भारत में कामकाजी महिलाओं के संदर्भ में संक्षिप्त परिचय
प्रश्न: समकालीन भारतीय समाज में कामकाजी महिलाओं द्वारा सामना किए जाने वाले प्रमुख मुद्दों और उनसे निपटने के लिए सरकार द्वारा उठाए गए कदमों को सूचीबद्ध कीजिए। साथ ही, मातृत्व लाभ (संशोधन) अधिनियम 2017 की प्रमुख विशेषताओं का आलोचनात्मक परीक्षण कीजिए।
दृष्टिकोण
- भारत में कामकाजी महिलाओं के संदर्भ में संक्षिप्त परिचय दीजिए।
- भारतीय कामकाजी महिलाओं द्वारा अनुभव की जाने वाली समस्याओं का विस्तृत वर्णन कीजिए।
- भारत में कामकाजी महिलाओं के मुद्दों का समाधान करने के लिए सरकार द्वारा उठाए गए कदमों को सूचीबद्ध कीजिए।
- हाल ही में मातृत्व लाभ अधिनियम में हुए संशोधनों पर चर्चा कीजिए।
- संभावित सुधारों का सुझाव दीजिए।
उत्तर
यद्यपि महिलाएं भारतीय जनसंख्या के लगभग 50% भाग का गठन करती हैं तथापि 2016 में श्रमबल में उनकी भागीदारी लगभग 28% थी।
भारत में कामकाजी महिलाओं के समक्ष व्याप्त प्रमुख मुद्दे
- लैंगिक पक्षपात: ये भर्ती, पारिश्रमिक और पदोन्नति के दौरान बाधा उत्पन्न करते हैं।
- ग्लास सीलिंग: पूर्वाग्रहों और रूढ़िवादिता के कारण अदृष्ट अवरोध, महिलाओं की योग्यता व उपलब्धियों के बावजूद, उनके पदानुक्रम के उच्च पदों तक पहुंचने में बाधा उत्पन्न करते हैं।
- कार्य और पारिवारिक जीवन में संतुलन स्थापित करना: परिवार चलाने का प्रमुख दायित्व महिलाओं पर होता है। पति बच्चों की पूर्णकालिक देखभाल करने के इच्छुक नहीं होते हैं।
- कार्यस्थल पर यौन उत्पीड़न: कार्यस्थल पर सुरक्षा कानूनों के प्रभावी प्रवर्तन की कमी।
- नौकरी की असुरक्षा: चूंकि गर्भवती महिलाओं और स्तनपान कराने वाली माताओं को अपने बच्चे की देखभाल करने के लिए समय की आवश्यकता होती है, इसलिए कई महिलाएं अपर्याप्त अवकाश और परिवार के समर्थन की कमी के कारण नौकरी छोड़ देती हैं।
- पृथक शौचालय, परिवहन और क्रेच सुविधाओं जैसी सहायक अवसंरचना का अभाव।
- मनोवैज्ञानिक अवरोध: उपर्युक्त कारक महिलाओं के आत्मबल और आत्मविश्वास को प्रभावित करते हैं जो उनके विकास को बाधित करता है।
- अन्य कारक जैसे विवाह की आयु, साक्षरता और परिवार में प्रस्थिति इत्यादि।
कामकाजी महिलाओं के लिए सरकार द्वारा उठाए गए कदम
विधायन
- समान पारिश्रमिक अधिनियम, 1973 समान प्रकृति के एकसमान कार्य के लिए पुरुषों और महिलाओं के लिए समान पारिश्रमिक का प्रावधान करता है।
- मातृत्व लाभ अधिनियम, 1961 मातृत्व और अन्य लाभों को नियंत्रित करता है।
- कार्यस्थल पर महिलाओं का यौन उत्पीड़न (निवारण, निषेध एवं निदान) अधिनियम, 2013- महिला श्रमिकों के यौन उत्पीड़न का निवारण करता है।
कार्यक्रम/योजनाएं
- ‘महिला ई-हाट’, ‘डिजिटल इंडिया’ और ‘स्टैंड अप इंडिया’ जैसे कार्यक्रमों के माध्यम से महिला उद्यमिता को प्रोत्साहन देना।
- कामकाजी महिलाओं के लिए छात्रावास: सुरक्षित और वहनीय छात्रावास।
- क्रेच संचालन में NGOs की सहायता करने के लिए राजीव गांधी राष्ट्रीय क्रेच योजना।
- वन स्टॉप सेंटर: किसी भी प्रकार की हिंसा का सामना करने वाली महिलाओं को विशेष सेवाएं प्रदान करता है।
- वीमेन हेल्पलाइन: हिंसा और यौन उत्पीड़न से प्रभावित महिलाओं को 24 घंटे आपातकालीन एवं गैर-आपातकालीन सहायता प्रदान करना।
मातृत्व लाभ (संशोधन) अधिनियम, 2017:
इस अधिनियम में निम्नलिखित संशोधन किए गए हैं, जो 10 या उससे अधिक कर्मियों वाले सभी प्रतिष्ठानों पर लागू होंगे:
- कामकाजी महिलाओं को प्रथम दो बच्चों के लिए मिलने वाले मातृत्व अवकाश की अवधि को 12 सप्ताह से बढ़ाकर 26 सप्ताह कर दिया गया है।
- 50 से अधिक कर्मियों वाले प्रत्येक प्रतिष्ठान के लिए कामकाजी माताओं के लिए क्रेच सुविधाएं प्रदान करना और कार्य के घंटों के दौरान चार बार क्रेच जाने की अनुमति देना अनिवार्य है।
- यदि संभव हो तो नियोक्ता किसी महिला को घर से कार्य करने की अनुमति प्रदान कर सकता है।
- महिला कर्मी को उनकी नियुक्ति के समय लिखित और इलेक्ट्रॉनिक रूप से अधिनियम के तहत उपलब्ध सभी लाभों के बारे में सूचित किया जाना चाहिए।
अधिनियम के दोष
- वर्धित मातृत्व लाभ केवल पहले दो बच्चों के लिए उपलब्ध है।
- तीन माह से कम आयु के बच्चे को गोद लेने वाली महिला अथवा एक कमिशनिंग मदर (सरोगेसी के जरिये संतान सुख पाने वाली महिला) केवल 12 सप्ताह की अवधि के लिए मातृत्व लाभ प्राप्त कर सकेगी।
- यह नियोक्ताओं को महिलाओं की भर्ती करने से हतोत्साहित कर सकता है। साथ ही, उन उद्योगों की प्रतिस्पर्धात्मकता को प्रभावित कर सकता है जो मुख्य रूप से महिलाओं को रोजगार प्रदान करते हैं।
- इसमें असंगठित क्षेत्र में कार्यरत महिलाएं शामिल नहीं हैं।
- इसमें पितृत्व लाभ के संबंध में कोई प्रावधान नहीं किया गया है।
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