1962 का भारत-चीन युद्ध
प्रश्न: 1962 का भारत-चीन युद्ध तात्कालिक और साथ ही दीर्घकालिक कारकों का परिणाम था। व्याख्या कीजिये। साथ ही इस युद्ध के महत्त्वपूर्ण परिणामों का परीक्षण कीजिए।
दृष्टिकोण:
- उन कारकों को बताइये जिनकी परिणति 1962 के युद्ध के रूप में हुई।
- युद्ध के महत्वपूर्ण परिणामों का उल्लेख कीजिए।
- युद्ध के बाद भारत ने अपनी सैन्य और विदेशी रणनीति को किस प्रकार परिवर्तित किया, इसका उल्लेख कीजिये। 15
उत्तरः
1962 का भारत-चीन युद्ध कुछ दीर्घकाल से लंबित और कुछ तात्कालिक कारकों का परिणाम था जिसके चलते चीन द्वारा भारत पर आक्रमण किया गया।
दीर्घकालिक कारक:
- अक्साई चिन और अरुणाचल प्रदेश के सीमावर्ती क्षेत्रों की संप्रभुता पर सीमा विवाद। चीन द्वारा भारत और तिब्बत के मध्य सीमारेखा को परिभाषित करने वाली मैकमोहन लाइन (1914) को स्वीकार नहीं किया गया। चीन ने दावा किया कि वह शिमला कन्वेंशन, जहाँ यह सीमा चिह्नित की गयी, में पक्षकार नहीं था।
- गुटनिरपेक्ष आन्दोलन (NAM) और पंचशील के माध्यम से भारत की नेतृत्वकारी भूमिका ने विशेष रूप से अफ्रीकी एशियाई राष्ट्रों के मध्य इसे अंतरराष्ट्रीय प्रतिष्ठा प्रदान की, जबकि चीन समान प्रभाव बनाने में असफल रहा।
- सैन्य विकास के विपरीत भारत ने आर्थिक विकास पर अधिक ध्यान दिया। नेहरू को विश्वास था कि चीन दोनों देशों के बीच कथित दोस्ती के कारण भारत पर आक्रमण नहीं करेगा।
तात्कालिक कारक:
- 1950 में तिब्बत पर कब्जे का भारत ने विरोध किया, जिसने चीन को उकसाया।
- दलाई लामा और उनके अनुयायियों के तिब्बत से पलायन के बाद भारत में उनका स्वागत किया गया, जिससे दोनों देशों के मध्य तनाव बढ़ गया।
- चीन की सैन्य आपूर्ति को रोकने के लिए और विवादित क्षेत्रों से उन्हें वापसी हेतु विवश करने के लिए, भारत ने फॉरवर्ड पॉलिसी के तहत लद्दाख और अक्साई चिन में चीनी सीमावर्ती चौकियों के पीछे अपनी सीमा चौकियां बनाईं। इससे चीन में आक्रोश बढ़ा।
- उसी समय, भारत ने पाकिस्तान की सीमा पर अधिक सैनिकों की तैनाती की, जिससे चीन को रणनीतिक बढ़त मिल गयी। 1962 में भारत और चीन के बीच कई संघर्ष और सैन्य झड़पें हुईं, जैसे- थागला रिज, गॉलवान घाटी। इसके साथ ही चीन द्वारा अक्साई चिन में एक सैन्य सड़क का निर्माण भी प्रारंभ किया गया।
युद्ध के महत्वपूर्ण परिणाम:
- 1962 का युद्ध चीन की निर्णायक जीत के साथ समाप्त हुआ और भारत ने अक्साई चिन क्षेत्र पर नियंत्रण खो दिया।
- भारत ने सैन्य शक्ति और सैन्य अनुसंधान में निवेश को सशक्त करने की आवश्यकता का अनुभव किया।
- ITBP की स्थापना की गयी तथा सीमा पर अवसंरचना विकास पर नए सिरे से ध्यान केंद्रित किया गया।
- इसने उत्तर-पूर्व क्षेत्र में सैन्य कमजोरियों का खुलासा किया जिससे सरकार ने इस क्षेत्र को विकसित करने की आवश्यकता भी महसूस की।
- सरकार ने दक्षिण एशिया में अपने संबंधों को मजबूत करने के लिए कदम उठाए। इसके तहत भूटान, बांग्लादेश जैसे देशों के साथ सामरिक संबंधों का निर्माण किया गया। साथ ही भारत ने एक अधिक यथार्थवादी विदेश नीति की शुरुआत की।
- इस युद्ध ने दो प्रमुख कम्युनिस्ट शक्तियों के मध्य एकता को खण्डित कर दिया और चीनी विस्तारवाद के मुद्दे पर मॉस्को, वाशिंगटन और दिल्ली के मध्य एक साझा दृष्टिकोण का विकास हुआ।
- भारत ने युद्ध के दौरान अमेरिका से अंतरराष्ट्रीय समर्थन प्राप्त किया। इस दौरान अमेरिका ने अंतरराष्ट्रीय सीमा के रूप में मैकमोहन लाइन को मान्यता प्रदान की, चीनी आक्रामकता की आलोचना की और बंगाल की खाड़ी में विमान वाहक भेजे।
- भारत ने चीन के प्रति अपनी नीति में परिवर्तन किया। नेहरु की लोकप्रियता में गिरावट आई और उनका राजनीतिक पतन हुआ।
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