भारत में लौह और इस्पात उद्योग की स्थिति की संक्षेप में चर्चा

प्रश्न: भारत में लौह एवं इस्पात उद्योग के वितरण को प्रभावित करने वाले अवस्थिति संबंधी कारकों का संक्षिप्त विवरण दीजिए। इस उद्योग को किन चुनौतियों का सामना करना पड़ता है?

दृष्टिकोण:

  • भारत में लौह और इस्पात उद्योग की स्थिति की संक्षेप में चर्चा कीजिए। 
  • भारत में इस उद्योग के वितरण को प्रभावित करने वाले स्थानीय कारकों का उल्लेख कीजिए।
  • इस उद्योग के समक्ष व्याप्त चुनौतियों का उल्लेख कीजिए।
  • इन चुनौतियों का समाधान करने के लिए किए गए उपायों का संक्षेप में वर्णन करते हुए निष्कर्ष प्रस्तुत कीजिए।

उत्तरः

लौह एवं इस्पात उद्योग के विकास ने भारत में तीव्र औद्योगिक विकास का मार्ग प्रशस्त किया है। भारतीय उद्योग के लगभग सभी क्षेत्रक अपनी अवसंरचना के लिए लौह एवं इस्पात उद्योग पर निर्भर हैं।

भारत में लौह और इस्पात उद्योग के वितरण को प्रभावित करने वाले स्थानीय कारकों में शामिल हैं:

  • कच्चे माल का स्रोत: इस उद्योग द्वारा उपयोग किए जाने वाले कच्चे माल में लौह-अयस्क, कोकिंग कोयला, चूना पत्थर, डोलोमाइट, मैंगनीज और अग्निसहमृत्तिका (fire clay) सम्मिलित हैं। ये कच्चे माल भार ह्रासी (weight-losing) वाले होते हैं। इसलिए लौह और इस्पात संयंत्र कच्चे माल के स्रोत के निकट स्थित हैं। उदाहरणार्थ- छत्तीसगढ़, उड़ीसा, झारखंड और पश्चिम बंगाल के कुछ भागों को समाविष्ट करते हुए निमित अर्द्धचंद्राकार क्षेत्र में लौह और इस्पात उद्योगों का संकेंद्रण।
  • परिवहन: प्रमुख लौह एवं इस्पात संयंत्र रेलवे लाइनों और पत्तनों से जुड़े क्षेत्रों में स्थित हैं। उदाहरण के लिए TISCO संयंत्र मुंबई-कोलकाता रेलवे लाइन के अति निकट है यहां से इस्पात के निर्यात के लिए निकटतम (लगभग 240 कि.मी. दूर ) पत्तन कोलकाता है।
  • आयातित अयस्क पर अपनी निर्भरता के कारण लौह एवं इस्पात संयंत्र विशाखापत्तनम, रत्नागिरी, मैंगलोर जैसे तटीय क्षेत्रों में भी स्थित हैं। इस प्रकार, रेलवे के माध्यम से पत्तन से कारखाने तक अयस्कों की ढुलाई की लागत कम हो जाती है।
  • औद्योगिक नीति: भारत का उद्देश्य संतुलित क्षेत्रीय विकास है। भिलाई और राउरकेला में लौह एवं इस्पात उद्योग की स्थापना का उद्देश्य पिछड़े क्षेत्रों का विकास करना था।
  • विद्युत: मशीनरी के कार्यों के लिए विद्युत आपूर्ति आवश्यक है। इस प्रकार, विद्युत आपूर्ति किसी भी विनिर्माण उद्योग की अवस्थिति का निर्धारक कारक बन जाती है। उदाहरण के लिए, दामोदर घाटी निगम दुर्गापुर इस्पात संयंत्र और बोकारो इस्पात संयंत्र को जलविद्युत की आपूर्ति करता है।
  • जल: इस उद्योग के लिए अधिक मात्रा में जल की आवश्यकता होती है। इसलिए, लगभग सभी लौह एवं इस्पात उद्योग नदी या अन्य जल स्रोतों के निकट स्थित हैं। जैसे- सुवर्णरेखा नदी के निकट TISCO, बराकर नदी के निकट ||SCO आदि।
  • बाजार तक पहुंच: बाजार विनिर्मित उत्पादों हेतु स्थान उपलब्ध कराते हैं। इसके अतिरिक्त, इस उद्योग का अंतिम उत्पाद भारी होता है और यदि बाजार में सुलभ नहीं हैं तो परिवहन की लागत समग्र लागत में वृद्धि करती है।

लौह एवं इस्पात उद्योग के समक्ष व्याप्त चुनौतियों में सम्मिलित हैं:

  • डंपिंग: भारत अंतरराष्ट्रीय कीमतों में गिरावट के कारण चीन, जापान और दक्षिण कोरिया में निर्मित सस्ते इस्पात का डंपिंग क्षेत्र बन गया है। जिसके परिमाणस्वरूप, घरेलू इस्पात अभिकर्ताओं की क्षमता उपयोग दर में कमी आने का अनुमान  है।
  • प्रौद्योगिकी का अभाव: निम्नस्तरीय और अप्रचलित प्रौद्योगिकी के परिणामस्वरूप उत्पादकता एवं क्षमता में कमी आई है।
  • सार्वजनिक क्षेत्र की इकाइयों की अकुशलता: ऐसा सामाजिक उपरिव्यय पर अत्यधिक निवेश, खराब श्रमिक संबंधों और अकुशल प्रबंधन के कारण है। यह संयंत्रों के कामकाज में बाधक बनता है और परिणामस्वरूप बढ़ते हुए NPA के कारण हानि होती है।
  • धातुकर्मक कोयले की कमी: कई इस्पात संयंत्रों को धातुकर्मक कोयला आयात करना पड़ता है, जिससे उनकी लागत बढ़ जाती है।
  • विद्युत की समस्या: विद्युत की अधिक कीमत और अनियमित विद्युत आपूर्ति उत्पादन प्रक्रिया को धीमी कर देती है। सरकार द्वारा इन समस्याओं से निपटने हेतु अनेक कदम उठाए गए हैं जैसे कि इस्पात पर डंपिंग रोधी शुल्क आरोपित करना, आयात कर लगाना, राष्ट्रीय इस्पात नीति, 2017 का कार्यान्वयन आदि। साथ ही वर्तमान व्यवस्था द्वारा अवसंरचना, आवास और विनिर्माण क्षेत्र पर ध्यान केन्द्रित किया गया है जिसने लौह एवं इस्पात की घरेलू मांग में वृद्धि की है। इस प्रकार भारतीय इस्पात उद्योग प्रतिस्पर्धी हो रहा है क्योंकि वर्ल्ड स्टील डायनामिक्स द्वारा 36 भारतीय इस्पात विनिर्माताओं को वर्ष 2017 में विश्वस्तरीय इस्पात निर्माता के रूप में सूचीबद्ध किया गया।

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