भारत के लिए वैश्वीकरण और मुक्त व्यापार के महत्व पर चर्चा
प्रश्न: समृद्ध राष्ट्रों में वैश्वीकरण के खिलाफ राजनीतिक प्रतिक्रिया का भारत की आर्थिक संभावनाओं पर बड़ा प्रभाव पड़ सकता है। बढ़ते संरक्षणवाद और व्यापार युद्ध के उभरते खतरे का भारत पर पड़ने वाले संभावित प्रभावों की पहचान कीजिए।
दृष्टिकोण
- विकसित देशों में वैश्वीकरण के विरुद्ध हाल ही में हुई राजनीतिक प्रतिक्रियाओं एवं इसके कारणों की संक्षिप्त चर्चा कीजिए।
- बढ़ते संरक्षणवाद और व्यापार युद्ध के उभरते खतरे के भारत के लिये क्या निहितार्थ हैं; विश्लेषण कीजिए।
- भारत के लिए वैश्वीकरण और मुक्त व्यापार के महत्व पर चर्चा कीजिए।
- इस प्रभाव को रोकने और कम करने के लिए रणनीतियाँ सुझाइए।
उत्तर
कुछ वर्षों पूर्व तक वैश्वीकरण को कई लोगों द्वारा अवश्यम्भावी एवं अजेय बल के रूप में देखा जाता था परन्तु निम्नलिखित घटनाओं की श्रृंखला से आर्थिक वैश्वीकरण के भविष्य पर प्रश्नचिह्न लग गया है:
- अमेरिका का ट्रांस-पैसिफ़िक साझेदारी से बाहर निकलना
- संयुक्त राज्य अमेरिका और चीन के मध्य व्यापार युद्ध संबंधी खतरे
- ब्रेक्ज़िट (Brexit)
- WTO के विरुद्ध लामबंदी
- विकसित देशों द्वारा कार्य और अध्ययन के वीज़ा पर प्रतिबंध
- संयुक्त राज्य अमेरिका द्वारा इस्पात और एल्यूमीनियम पर आयात शुल्क में वृद्धि
IMF की वर्ल्ड इकोनॉमिक आउटलुक रिपोर्ट, 2016 के अनुसार 2012 से व्यापार में प्रतिवर्ष 3% की वृद्धि हो रही थी जो विगत तीन दशकों के औसत के आधे से भी कम थी।
संरक्षणवाद का प्रभाव:
- श्रम गतिशीलता पर प्रतिबंध
- नियंत्रित वीजा कार्यक्रमों का भारत के आईटी क्षेत्र पर नकारात्मक प्रभाव
- आउटसोर्सिंग व्यवसाय पर प्रतिबंध
- विकसित देशों में शिक्षा एवं रोज़गार के कम अवसर
- प्रौद्योगिकी के हस्तांतरण की उच्च लागत
- भारतीय निर्यात में कमी
- पश्चिम देशों के दबाव के कारण, भारत को अपनी सब्सिडी व्यवस्था में कटौती करनी होगी, जिसके परिणामस्वरूप निर्यात और लाभ में कमी आएगी, पूंजी का बहिर्प्रवाह होगा तथा मांग नकारात्मक रूप से प्रभावित होगी।
भारतीय बाजार पर अमेरिकी-चीन व्यापार युद्ध का प्रभाव:
- व्यापार के परिप्रेक्ष्य से, इसके भारत जैसे देशों के लिए सकारात्मक परिणाम हो सकते हैं, क्योंकि इससे भारत को ऐसे बाजारों में कार्य करने में सहायता मिलेगी जो चीन के लिए व्यवहार्य नहीं है। लेकिन दीर्घावधि में, एक पूर्ण व्यापार युद्ध हानिकारक है। इसका परिणाम सदैव उच्च मुद्रास्फीति और निम्न विकास के परिदृश्य के रूप में प्राप्त होता है।
- आर्थिक सर्वेक्षण 2016-17 के अनुसार, भारत की 8-10 प्रतिशत की महत्वाकांक्षी वृद्धि दर के लिए 15-20 प्रतिशत निर्यात वृद्धि की आवश्यकता है। भारत के व्यापारिक साझेदारों द्वारा खुलेपन (व्यापार में) से किसी भी प्रकार की गंभीर वापसी से इन महत्वाकांक्षाओं के लिए जोखिम उत्पन्न हो जाएगा।
प्रभाव को रोकने और कम करने के लिए रणनीतियां:
- घरेलू सुभेद्यताएँ: अनिश्चित बने हुए वैश्विक नीतियों के मिश्रण के प्रति प्रत्यास्थता सुनिश्चित करने के लिए नीति निर्माताओं द्वारा कॉर्पोरेट और बैंकों को सम्बोधित करना जारी रखना चाहिए।
- राजकोषीय समेकन: 2022-23 तक राजकोषीय उत्तरदायित्व ढांचे (FRF) को सुदृढ़ करना। इसमें 60% के एक ऋणGDP अनुपात की युक्ति के माध्यम से राजकोषीय समायोजन का सहारा लेना भी शामिल है। इससे भारत की राजकोषीय स्थिति सुदृढ़ होगी। __
- समान विचारों वाले देशों के साथ सहयोग: भारत को चीन और अन्य विकासशील देशों के साथ संरक्षणवाद के विरुद्ध एकजुट होना चाहिए और न्यायसंगत एवं निष्पक्ष व्यापार व्यवस्था को बढ़ावा देने के लिए WTO मंच का उपयोग करना चाहिए।
भारत को वैश्वीकरण के खिलाफ राजनीतिक प्रतिक्रियाओं के साथ-साथ व्यापार युद्ध के खतरों के विकास पर भी नजर रखनी होगी, क्योंकि ये दोनों घरेलू अर्थव्यवस्था को प्रभावित करते हैं।
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