भारत की विकास प्रक्रिया में प्रवासी समुदाय (डायस्पोरा)

प्रश्न: भारत की विकास प्रक्रिया में प्रवासी समुदाय (डायस्पोरा) द्वारा निभाई गई भूमिका पर टिप्पणी कीजिए। साथ ही, भारतीय प्रवासी समुदाय को आकर्षित करने में आने वाली चुनौतियों पर चर्चा कीजिए तथा इन साझेदारियों को लाभों में बदलने हेतु तरीके सुझाइए।

दृष्टिकोण

  • प्रवासी समुदाय को परिभाषित कीजिए और भारत की विकास प्रक्रिया में इनके द्वारा निभाई गई भूमिका पर टिप्पणी कीजिए।
  • भारतीय प्रवासी समुदाय को आकर्षित करने में आने वाली चुनौतियों पर चर्चा कीजिए।
  • इन साझेदारियों को लाभों में बदलने हेतु तरीके सुझाइए।

उत्तर

भारतीय प्रवासी समुदाय (डायस्पोरा) में उन लोगों के समूह को शामिल किया जाता है जो मूलत: भारत से सम्बद्ध हों या वे अस्थायी या स्थायी रूप से विदेश में निवास करने वाले भारतीय नागरिक हों। भारतीय डायस्पोरा में विश्व के 146 देशों में निवास करने वाले लगभग 31 मिलियन लोग शामिल हैं। इनमें से 17 मिलियन से अधिक PIOs हैं और 13 मिलियन से अधिक NRI हैं।

भारत की विकास प्रक्रिया में प्रवासी भारतीयों द्वारा निभाई गई भूमिका:

  •  विप्रेषण: विप्रेषण द्वारा प्राप्त महत्वपूर्ण वित्तीय योगदानों का प्राप्तकर्ता परिवारों द्वारा भूमि, शिक्षा या स्वास्थ्य में सुधार जैसी उत्पादक गतिविधियों में उपयोग किया जाता है और यह निर्धनता को कम करने में भी सहायक है। विश्व बैंक के अनुसार, भारत लगभग 80 बिलियन अमरीकी डालर के विप्रेषण के साथ शीर्ष प्राप्तकर्ता देश है।
  • निवेश: डायस्पोरा द्वारा प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (FDI) और अंतरराष्ट्रीय उद्यमिता (मूल देश अर्थात् भारत में उद्यमियों और छोटे व्यवसायों को समर्थन प्रदान करने सहित) के माध्यम से भारत में आर्थिक विकास में योगदान दिया जाता है।
  • ज्ञान का हस्तांतरण: डायस्पोरा, प्रतिभा लाभ (brain gain) के रूप में तकनीकी ज्ञान और कौशल के हस्तांतरण का एक प्रमुख स्रोत होता है। यह प्रौद्योगिकी और मूल देश के मध्य महत्वपूर्ण सेतु के रूप में कार्य कर सकता है।
  • लोकोपकारिता (Philanthropy): कुछ डायस्पोरा संगठनों और व्यक्तियों द्वारा लोकोपकारिता संबंधी कार्य किया जाता है। भारतीय डायस्पोरा द्वारा किया जाने वाला लोकोपकारिता संबंधी कार्य मुख्य रूप से स्वास्थ्य, शिक्षा, राहत और पुनर्वास के क्षेत्र से संबंधित है। तमिलनाडु, आंध्र प्रदेश, केरल, गुजरात और पंजाब में इस प्रकार के NGOs बड़ी संख्या में विद्यमान है।
  • डायस्पोरा नेटवर्क: डायस्पोरा नेटवर्क न केवल प्रवासियों के प्रवाह को निरंतर बनाए रखने का कार्य करता है बल्कि विशिष्ट श्रम बाजारों तक पहंच को भी प्रभावित और नियंत्रित करता है। भारत के परिप्रेक्ष्य में इस प्रकार का नेटवर्क खाड़ी क्षेत्र के श्रम बाजारों में सक्रिय है।
  • पक्ष-समर्थन/कूटनीति (Advocacy/Diplomacy): डायस्पोरा विभिन्न मुद्दों पर सरकार, मीडिया, कॉर्पोरेट क्षेत्र और अन्य प्रमुख समूहों को प्रभावित करने का प्रयास करता है। उदाहरण के लिए, 2008 में भारत-अमेरिका असैन्य परमाणु समझौता विधेयक के लिए लॉबिंग करना।

