भारत में राजनीतिक शक्ति के रूप में ईस्ट इंडिया कंपनी (EIC) के उदय की संक्षिप्त पृष्ठभूमि
प्रश्न: एक राजनैतिक शक्ति के रूप में ईस्ट इंडिया कंपनी काफी लंबे समय से मृत थी, 1858 के अधिनियम ने बस इसका शिष्टतापूर्वक अंतिम संस्कार किया। विश्लेषण कीजिए। (150शब्द)
दृष्टिकोण
- भारत में राजनीतिक शक्ति के रूप में ईस्ट इंडिया कंपनी (EIC) के उदय की संक्षिप्त पृष्ठभूमि बताइए।
- पिट्स इंडिया एक्ट, 1784, तथा 1813, 1833 और 1853 के चार्टर अधिनियमों के वैसे प्रावधानों का उल्लेख कीजिए जिनके माध्यम से भारतीय साम्राज्य पर कंपनी के स्वतंत्र नियंत्रण की शक्ति को कम किया गया था।
- यह वर्णन करते हुए उत्तर समाप्त कीजिए कि 1857 के विद्रोह के पश्चात्, 1858 के अधिनियम के माध्यम से ब्रिटिश क्राउन को सत्ता का हस्तांतरण किस प्रकार किया गया।
उत्तर
1600 में लंदन के व्यापारियों को ईस्ट इंडीज में व्यापार करने हेतु चार्टर प्रदान किया गया, इसके पश्चात ईस्ट इंडिया कंपनी (EIC) ने भारत में एक वाणिज्यिक इकाई के रूप में कार्य करना प्रारंभ किया। तत्पश्चात, प्लासी के युद्ध (1757) तथा बक्सर के युद्ध (1764) ने EIC को बंगाल में एक राजनीतिक शक्ति के रूप में स्थापित कर दिया, क्योंकि इनके माध्यम से EIC को मुगल सम्राट शाहआलम द्वितीय से बंगाल के दीवानी अधिकार प्राप्त हुए। EIC और उसके अधिकारियों की बढ़ती संपत्ति एवं प्रभाव के कारण ब्रिटिश संसद ने चार्टर अधिनियमों के माध्यम से निरंतर हस्तक्षेप किया, प्रत्येक अधिनियम भारत पर कंपनी के अनन्य राजनीतिक नियंत्रण को उल्लेखनीय रूप से कम करता गया। इसे निम्नलिखित बिन्दुओं के तहत देखा जा सकता है:
- 1773 के रेगुलेटिंग एक्ट द्वारा EIC के राजनीतिक और प्रशासनिक कार्य को औपचारिक रूप से मान्यता प्रदान करते हुए ब्रिटिश संसद को भारतीय मामलों पर नियंत्रण करने का अधिकार दिया गया, क्योंकि निदेशक मंडल (कोर्ट ऑफ़ डायरेक्टर: CoD) को राजस्व, नागरिक और सैन्य मामलों संबंधी समस्त पत्र-व्यवहार ब्रिटिश संसद के समक्ष प्रस्तुत करना पड़ता था।
- पिट्स इंडिया एक्ट, 1784 के माध्यम से ब्रिटिश वित्त मंत्री के अधीन बोर्ड ऑफ कंट्रोल (नियंत्रण बोर्ड) के पर्यवेक्षण में, वाणिज्यिक मामलों के संबंध में कोर्ट ऑफ डायरेक्टर्स की भूमिका को सीमित करते हुए कंपनी के क्षेत्रों को ‘भारत में ब्रिटिश अधिकृत क्षेत्र’ के रूप में मान्यता प्रदान की गई।
- ब्रिटिश पूंजीपतियों की भारत के व्यापार में भागीदारी की आकांक्षा के कारण, उनके द्वारा की गयी सफल लॉबिंग के पश्चात् 1813 के चार्टर अधिनियम के तहत भारत पर EIC के व्यापारिक एकाधिकार (चाय और चीन के साथ व्यापारिक अधिकार को छोड़कर) को समाप्त कर दिया गया। इसके अतिरिक्त, ईसाई मिशनरियों को ब्रिटेन में घरेलू दबाव के कारण भारत में धर्म प्रचार की अनुमति प्रदान की गई।
- 1833 के चार्टर अधिनियम के द्वारा EIC के व्यापारिक एकाधिकार को पूर्णतः समाप्त कर दिया गया। इसके बाद EIC पूर्ण रूप से एक प्रशासनिक निकाय बन गयी। यूरोपीय अप्रवासन और संपत्ति अधिग्रहण संबंधी सभी प्रतिबंध समाप्त कर दिए गए, जिसने भारत में EIC के अनन्य प्रभाव को और भी कम कर दिया।
- 1853 के चार्टर अधिनियम द्वारा अगले 20 वर्षों के लिए कंपनी के शासन का विस्तार नहीं किया गया। इस प्रकार का विस्तार पूर्ववर्ती चार्टरों में एक स्थापित नियम था। खुली प्रतियोगिता प्रणाली के आधार पर ICS अधिकारियों की नियुक्ति के प्रावधान के कारण कोर्ट ऑफ डायरेक्टर को इन अधिकारियों की नियुक्ति संबंधी शक्तियों से भी वंचित होना पड़ा।
1857 का विद्रोह महारानी विक्टोरिया की घोषणा के साथ समाप्त हो गया। इस घोषणा ने कंपनी के पूर्व की नीतियों से स्वयं को पृथक रखा। संसद ने भारत के शासन को अधिक बेहतर बनाने के लिए, भारत सरकार अधिनियम, 1858 पारित किया जिसके द्वारा EIC के अप्रत्यक्ष शासन को प्रभावी रूप से समाप्त कर दिया गया तथा भारत पर ब्रिटिश क्राउन का शासन स्थापित किया गया।
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