भारत की पुलिस सेवाओं में सुधार से संबंधित अनुशंसा : प्रकाश सिंह वाद में सर्वोच्च न्यायालय द्वारा दिए गए निर्देशों का उद्देश्य
प्रश्न: प्रकाश सिंह वाद में सर्वोच्च न्यायालय द्वारा दिए गए निर्देशों का उद्देश्य भारत में पुलिस सेवाओं में सुधार लाना था। टिप्पणी कीजिए। इन सुधारों के कार्यान्वयन के मार्ग में प्रमुख बाधाएं क्या रही हैं?
दृष्टिकोण
- अपने उत्तर की शुरुआत प्रकाश सिंह वाद के विषय में संक्षिप्त जानकारी देते हुए कीजिए।
- इस वाद में दी गई भारत की पुलिस सेवाओं में सुधार से संबंधित अनुशंसाओ के विषय में लिखिए।
- आगे, इन अनुशंसाओ के कार्यान्वयन में बाधक प्रमुख मुद्दों की चर्चा कीजिए।
उत्तर
प्रकाश सिंह बनाम भारत संघ वाद (2006) में सर्वोच्च न्यायालय द्वारा पुलिस प्रणाली में विद्यमान विभिन्न मुद्दों जैसे नियुक्तियों और चयन में पारदर्शिता का अभाव, प्रभावहीनता व अस्पष्टता आदि के आलोक में कुछ निर्देश जारी किए गये। न्यायालय के निर्देश दो प्रमुख उद्देश्यों की प्राप्ति से संबंधित हैं:
पुलिस के लिए कार्यात्मक स्वायत्तता।
इन निर्देशों में शामिल हैं:
- राज्य सुरक्षा आयोग का गठन
- राजनीतिक हस्तक्षेप को सीमित करना।
- विस्तृत दिशा-निर्देशों का निर्धारण।
- राज्य पुलिस के कार्य-निष्पादन का मूल्यांकन
- योग्यता के आधार पर नियुक्तियां: पुलिस महानिदेशक की नियुक्ति योग्यता के आधार पर एवं पारदर्शी प्रक्रिया के माध्यम से होनी चाहिए।
- नियत न्यूनतम कार्यकाल: ताकि परिचालनात्मक कार्यों (ऑपरेशनल ड्यूटी) में नियोजित पुलिस अधिकारियों के लिए दो वर्ष का न्यूनतम कार्यकाल सुनिश्चित किया जा सके।
- पुलिस इस्टैब्लिशमेंट बोर्ड (Police Establishment Board) का गठन: यह बोर्ड DSP ब उससे नीचे की रैंक के अधिकारियों के सभी स्थानांतरणों (ट्रांसफर), पदस्थापनाओं (पोस्टिंग), प्रोन्नतियों (प्रमोशन) तथा उनकी सेवा संबंधी अन्य मामलों के संदर्भ में निर्णय लेगा और DSP रैंक से ऊपर के अधिकारियों की पदस्थापना व स्थानान्तरण के मामलों में अनुशंसा करेगा।
- केंद्रीय पुलिस संगठनों (CPOs) के प्रमुखों के चयन व पदस्थापना हेतु एक पैनल तैयार करने के लिए राष्ट्रीय सुरक्षा आयोग, जिसका कार्यकाल भी न्यूनतम दो वर्षों का होना चाहिए।
पुलिस के उत्तरदायित्व में वृद्धि।
इन निर्देशों में शामिल है:
- पुलिस शिकायत प्राधिकरण: पुलिस के विरुद्ध शिकायतों से निपटने के लिए जिला और राज्य स्तरीय पुलिस शिकायत प्राधिकरण की स्थापना।
- पुलिस कार्यों का पृथक्करण: जाँच कार्यों को कानून व्यवस्था बनाए रखने के कार्य से पृथक करना।
इन निर्देशों का उद्देश्य पुलिस की भूमिका और कार्यों को पुन: परिभाषित करना और नए पुलिस अधिनियम (Act) का निर्माण करना है जिसके माध्यम से जनसामान्य और देश के कानून के प्रति पुलिस का अनिवार्य और प्राथमिक उत्तरदायित्व सुनिश्चित किया जा सके।
हालांकि, इन निर्देशों के कार्यान्वयन के मामले में विभिन्न राज्यों में व्यापक अंतर दिखता है। कार्यान्वयन के मार्ग में प्रमुख बाधाएं निम्नलिखित हैं:
- पुलिस राज्य सूची का विषय है: बाध्यकारी शक्तियों के साथ राज्य सुरक्षा आयोग की स्थापना से राज्य पुलिस पर संवैधानिक रूप से स्थापित राज्य सरकार के नियंत्रण के कम होने की संभावना बनेगी।
- दो वर्ष का नियत कार्यकाल अन्य योग्य वरिष्ठ अधिकारियों के अवसरों को अवरुद्ध करेगा; यह प्रशासनिक आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए पुलिस अधिकारियों को स्थानांतरित करने के सरकार के अधिकार का भी हनन करेगा।
- पुलिस इस्टैब्लिशमेंट बोर्ड (Police Establishment Board) शक्ति के एक पृथक केंद्र को जन्म दे सकता है, जिसमें ऐसे नौकरशाह शामिल होंगे, जो लोगों के प्रति जवाबदेह नहीं है।
- शिकायत प्राधिकरण मौजूदा प्रयासों (NHRC, CVC जैसे विद्यमान निकायों के कारण) में दोहराव उत्पन्न करेंगे तथा ये एक प्रकार का वित्तीय बोझ होंगे।
- राजनीतिक इच्छाशक्ति का अभाव।
- जन जागरूकता का अभाव: पुलिस सुधार आम जनता के लिए प्रायः अनाकर्षक रहे हैं।
- पर्याप्त संसाधनों का अभाव: जैसे कम बजट आवंटन।
पुलिस सुधार का मूल उद्देश्य देश के कानून के निष्पक्ष एजेंट के रूप में ईमानदारी और कुशलता से कार्य करने हेतु पुलिस की पेशेवर स्वतन्त्रता सुनिश्चित करना है। इसके साथ ही इसका उद्देश्य, कानून का अनुपालन सुनिश्चित करने के संबंध में पुलिस के कार्य-निष्पादन का निरीक्षण करने के लिए सरकार को सक्षम बनाना है।
एक जीवंत लोकतंत्र के लिए पुलिस सुधारों की व्यापक स्तर पर मांग की जा रही है। इस संबंध में सामान्य जनता को संवेदनशील बनाने के साथ-साथ विश्व में प्रचलित सर्वोतम पुलिस प्रथाओं का अनुकरण करने की आवश्यकता है।
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