भारत की शास्त्रीय और लोक नृत्य शैलियां

प्रश्न: भारत की कुछ शास्त्रीय और लोक नृत्य शैलियां मार्शल आर्ट्स और मंदिर अनुष्ठानों का एक अनूठा मिश्रण हैं। स्पष्ट कीजिए।

दृष्टिकोण

  • प्रस्तावना में, उन विविध एवं विभिन्न कारकों का संक्षिप्त उल्लेख कीजिए जो एक नृत्य रूप को प्रभावित करते हैं।
  • उदाहरण देते हुए बताइए कि किस प्रकार कुछ नृत्य रूप मार्शल आर्ट्स का अत्यधिक अनुकरण करते हैं।
  • यह भी वर्णन कीजिए कि वे किस प्रकार मंदिर अनुष्ठानों का मिश्रण हैं।

उत्तर

भारत में अधिकांश नृत्य रूपों, शास्त्रीय और लोक दोनों प्रकार के, का उन्म ईश्वर के प्रति आध्यात्मिक भक्ति से हुआ है। ये नृत्य दैनिक जीवन के आनंद, ऋतु प्रस्थान और आगमन, कृषि की मुख्य गतिविधियों या चरणों, धार्मिक त्योहारों, जन्म, विवाह, प्रकृति और ईश्वर की भक्ति का उल्लास मनाने का प्रयास हैं। कुछ जनजातियों और समुदायों के लिए ये मार्शल आर्ट्स परम्पराओं की अभिव्यक्ति भी हैं।

सम्पूर्ण देश में मार्शल आर्ट के अनेक रूपों को अर्द्ध नृत्य रूपों में रूपांतरित/शैलीबद्ध कर दिया गया है। इस प्रकार के लोक नृत्यों में सर्वाधिक उल्लेखनीय हैं – उत्तर-पूर्वी जनजातियों के मार्शल आर्ट नृत्य, केरल के कलारीपयत्तू और कथकली, महाराष्ट्र के लाज़ीम नृत्य तथा उड़ीसा, पश्चिम बंगाल और बिहार के अत्यधिक शैलीबद्ध तथा मुखौटा पहन कर किये जाने वाले छऊ नृत्य। इन लोक नृत्यों की गतियों का उद्भव पारंपरिक मार्शल आर्ट शैलियों से हुआ और समय के साथ इन नृत्यों ने स्वयं को परिष्कृत किया है।

मंदिर परंपराओं पर शास्त्रीय और लोक नृत्यों का प्रभाव विभिन्न उदाहरणों में देखा जा सकता है जैसे चिदंबरम मंदिर के गोपुरम पर भरतनाट्यम की मुद्राओं का निरूपण, ब्रज क्षेत्र में रासलीला आदि। इसके अतिरिक्त, कुछ नृत्य रूपों को मंदिरों के पवित्र परिसर में एक उद्देश्य के साथ पोषित किया गया था। मंदिर नृत्य की परंपरा, कला को लोगों तक पहुंचाने और जनसामान्य को संदेश देने के विचार से प्रेरित थी। संभवतः भारतीय शास्त्रीय नृत्य की आरंभिक कलाकारों अर्थात देवदासियों के उदय का कारण यही था।

कुछ नृत्यों में मंदिर अनुष्ठानों और मार्शल आर्ट्स के सशक्त मिश्रण को भी देखा जा सकता है जैसे कि:

  • कथकली शास्त्रीय नृत्य पर केरल की अनुष्ठानिक प्रदर्शन कलाओं (उदाहरण: कृष्णाअट्टम, रामाअट्टम इत्यादि) का प्रभाव। साथ ही, यह कलारीपयत्तू मार्शल आर्ट परंपराओं से काफी हद तक प्रेरित है। शरीर की गतियों और नृत्य प्रतिरूपों के लिए कथकली केरल की प्रारंभिक मार्शल आर्ट्स का ऋणी है।
  • छऊ नृत्य में, महाभारत व रामायण जैसे महाकाव्यों की घटनाएँ, पौराणिक कथाएँ, पारंपरिक लोककथाओं के अंश तथा स्थानीय किंवदंतियाँ नृत्य का विषय होते हैं। केरल के मडियेटू का प्रदर्शन आज भी देवी काली के मंदिरों में किया जाता है। इसमें बुराई पर अच्छाई की जीत को दर्शाया जाता है।
  • मणिपुरी नृत्य मार्शल आर्ट ‘थांग ता’ से जुड़ा हुआ है। इसके अतिरिक्त, यह नृत्य पहले माईबाओं और माइबियों (पुजारियों और पुजारिनों) द्वारा किया जाता था जो सृष्टि के निर्माण को नृत्य के माध्यम से प्रदर्शित करते थे।
  • वेलाकली केरल का एक अनुष्ठानिक नृत्य है। यह एक मंदिर कला है जिसे उत्सवों के समय मंदिर के प्रांगणों में प्रस्तुत किया जाता है। इसके अतिरिक्त, एक मार्शल लोक कला के रूप में भी यह केरल के सर्वाधिक भव्य एवं ओजपूर्ण नृत्यों में से एक है।

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