भारत का खाद्यान्न : भारत द्वारा भूख से निपटने हेतु उठाए गए कदमों का आकलन

प्रश्न: भारत अपने लोगों के लिए पर्याप्त खाद्यान्न उत्पादित करता है, फिर भी सभी लोगों को खाने के लिए पर्याप्त भोजन नहीं मिलता है। इस विरोधाभास की चर्चा करते हुए, इस संबंध में विगत कुछ वर्षों में उठाए गए कुछ प्रमुख कदमों पर प्रकाश डालिए। (150 शब्द)

दृष्टिकोण

  • दिए गए कथन की तथ्यों एवं आंकड़ों के साथ संक्षिप्त में व्याख्या कीजिए।
  • भारत द्वारा भूख से निपटने हेतु उठाए गए कदमों का आकलन कीजिए। उपयुक्त निष्कर्ष दीजिए।

उत्तर

2016-2017 में भारत का खाद्यान्न उत्पादन रिकॉर्ड 273.3 मिलियन टन था और विश्व आर्थिक मंच के अनुसार भारत को अपनी जनसंख्या की खाद्य संबंधी आवश्यकताओं की पूर्ति हेतु प्रति वर्ष लगभग 230 मिलियन टन भोजन की आवश्यकता होती है। भारत विश्व में सब्जियों और फलों के सबसे बड़े उत्पादक देशों में से एक है। इससे यह पता चलता है कि भारत में अधिशेष खाद्यान्न की उपलब्धता है। हालांकि, खाद्य एवं कृषि संगठन (FAO) की ‘द स्टेट ऑफ़ फूड सिक्योरिटी एंड न्यूट्रिशन इन द वर्ल्ड (2017)’ रिपोर्ट के अनुसार, विश्व के अल्पपोषित/भूख से ग्रस्त लोगों (190.7 मिलियन या कुल जनसंख्या का 14.5%) की सर्वाधिक संख्या (एक चौथाई) भारत में है।

ग्लोबल हंगर इंडेक्स (GHI) 2017 में, भारत को 119 देशों में 100वां स्थान प्राप्त हुआ है और यह भूख की “गंभीर” समस्या का सामना कर रहा है। पांच वर्ष से कम उम्र के 38% भारतीय बच्चे ठिगनेपन (stunted) तथा प्रजनन आयु की 51.4% भारतीय महिलाएं एनीमिया से ग्रसित हैं। इसके अतिरिक्त विटामिन तथा खनिज की कमी, जिसे प्रायः “प्रच्छन्न भूख (hidden hunge)” कहा जाता है, के कारण अल्पपोषण में वृद्धि होती है।

विरोधाभास यहीं समाप्त नहीं होता है। यह विडम्बना है कि भारत में भोजन का अधिकार (Right to Food) एक कानूनी अधिकार है, परंतु फिर भी भूख एवं कुपोषण के कारण लोगों की मृत्यु हो रही है। इस परिदृश्य के कारणों में शामिल हैं: 

  • भंडारण अवसंरचना का अभाव: इसके परिणामस्वरूप खाद्यान्न के सड़ जाने के कारण काफी क्षति होती है। उदाहरण के लिए , 2011-12 से 2016-17 के मध्य भारतीय खाद्य निगम (FCI) के गोदामों में 61,824 टन खाद्यान्न बर्बाद हो गया।
  • सार्वजनिक वितरण प्रणाली (PDS) जैसी सरकारी योजनाओं में लीकेज तथा भ्रष्टाचार।
  • लोगों में संतुलित आहार, स्वास्थ्य और स्वच्छता के साथ-साथ सरकारी योजनाओं/संसाधनों तथा सेवाओं के तहत प्रदत्त अधिकारों के बारे में जागरुकता का निम्न स्तर।
  • विभिन्न पहलों की प्रगति को ट्रैक करने के लिए रियल-टाइम डाटा और विश्वसनीय सूचना का अभाव।
  • गरीबी, सामाजिक और लैंगिक अन्याय एवं असमानताएँ।
  • इस परिदृश्य को सुधारने हेतु फंड तथा राजनीतिक इच्छाशक्ति की कमी।

हालांकि,  सरकार द्वारा भूख एवं भुखमरी से निपटने हेतु कई पहले आरंभ की गई हैं। इनमें शामिल हैं:

  •  राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम, 2013 सार्वजनिक वितरण प्रणाली के माध्यम से दो-तिहाई भारतीय जनसंख्या को वैधानिक अधिकार प्रदान करता है।
  • सभी सुभेद्य समूहों (0-6 वर्ष की आयु के बच्चों, स्कूल नहीं जाने वाली किशोरी बालिकाओं, माताओं, गर्भवती महिलाओं) को कवर करने के लिए समेकित बाल विकास सेवाएं (ICDS)।
  • 6-14 वर्ष की आयु के बच्चों को भोजन प्रदान करने के लिए मिड-डे मील योजना (MDM)।
  • राष्ट्रीय पोषण मिशन (पोषण अभियान)।
  • आयरन की कमी को समाप्त करने के लिए राष्ट्रीय आयरन+ पहल, 2013।
  • पोषण पुनर्वास केंद्रों तथा ग्रामीण स्वास्थ्य स्वच्छता और पोषण समितियों की स्थापना।
  • भारतीय खाद्य सुरक्षा और मानक प्राधिकरण (FSSAI) द्वारा पांच स्टेपल खाद्य पदार्थों (चावल, गेहूं का आटा, तेल, दूध एवं नमक) के लिए फोर्टिफिकेशन मानकों का निर्धारण।

इस प्रकार की कई पहलों के बावजूद, ग्लोबल हंगर इंडेक्स (GHI) में भारत को उप-सहारा अफ्रीकी देशों के साथ रखा गया है। UN कमिटी ऑन इकोनॉमिक, सोशल एंड कल्चरल राइट्स (CESCR) के अनुसार, “मौलिक रूप से भूख एवं कुपोषण की समस्या का मूल कारण भोजन की कमी नहीं, बल्कि उपलब्ध भोजन तक पहुंच का अभाव है।”

अतः खाद्य प्रचुरता प्राप्त करना ही पर्याप्त नहीं है, बल्कि आवश्यक यह है कि एक सतत भविष्य के निर्माण हेतु पौष्टिक भोजन तक सभी की पहुंच को सुनिश्चित किया जाए।

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