द्वारा प्रभावित हो रहे क्षेत्रों का वर्णन कीजिए।
  • इसके पश्चात भारत में मरुस्थलीकरण के बढ़ने के कुछ प्रमुख कारणों की सविस्तार चर्चा कीजिए।
  • अंत में, इससे मुकाबला करने हेतु अब तक उठाए गए कदमों का उल्लेख कीजिए एवं उन कदमों की प्रभावशीलता का विश्लेषण कीजिए।

उत्तर

जलवायु में परिवर्तन और मानवीय गतिविधियों सहित विभिन्न कारकों के परिणामस्वरूप शुष्क, अर्द्ध-शुष्क और शुष्क उप-आर्द्र क्षेत्रों में भू-निम्नीकरण मरुस्थलीकरण कहलाता है।

पर्यावरणीय रिपोर्टों के आकलनों के अनुसार, भारत में लगभग 30% अर्थात् 328.72 मिलियन हेक्टेयर क्षेत्र में से 96.4 मिलियन हेक्टेयर क्षेत्र निम्नीकृत हो चुका है या मरुस्थलीकरण का सामना कर रहा है। आठ राज्यों राजस्थान, दिल्ली, गोवा, महाराष्ट्र, झारखंड, नागालैंड, त्रिपुरा और हिमाचल प्रदेश की लगभग 40% से 70% भूमि मरुस्थलीकरण से प्रभावित हो चुकी है। विगत दस वर्षों में, 29 राज्यों में से 26 राज्यों में मरुस्थलीकरण से प्रभावित होने वाले क्षेत्र में वृद्धि देखी गयी है।

मरुस्थलीकरण के लिए निम्नलिखित मानवीय एवं प्राकृतिक कारण उत्तरदायी हैं:

  • भूमि और जल के कारण मृदा अपरदन: ये कारक भारत में लगभग 16% मरुस्थलीकरण के लिए उत्तरदायी हैं। खनन गतिविधियों के कारण भी मृदा के पोषक तत्वों का क्षरण होता है।
  • बढ़ती जनसंख्या की आवश्यकताओं को समायोजित करने हेतु बढ़ते निर्वनीकरण एवं अतिचारण के कारण वनस्पति के विनाश से मरुस्थलीकरण की गति और अधिक तीव्र हो जाती है।
  • कृषि गतिविधियाँ: सुभेद्य पारिस्थितिकी तंत्रों में कृषि गतिविधियों हेतु जल, उर्वरक और कीटनाशकों के अत्यधिक उपयोग के कारण पोषक तत्वों का क्षरण और लवणता में वृद्धि होती है जिसके फलस्वरूप मरुस्थलीकरण को बढ़ावा मिलता है।
  • शहरीकरण और भूमि विकास परियोजनाएं: इनसे संबंधित गतिविधियाँ भूमि पर अत्यधिक दबाव डालती हैं तथा इसके भविष्य में और अधिक बढ़ने की संभावना है।
  • जलवायु परिवर्तन: तापमान के निरंतर बढ़ने और सूखे की आवृत्ति में वृद्धि के कारण मरूस्थलीकरण के संकट के और अधिक बढ़ने की आशंका है।

भारत, UNCCD का एक हस्ताक्षरकर्ता देश है, अत: मरुस्थलीकरण का मुकाबला करने हेतु अनेक कदम उठाए हैं: जैसे- नेशनल एक्शन प्रोग्राम टू कॉम्बैट डेजर्टिफिकेशन, समेकित वाटरशेड प्रबंधन कार्यक्रम, राष्ट्रीय वनीकरण कार्यक्रम, फ्रोडर एंड फीड डेवलपमेंट स्कीम इत्यादि।

लेकिन, मरुस्थलीकरण में क्रमिक वृद्धि यह दर्शाती है कि सरकार द्वारा उठाए गए कदम बहुत प्रभावी नहीं रहे हैं। इसके लिए संस्थागत और मानवीय क्षमताओं की अपर्याप्तता एवं कमजोरी, समर्पित निधि का अभाव, संबंधित मंत्रालयों के मध्य समन्वय में कमी, योजना निर्माण एवं कार्यान्वयन पर समान रूप से ध्यान न दिया जाना आदि को उत्तरदायी ठहराया जा सकता है।

इस प्रकार, सरकारी हस्तक्षेप द्वारा उपचारात्मक और निवारक, दोनों उपायों को समान रूप से महत्व देते हुए कार्यरूप में परिणत करने की आवश्यकता है। मरुस्थलीकरण से निपटने के लिए किए जाने वाले उपायों की प्रभावकारिता की जांच हेतु इन उपायों की समय-समय पर समीक्षा भी की जानी चाहिए।

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