मूल देश द्वारा अपने डायस्पोरा की आवश्यकताओं को पूरा किए जाने की आवश्यकता होती है और साथ ही, देश की संवृद्धि में योगदान करने हेतु उन्हें प्रोत्साहित करने के लिए नीतियों का निर्माण भी करना होता है। तदनुरूप भारत में सरकारी पहलों के अंतर्गत दोहरा दृष्टिकोण अपनाया गया है। एक ओर जहाँ ‘नो इंडिया प्रोग्राम’, ‘भारत को जानो’ क्विज़, UGC छात्रवृत्ति आदि आउटरीच सम्बन्धी प्रभावी गतिविधियाँ विद्यमान हैं, वहीं दूसरी ओर अन्य उपायों जैसे मिनिमम रेफरल वेजेज़ (MRW) जैसे नीतिगत परिवर्तनों ने भारतीय श्रमिकों के न्यूनतम वेतन में वृद्धि की है। उल्लेखनीय है कि MRW केवल ‘उत्प्रवास जांच आवश्यक (ECR)’ देशों पर ही लागू हैं।

हालाँकि, भारतीय डायस्पोरा के साथ संपर्क स्थापित करने के सन्दर्भ में कुछ सीमाएँ विद्यमान हैं:

  • डायस्पोरा की सहायता सतत रूप से नहीं की जाती है तथा भारत की प्राथमिकताओं के अंतर्गत उनके हितों का ध्यान नहीं दिया जाता है।
  • आवश्यक नहीं कि विप्रेषण का उपयोग सदैव लाभकारी उद्देश्यों हेतु ही किया जाए, जैसे कि विदेशी वित्तीयन का उपयोग खालिस्तान आंदोलन जैसे अलगाववादी आंदोलनों को बढ़ावा देने हेतु किया गया।
  • विदेशों में फंसे भारतीयों का बचाव और उनकी स्वदेश वापसी में एक बहुत बड़ी वित्तीय चुनौती है।
  • अमेरिका, कनाडा और ब्रिटेन जैसे देशों के समृद्ध प्रवासी समुदाय द्वारा दोहरी नागरिकता और मतदान के अधिकार की मांग की जा रही है।
  • हालांकि, ‘मिनिमम रेफरल वेज’ नीति और ई-माइग्रेट सिस्टम धोखाधड़ी वाले अनुबंधों से सुरक्षा प्रदान करने में सहायक हैं, लेकिन ये भारत के लिए अहितकर रहे हैं क्योंकि कंपनियों के लिए अब बांग्लादेश और पाकिस्तान जैसे देशों से श्रमिकों की प्राप्ति आसान हो गई है।
  • खाड़ी देशों से संबंधित कूटनीति वस्तुतः एक विरोधाभास पर निर्भर हो गयी है, क्योंकि भारतीय प्रवासियों के अधिकारों को बढ़ावा देने से संबंधित प्रयासों को उत्प्रवासन प्रवाह (emigration flows) में बाधक नहीं होना चाहिए।

भारत को प्रवासी समुदायों के साथ संलग्नता का पूर्ण लाभ उठाने और इन साझेदारियों को लाभ में परिवर्तित करने के तरीके खोजने हेतु, निम्नलिखित विकल्पों पर विचार करना चाहिए:

  • अमेरिका द्वारा स्थापित वेटरन्स एडमिनिस्ट्रेशन के समान ही भारत में भी NRI प्रशासन हेतु एक पृथक राज्य मंत्री स्तरीय विभाग की स्थापना की जा सकती है।
  • एक रोटेशन कार्यक्रम का निर्माण किया जाना चाहिए जिसमें NRI समूह के शीर्ष वैज्ञानिक, इंजीनियर, डॉक्टर, प्रबंधक और पेशेवरों को भारतीय सार्वजनिक क्षेत्र के संगठनों में लघु अवधि के लिए नियोजित किया जाए और ‘वज्र योजना’ के समान उनकी विशेषज्ञता का उपयोग किया जाए।
  • भारत को जमाओं पर आकर्षक ब्याज दरों की पेशकश कर NRIs को भारत में निवेश (विशेषकर उन परियोजनाओं में जो ग्रामीण विकास पर केंद्रित हैं) करने हेतु सशक्त रूप से आकर्षित करना चाहिए।
  • विशेषकर मध्य-पूर्व से लौटने वाले श्रमिकों हेतु पुनर्वास केंद्रों की व्यवस्था की जानी चाहिए।
  • विदेश यात्राओं के दौरान, राज्य/सरकार के प्रमुख को प्रवासी समुदायों के साथ संपर्क तथा संलग्नता को बढ़ाने का प्रयास करना चाहिए।

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