अफगानिस्तान शांति प्रक्रिया में भारत के हितों का उल्लेख :

प्रश्न: अफगान सरकार की शांति पहल ने भारत के लिए कुछ कठिनाइयां उत्पन्न की हैं, इसके बावजूद भी अफगानिस्तान के साथ भारत की भागीदारी इस प्रकार की कठिनाइयों का सामना करने हेतु पर्याप्त रूप से सशक्त है। चर्चा कीजिए।

 दष्टिकोण

  • अफगानिस्तान शांति प्रक्रिया में भारत के हितों का उल्लेख करते हुए उत्तर प्रारम्भ कीजिए।
  • वर्तमान में जारी शांति प्रक्रिया के प्रावधानों का उल्लेख कीजिए।
  • जारी शांति प्रक्रिया से भारत के लिए कठिनाइयों का वर्णन कीजिए।
  • ऐसी कठिनाइयों का सामना करने के लिए भारत-अफगान संबंधों में अन्तर्निहित शक्तियों को उल्लेख कीजिए।

उत्तर

भारत ने 28 फरवरी 2017 को अफगान सरकार द्वारा “सशस्त्र समूहों से हिंसा को रोकने और राष्ट्रीय शांति व सुलह प्रक्रिया में सम्मिलित होने” का आह्वान किये जाने का स्वागत किया। साथ ही सचेत करते हुए यह भी कहा कि “आतंकवाद के साथ कोई भी समझौता नहीं किया जा सकता है तथा हिंसा की राह पर चलने वालों तथा उन्हें वित्त पोषण और सुरक्षित आश्रय व शरण प्रदान करने वालों के विरुद्ध सख्त कार्रवाई की जानी चाहिए।”

अफगानिस्तान के साथ भारत की भागीदारी की नींव एक शांतिपूर्ण और स्थिर पड़ोस की महत्वाकांक्षा पर आधारित है। इस सन्दर्भ में भारत, तालिबान जैसे आतंकवादी समूहों को समस्या के रूप में देखता है। इसलिए, राष्ट्रपति अशरफ़ ग़नी की हालिया शांति पहल ने भारत के समक्ष निम्नलिखित कठिनाइयों को उत्पन्न किया है:

  • तालिबान के साथ शर्त रहित वार्ता का प्रस्ताव उसे प्रोत्साहन दे सकता है। पहले की भांति मजबूत तालिबान, कश्मीर में आतंकवाद को तीव्रता प्रदान कर सकता है।
  • तालिबान के द्वारा हाल के समय में की गयी भारी हिंसा अफगानिस्तान में भारतीय निवेश के लिए खतरा उत्पन्न कर रही पाकिस्तान अफगान तालिबान का प्रमुख सहयोगी एवं समर्थक रहा है।
  • इस प्रकार, तालिबान के सुदृढ़ीकरण से पाकिस्तान  को अफगानिस्तान में हस्तक्षेप करने में सहायता मिलेगी।
  • ग़नी सरकार का उदार शांति प्रस्ताव अफगान सरकार को विभाजित कर सकता है जो भारत तथा अन्य देशों द्वारा किये जाने वाले शांति प्रयासों को हतोत्साहित करेगा।
  • शांति प्रक्रिया तालिबान को वैधता प्रदान कर सकती है और यदि वह सत्ता में आ जाता है तो भारत की ऊर्जा सुरक्षा (TAPI), मध्य एशिया तक पहुंच तथा लुक वेस्ट पॉलिसी को नकारात्मक रूप से प्रभावित कर सकता है।

यह ध्यान देने योग्य है कि भारत ने अफगानी स्वामित्व वाली, पारदर्शी एवं समावेशी शांति प्रक्रिया का एक नीति के रूप में समर्थन किया है। भारत यह नहीं चाहता कि अफगानिस्तान में शांति प्रक्रिया का संचालन बाह्य अभिकर्ताओं जैसे पाकिस्तान तथा उसके सहयोगियों द्वारा किया जाए। अफगानिस्तान के प्रति भारत की गहरी प्रतिबद्धता, निवेश तथा स्थायी उपस्थिति बनाए रखने की रणनीति पर आधारित है जो निम्नलिखित तथ्यों से प्रकट होती है:

  • दोनों देशों के लोगों के बीच संबंधों में निकटता व्याप्त है तथा अफगान लोगों द्वारा भारत को सबसे विश्वसनीय देश के रूप में देखा जाता है।
  • भारत ने अफगानिस्तान के पुनर्निर्माण में अत्यधिक योगदान किया है और अफगान लोग भारत के इस योगदान को स्वीकार भी करते हैं।
  • अन्य पड़ोसी देशों के विपरीत भारत के अफगानिस्तान के साथ पार्टी विशिष्ट संबंध नहीं हैं।
  • भारतीय कंपनियों ने अफगानिस्तान में निवेश किया है और अफगान अर्थव्यवस्था को पटरी पर वापस लाने में सहायता की है।
  • वर्ष 2011 में भारत और अफगानिस्तान ने रणनीतिक साझेदारी समझौते पर हस्ताक्षर किए हैं, इसके माध्यम से भारत अफगानिस्तान में शांति व सुरक्षा सुनिश्चित करने का इच्छुक है।

इस प्रकार, यद्यपि शांति पहल ने भारत के समक्ष कुछ कठिनाइयां उत्पन्न की हैं तथापि भारत ने शांति हेतु स्थायी प्रतिबद्धता के आलोक में इस पहल का स्वागत किया है। तालिबान के प्रति संदेह की भावना भारत के अपने पिछले अनुभव के कारण तर्कसंगत है। हालाँकि शांतिपूर्ण एवं स्थिर अफगानिस्तान के वृहत लक्ष्य को ध्यान में रखते हुए भारत को इस क्षेत्र में निवेश करने के साथ ही अपनी स्थायी उपस्थिति भी बनाए रखनी होगी।

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