भारत में बाल लिंगानुपात (CSR) : भारत में निम्न CSR के सामाजिक-आर्थिक, जननांकिकीय और सांस्कृतिक निहितार्थ
प्रश्न: विभिन्न कारणों से बाल लिंगानुपात में गिरावट, विकट सामाजिक-आर्थिक, जननांकिकीय और सांस्कृतिक निहितार्थों के साथ, एक गंभीर समस्या है। भारतीय संदर्भ में चर्चा कीजिए
दृष्टिकोण
- भारत में बाल लिंगानुपात (CSR) के वर्तमान स्वरूप का वर्णन कीजिए। भारत में CSR में गिरावट के लिए उत्तरदायी कारणों की चर्चा कीजिए।
- भारत में निम्न CSR के सामाजिक-आर्थिक, जननांकिकीय और सांस्कृतिक निहितार्थों की चर्चा कीजिए। साथ ही भारत में CSR में सुधार हेतु किए जाने वाले उपायों की भी चर्चा कीजिए।
उत्तर
2011 की जनगणना के अनुसार, बाल लिंगानुपात (0-6 वर्ष) में गिरावट आई है। 2001 में बाल लिंगानुपात प्रति हजार पुरुषों (बाल) पर 927 महिलाएं (बाल) था जो 2011 में गिरकर प्रति हजार पुरुषों (बाल) पर 919 महिलाएं (बाल) हो गया। भारत उन दक्षिण-पूर्व एशियाई देशों में से एक है जहाँ प्रतिकूल बाल लिंगानुपात (CSR) पाया जाता है। भारत में गिरते लिंगानुपात को केवल एक चिकित्सा या कानूनी मुद्दे के रूप में नहीं देखा जा सकता है। इसका कारण पितृसत्तात्मक सामाजिक संरचना के भीतर ही अंतर्निहित है और इसे परंपरा, संस्कृति और धर्म के रूप में निम्नानुसार समर्थन दिया जाता है:
- विभिन्न विश्वासों के कारण पुत्र प्राप्ति को वरीयता देना जैसे कि केवल बेटा ही अंतिम संस्कार कर सकता है, वंश और विरासत का वहन केवल पुरुष ही कर सकता है।
- बढ़ती उत्पीड़न और यौन दुर्व्यवहार की घटनाओं के मध्य बेटी की सुरक्षा को लेकर डर की भावना का होना और अत्यधिक दहेज की मांग।
- कठोर रूढ़िवादी मानसिकता वाले कई धर्म प्रचारक महिला का द्वितीय लिंग के रूप में प्रचार करते हैं तथा उनका मानना है कि महिलाएं बच्चों के पालन-पोषण और ब्रेलू कार्य ही कर सकती हैं।
- पितृसत्तात्मक दृष्टिकोण के समर्थक उस सास्कृतिक मिथक को बनाए रखते हैं जहां पुत्रों को वरदान और बेटियों को अभिशाप माना जाता है।
- व्यापक गरीबी और निरक्षरता के कारण, पुरुषों को सामान्यत: परिवार के लिए भरण-पोषण की व्यवस्था करने वाले के रूप में माना जाता है जो परिवार की आय में काफी योगदान दे सकता है।
- नैदानिक प्रक्रियाओं से संबंधित कानूनों के दुरुपयोग के साथ छोटे परिवार का बढ़ता प्रचलन, बाल लिंगानुपात में गिरावट के लिए उत्प्रेरक के रूप में कार्य करता है।
निम्न CSR के निहितार्थ
सामाजिक-आर्थिक निहितार्थ
- निम्न CSR के आर्थिक परिणाम गंभीर होते हैं क्योंकि संभावित उत्पादक जनसंख्या का एक बड़ा हिस्सा समाप्त हो जाएगा। तिम्न CSR भारतीय श्रमबल में असमान लिंग प्रतिनिधित्व को बढ़ावा देगा और साथ ही इस परिघटना को स्थायी बनायेगा।
- महिला साथी को खोजने में कठिनाई और अक्षमता से सामाजिक तनाव उत्पन्न होगा, जिसकी अभिव्यक्ति महिलाओं के विरुद्ध विभिन्न प्रकार के अपराधों के रूप में प्रकट होगी, जैसे बलात्कार, उत्पीड़न, लड़कियों से छेड़छाड़ और बाल विवाह आदि।
जननांकिकीय निहितार्थ
- निम्न CSR, स्रोत से गंतव्य स्थान तक या तो कानूनी रूप से (विवाह के रूप में) या अवैध रूप से (मानव तस्करी के रूप में) महिलाओं के वृहद स्तर पर प्रवासन का कारण बनेगा, इस प्रकार यह क्षेत्रीय लिंगानुपात को अस्थिर बना सकता है।
- CSR में विकृति अंततः विवाह योग्य आयु की महिलाओं की कमी का कारण बनेगा। इस प्रवृत्ति को महिलाओं के लिए विवाह योग्य आयु का कम आयु (15-18) तक विस्तार करके समायोजित किया जाएगा, इस प्रकार दीर्घावधि में इसके कारण समग्र प्रजनन दर में वृद्धि होगी।
सांस्कृतिक निहितार्थ
- वधू की कमी की समस्या वधू की कीमत, बाल मँगनी और कम आयु में विवाह को बढ़ाएगी। बाल वधुओं की बढ़ती संख्या महिलाओं की स्थिति को और अधिक कमजोर करेगी।
सामाजिक क्षेत्र में निहित बुराईयों को समाप्त करके ही लैंगिक समानता को स्थापित किया जा सकता है। लड़की के प्रति और समग्र महिला समूह के प्रति समाज के दृष्टिकोण को बदलने की आवश्यकता है। सरकार के नवाचारी कार्यक्रमों जैसे कि “बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ” के अतिरिक्त, “पूर्व गर्भाधान और प्रसव पूर्व निदान तकनीक (लिंग चयन का प्रतिषेध) अधिनियम” का कठोर प्रवर्तन कम होते बाल लिंगानुपात और सम्पूर्ण जीवन-काल के दौरान महिला सशक्तिकरण से संबंधित मुद्दों के समाधान हेतु आवश्यक है।
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