भारत की जलवायु नीति के विकास का विश्लेषण 

प्रश्न: भारत द्वारा ग्लोबल कॉमन्स के प्रबंधन में वृहत्तर दायित्व ग्रहण करने के परिप्रेक्ष्य में, भारत के जलवायु परिवर्तन संबंधित वार्ता दृष्टिकोण में परिवर्तन आया है। इस संदर्भ में, भारत की जलवायु नीति के विकास का विश्लेषण कीजिए। (150 शब्द)

दृष्टिकोण

  • जलवायु परिवर्तन वार्ताओं पर भारत के अधिक ध्यान केन्द्रित करने पर प्रकाश डालते हुए उत्तर का प्रारंभ कीजिए।
  • 1970 में आयोजित सम्मेलन से हाल ही में संपन्न पेरिस जलवायु बैठक तक भारत की जलवायु नीति के विकास का विश्लेषण कीजिए।
  • भारत की जलवायु नीति में आए परिवर्तन के कारणों का संक्षिप्त वर्णन करते हुए निष्कर्ष दीजिए।

उत्तर

भारत द्वारा ग्लोबल कॉमन्स जैसे समुद्र, वायु, अंतरिक्ष, साइबर स्पेस इत्यादि के प्रबंधन में सक्रिय रूप से अपनी चिंताओं को प्रकट करते हुए वृहत्तर जिम्मेदारी ग्रहण की गयी है। इन चिंताओं में समुद्री क्षेत्र को सभी के लिए खोलना, वैश्विक कॉमन्स जैसे अंटार्कटिका, समुद्र तली और बाह्य अंतरिक्ष इत्यादि में हथियारों के परिनियोजन के विरुद्ध व्यापक प्रतिबंध का दृढ़तापूर्वक समर्थन, आदि सम्मिलित हैं।

वैश्विक जलवायु राजनीति के संदर्भ में भी, भारत ने वैश्विक पर्यावरणीय नीति के विरोध के एक सीमान्त स्वर होने से लेकर वैश्विक पर्यावरणीय प्रयासों को आकार प्रदान करने वाले सक्रिय अभिकर्ता बनने तक की प्रगति की है। यह पेरिस जलवायु सम्मेलन के एक भाग के रूप में अभीष्ट राष्ट्रीय निर्धारित योगदान (INDC) लक्ष्यों के प्रति भारत की वृहत्तर प्रतिबद्धता के माध्यम से रेखांकित किया जा सकता है।

यह भारत की जलवायु नीति के विकास से भी स्पष्ट है

  • यूनाइटेड नेशंस कॉन्फ्रेंस ऑन द ह्यूमन एनवायरनमेंट, 1972: पूर्व में भारत का ध्यान पर्यावरण संरक्षण के विपरीत सामाजिक-आर्थिक विकास पर अधिक केन्द्रित था। इसके द्वारा वैश्विक पर्यावरण समस्याओं के लिए विकसित देशों को जिम्मेदार ठहराया जाता था।
  • 1992 में संपन्न यूनाइटेड नेशंस फ्रेमवर्क कन्वेंशन ऑन क्लाइमेट चेंज (UNFCCC) समझौता वार्ता: विकासशील देशों के समूह के साथ भारत ने विकसित देशों से जलवायु परिवर्तन पर कार्यवाही करने हेतु आग्रह किया जबकि विकासशील राष्ट्रों के लिए यह तर्क रखा कि उन्हें केवल स्वैच्छिक प्रतिबद्धताओं के रूप में कार्यवाही करनी चाहिए। इस सम्मेलन में साझे किन्तु विभेदित उत्तरदायित्व (CBDR) की अवधारणा को रेखांकित किया गया। क्योटो प्रोटोकॉल वार्ता के दौरान भी इसी उद्देश्य को चिह्नित किया गया।
  • 2007 में बाली में आयोजित COP-13: भारत ने अपनी जलवायु नीति को परिवर्तित कर दिया और स्वीकार किया कि विकासशील देशों को कम से कम स्वैच्छिक आधार पर वैश्विक शमन प्रयासों में भागीदारी करनी चाहिए।
  • 2013 में वारसॉ में COP-19: इस सम्मलेन में पहली बार INDCs के विचार को प्रस्तुत किया गया और इसमें योगदान देने के लिए सभी सहमत हुए। इसमें विकसित और विकासशील देशों के मध्य के विभेद को पीछे छोड़ दिया गया।
  • पेरिस वार्ता: भारत ने जलवायु नीति के लिए 1.5 डिग्री लक्ष्य को स्वीकार किया। भारत ने इसे लागू करने में सहयोग के लिए पेरिस समझौते की त्वरित संपुष्टि भी की।

इस प्रकार, 1990 के दशक में भारत के दृष्टिकोण में, विकसित और विकासशील देशों के मध्य सख्त विभेद के पक्ष में तर्क से लेकर एक उदार रूप से विभेदित व्यवस्था संबंधी वार्ता के पक्ष में परिवर्तन, पर्यावरण संबंधी ग्लोबल कॉमन्स में भारत की बढ़ती भूमिका को दर्शाता है। वस्तुतः आरंभिक रूप से भारत सरकार का लक्ष्य भारत की संप्रभुता की रक्षा करना था किन्तु वृहत्तर विकास के साथ, भारत जलवायु समझौतों सहित विदेश नीति में व्यावहारिक दृष्टिकोण अपना रहा है।

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